किशनगंज में हैदराबाद का अंदाज, बदले हालात में क्या पूरा होगा औवैसी का अरमान?
किशनगंज में हैदराबाद का अंदाज, क्या पूरा होगा औवैसी का अरमान?
नई दिल्ली। बिहार में किशनगंज लोकसभा क्षेत्र ऐसा इलाका हैं जहां के 70 फीसदी वोटर मुसलमान हैं। मुस्लिम हितों की राजनीति करने वाले हैदराबाद के असदुद्दीन औवैसी की इस सीट पर अरसे से नजर है। किशनगंज को उपजाऊ जमीन मान कर औवैसी यहां पिछले कुछ चुनावों से सक्रिय रहे हैं। 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में औवैसी ने किशनगंज में अपनी जमीन बनाने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रहे थे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में परिस्थियां ऐसी हो गयी हैं कि औवैसी के एआइएमआइएम की उम्मीदें उड़ान भरने लगी हैं। अभी जो सियासी हालात हैं उसके मुताबिक औवैसी की चुनौती को गंभीर माना जा रहा है।
किशनगंज में पूर्व विधायक हैं औवैसी के उम्मीदवार
अख्तरूल ईमान, औवैसी के ऑल इंडिया मजलिस -ए- एत्ताहादुल मुसलमीन के टिकट पर किशनगंज से चुनाव लड़ रहे हैं। पहले वे जदयू के विधायक थे। 2014 में जदयू ने उन्हें यहां से लोकसभा का टिकट दिया था। लेकिन ठीक चुनाव के पहले अचानक उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। इससे जदयू को भारी झटका लगा था। अख्तरूल के इस तरह मैदान छोड़ने से कांग्रेस के मौलाना असरारूल हक को एक तरह से वाकओवर मिल गया था। मौलाना आसानी से दूसरी बार इस सीट पर जीत गये थे। लेकिन इस बार अख्तरूल बेहतर स्थिति में दिखायी पड़ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि किशनगंज के दो दिग्गज नेताओं के निधन से मैदान एक दम खाली पड़ गया है। अब जो वोटरों पर सिक्का जमाएगा वहीं किशनगंज का नया सांसद बनेगा।
असदुद्दीन औवैसी की किशनगंज में धमक
अपने विवादित बयानों से चर्चा में रहने वाले औवैसी पिछले लोकसभा चुनाव में यहां नाकाम रहे थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में औवैसी ने किशनगंज और पूर्णिया के मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने उम्मीदवार खड़े किये थे लेकिन यहां उनकी दाल नहीं गली थी। लेकिन 2019 में औवैसी को इत्तेफाक से खाली मैदान मिला है। किशनगंज के सांसद मौलाना असरारूल हक का निधन हो चुका है। यहां के एक और कद्दावर नेता तस्लीमुद्दीन भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। पिछले चुनाव में वे अररिया से जीते थे। लेकिन उनका मूल आधार किशनगंज में ही था। इन दोनों नेताओं के नहीं रहने से जदयू के महमूद अशरफ, कांग्रेस के डॉ. जावेद, एआइएमआइएम के अख्तरूल ईमान नये क्षत्रप बनने के लिए होड़ कर रहे हैं। वे किशनगंज के मुसलमानों के समझा रहे हैं कि कांग्रेस, राजद और जदयू ने उनका सिर्फ इस्तेमाल किया है। मुसलमानों की उम्मीदें सिर्फ ऑल इंडिया मजलिस -ए- एत्ताहादुल मुसलमीन ही पूरा कर सकती है। औवैसी मुस्लिम कार्ड खेलने के लिए यहां सभा कर चुके हैं।
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मुस्लिम वोटों को एकजुट करने की कोशिश
किशनगंज में मुसलमान वोटर 70 फीसदी तो हैं लेकिन वे सूरजापुरी और पछिमा में बंटे हुए हैं। सूरजापुरी मुसलमान खुद को किशनगंज का मूल बासिंदा मानते हैं जब कि पछिमा, पश्चिम के जिलों से आकर यहां बसे हैं। सूरजापुरी वोटरों की संख्या पांच लाख से अधिक है। इस लिए वे निर्णायक स्थिति में रहते हैं। असदुद्दीन औवैसी ने सूरजापुरी और पछिमा मुसलमानों के वोट को बंटने से रोकने के लिए कोशिश शुरू कर दी है। उनका कहना है कि उनके वोट बंटने से ही कांग्रेस या राजद के नेता जीतते रहे हैं। लेकिन उन्होंने यहां के गरीब मुसलमानों के लिए क्या किया। वे हैदराबाद का उदाहरण दे कर बताते हैं कि उन्होंने अपनी बिरादरी के लिए क्या किया। औवैसी ने अगर सूरजापुरी और पछिमा मुसलमानों को एक कर दिया तो किशनगंज में एआइएमआइएम की गोटी लाल हो सकती है। लेकिन ये आसान काम नहीं है।