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बिहार के इस करोड़पति डॉक्टर ने क्यों लौटाया एनडीए का टिकट?

By अशोक कुमार शर्मा
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पटना। सियासत के दरिया को पार करना सबके लिए मुमकिन नहीं। इसकी तेज धार अच्छे- अच्छों का हौसला पस्त कर देती है। फिर किसी नौसिखिए की क्या बिसात। पॉलिटिक्स में डेब्यू करने वाले सीतामढ़ी के डॉक्टर वरुण पैसे की पतवार से नाव किनारे लगाना चाहते थे। लेकिन जैसे ही डूबने का एहसास हुआ किनारे से लौट आये। सियासत में अगर पैसा दवा है तो दर्द भी है।

सोने के अंडे के लिए हलाल कर दी मुर्गी

सोने के अंडे के लिए हलाल कर दी मुर्गी

सीतामढ़ी के घोषित जदयू उम्मीदवार डॉ. वरुण ने नॉमिनेशन से पहले ही टिकट क्यों लौटा दिया ? जिस चुनावी टिकट के लिए बिहार में घमासान मचा हुआ है, उसको इस तरह लौटा देना, काफी हैरान करने वाला है। डॉक्टर वरुण काफी सोच समझ कर राजनीति में उतरे थे। पैसा उनकी ताकत थी। लेकिन एक गलत पब्लिक परशेप्शन ने उनकी स्थिति खराब कर दी। इस मामले में उनके करीबी सहयोगी भी जिम्मेवार बताये जा रहे हैं। पैसा उनके जी का जंजाल बन गया। शुरू में उनके करीबी, लोगों से यह कहते रहे कि खर्च की कोई चिंता नहीं है, बस किसी तरह चुनाव जीतना है। पैसा पानी की तरह खर्च होने लगा। छोटे-बड़े नेता ये समझने लगे कि चुनाव के लिए डॉक्टर बाबू दोनों हाथ से पैसा बांट रहे हैं। फिर क्या था सुबह-शाम उनके घर पर लोगों की भीड़ जुटने लगी। जो आता वह थोक वोट दिलाने के नाम पर पैसा मांगने लगता। शुरू में तो उन्होंने दिया लेकिन ये सिलसिला बढ़ता चला गया। हर कोई बहती गंगा में हाथ धोने को तैयार। सोने का अंडा पाने की होड़ में लोग मुर्गी हलाल करने पर तुल गये। जब सिर से पानी ऊपर हो गया तो उन्होंने पैसा देना बंद कर दिया। पैसा मिलना बंद हुआ तो लोग वोट बिगाड़ने की धमकी देने लगे। आखिरकार मुर्गी हलाल हो गयी।

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हकमारी से स्थानीय नेता नाराज थे

हकमारी से स्थानीय नेता नाराज थे

डॉ. वरुण सीतामढ़ी के सबसे कमाऊ डॉक्टरों में एक हैं। 2015 में इनके घर और आवास पर इनकम टैक्स का छापा भी पड़ा था। खबरों के मुताबिक सीतामढ़ी के एक अफसर से इनकी दोस्ती है। डॉक्टर साहब के पास पैसा था और अफसर की सत्ताधारी नेताओं से करीबी थी। इस युगलबंदी ने रंग दिखाया। सीतामढ़ी में एनडीए के कई नेता टिकट के लिए लाइन में खड़े थे। लेकिन सबको दरकिनार कर डॉ. वरुण टिकट ले उड़े। जब उन्हें टिकट मिला तो सब तरफ चर्चा होने लगी कि डॉक्टर बाबू ने पैसे के बल टिकट हासिल किया है। उन पर 10 करोड़ रुपये में टिकट खरीदने का आरोप लगाया गया। इन आरोपों को अनसुना कर वे चुनाव की तैयारियों में जुट गये। लेकिन सीतामढ़ी के स्थानीय नेता उनके खिलाफ थे। जिस तरह से उन्हें टिकट मिला था उससे वे नाराज थे। डॉक्टर बाबू को संगठन के स्तर पर कोई मदद नही मिल रही थी। स्थानीय नेता उन्हें मन ही मन उनको हराने की तैयारी में थे। हालात की मार से डॉ. वरुण असहज हो गये। न एनडीए का संगठन काम आया और न ही पैसा। जब उन्हें लगा कि अब चुनाव जीतना मुश्किल है तो उन्होंने जदयू नेताओं से चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जाहिर की। जदयू ने भी मौके की नजाकत को देख कर उनकी बात मान ली।

जदयू ने इतिहास से सबक लिया

जदयू ने इतिहास से सबक लिया

जदयू ने 2014 के लोकसभा चुनाव में रीयल इस्टेट की चर्चित हस्ती अनिल शर्मा को जहानाबाद से उम्मीदवार बनाया था। उनके बारे में कहा जाता था कि पैसे की बोरी से उन्होंने टिकट खरीदा था। इसी दम पर उन्होंने 2012 में राज्यसभा का चुनाव भी लड़ा था। जदयू के बागी सांसदों ने उनकी मदद की थी। उस समय भी अनिल शर्मा ने दिल खोल कर पैसा खर्च किया था। लेकिन 2014 का चुनाव अनिल शर्मा के लिए बुरा सपना साबित हुआ। सत्तारुढ़ जदयू का उम्मीदवार रहते हुए भी वे तीसरे स्थान पर फिसल गये। कहा जाता है कि अनिल शर्मा को वोट दिलाने के नाम पर इतने लोगों ने पैसा लिया था कि उन्हें जीत का मुगालता हो गया था। लेकिन जब रिजल्ट निकला तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गयी। ये वही अनिल शर्मा हैं जो आज कानून के शिकंजे में फंसे हुए हैं। पैसा हर मर्ज की दवा नहीं। जदयू को अनिल शर्मा की हालत याद थी। उसने देर किये बिना उम्मीदवार बदल दिया। सीतामढ़ी में जदयू को जब कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं मिला को उसे भाजपा से उधारी लेनी पड़ी।

पढ़ें, सीतामढ़ी लोकसभा सीट का पूरा प्रोफाइल

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: Why this millionaire doctor of Bihar return NDA ticket?
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