लोकसभा चुनाव 2019: बेटे के टिकट के लिए नेताजी ने कहा, कुछ तूफानी करते हैं...और कर लिया
पटना। बिहार के चुनावी सर्कस में इस बार करतबों की कमी नहीं हैं। नेता ऐसी गुलाटियां मार रहे हैं कि देखने वाले हैरत में पड़ गये हैं। मतलब साधने के लिए एक से बढ़ कर एक जुगाड़ जारी है। कांग्रेस के सांसद और बिहार चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश सिंह जब अपने पुत्र आकाश कुमार सिंह को पार्टी से टिकट नहीं दिला सके तो उन्हें उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी में फिट कर दिया। कुशवाहा की कथा तो निराली है। जब कुशवाहा ने अपनी पार्टी का पिटारा खोला तो आकाश सिंह के हाथ पूर्वी चम्पारण की जैकपॉट लग गयी।
पुत्र के टिकट के लिए जोड़तोड़
कांग्रेस सांसद अखिलेश सिंह शुरू में अपने पुत्र के लिए कांग्रेस से टिकट चाहते थे। वे बिहार कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के पद पर हैं। उम्मीदवारों के चयन में उनकी भी भागीदारी है। कुछ दिनों पहले प्रत्याशियों के चयन के लिए दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक हुई थी। इस बैठक के पहले राहुल गांधी ने बिहार कांग्रेस के नेताओं के साथ अहम बैठक की थी। कहा जाता है कि अखिलेश सिंह ने तब अपने बेटे के टिकट के लिए कोशिश की थी। खबरों के मुताबिक राहुल गांधी इस बात पर नाराज हो गये थे और बिहार के नेताओं को पार्टी हित में काम करने की नसीहत दी थी। उस समय बिहार कांग्रेस की तरफ से पूर्वी चम्पारण की सीट कांग्रेस को देने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। तब ये कहा जा रहा था कि अखिलेश सिंह दूर की कौड़ी खेल रहे हैं। उस समय जो अटकलें लगायी जा रही थीं, बाद में सच हुईं। जब कांग्रेस में दाल नहीं गली तो अखिलेश सिंह ने उपेन्द्र कुशवाहा को साधा। पूर्वी चम्पारण की सीट कुशवाहा के खाते में गयी थी। कुशवाहा भी प्रत्याशी खोज रहे थे। कहा जाता है कि अखिलेश सिंह ने कुशवाहा को ‘खुश' कर के ये सीट अपने बेटे के लिए हासिल कर ली। कुशवाहा को स्थानीय कार्यकर्ताओं से अधिक अपनी ‘खुशी' से मतलब था। बाहरी को टिकट दिये जाने का विरोध हो रहा था। इसके बाद भी कुशवाहा ने एक नये चेहरे को अपना उम्मीदवार बना दिया। अब नाराज लोग टिकट बेचे जाने का आरोप लगा रहे हैं।
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सियासत के हरफनमौला हैं अखिलेश
अखिलेश सिंह भूमिहार जाति से आते हैं। उनकी राजनीति लालू प्रसाद की सरपरस्ती में शुरू हुई थी। लालू प्रसाद से उनकी कड़ी को जोड़ा था रंजन प्रसाद यादव ने। 1990 में जब लालू सीएम बने थे तब डॉ. रंजन प्रसाद यादव पार्टी में नम्बर दो ही हैसियत रखते थे। लालू यादव के हर फैसले में रंजन यादव की छाप रहती थी। रंजन यादव उस समय पटना साइंस कॉलेज में प्रयोगशाला सहायक से लेक्चरर बन चुके थे। तब अखिलेश प्रसाद सिंह पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे। यहीं अखिलेश सिंह रंजन यादव के सम्पर्क में आये। अखिलेश, रंजन यादव के विश्वासपात्र बन गये।
अखिलेश सिंह को लालू ने उतारा राजनीति में
रंजन यादव ने उन्हें लालू के दरबार तक पहुंचाया। लालू यादव ने अखिलेश सिंह को राजनीति में उतार दिया। पेशे से अखिलेश सिंह प्रोफेसर हैं। 2000 में वे राजद के टिकट पर अपने गृहक्षेत्र अरवल से विधायक चुने गये थे। राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री भी रहे। 2004 में लालू यादव ने उनको बड़ी पारी खेलने का मौका दिया। मोतिहारी से राजद के टिकट पर सांसद चुने गये। लालू ने उन्हें मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री भी बनवा दिया। जब सियासी मौसम बदला तो अखिलेश सिंह कांग्रेस में आ गये। उन्होंने 2014 में मुजफ्फरपुर से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन हार गये। 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इनको तड़ारी से मैदान में उतारा लेकिन फिर हार गये। राजनीति गलियारे में एक चर्चा आम है कि कांग्रेस में आने के बाद भी अखिलेश सिंह लालू यादव के करीबी हैं। 2018 में राज्यसभा टिकट के लिए कांग्रेस के कई बड़े नेता दावेदार थे। लेकिन कहा जाता है कि लालू यादव के इशारे पर ही कांग्रेस ने ये टिकट अखिलेश सिंह को दे दिया। अब वे राज्यसभा सांसद हैं। पानी कितना भी खारा हो, अखिलेश सिंह की दाल गल ही जाती है।
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