चुनाव के यज्ञ में सोशल मीडिया की आहूति
बताया
जाता
है
कि
इस
प्रकार
की
रैलियों
के
सहारे
राजनैतिक
दल
न
सिर्फ
युवा
वोटर्स
को
अपने
पाले
में
खींचते
हैं,
साथ
ही
इससे
वोटिंग
के
लिए
जागरुकता
बढ़ती
है।
सत्ता
हथियाने
के
लिए
सभी
पार्टियों
ने
वर्चुअल
रैलियों
पर
अधिक
ध्यान
देना
शुरु
कर
दिया
है।
गूगल,
फेसबुक,
ट्विटर,
बीवर
जैसी
साइट्स
पर
पार्टियों
की
कैंपेनिंग
के
नए-नए
प्लान
चल
रहे
हैं।
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गूगल की वर्चुअल रैली कैंपेन:
इसमें लोग अलग-अलग लाॅगइन से एक जगह एकत्रित होकर किसी भी मुद्ये पर वर्चुअल रैली कर लेते हैं। बेंगलोर स्थित गूगल इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजन आनंदन का कहना है अमेरिका में हुए चुनावों में गूगल का यह प्रयोग काफी लोकप्रिय रहा था।
गूगल
ने
गूगल
हैंगआउट
पर
'प्लीज़
टू
वोट'
और
'नो
योर
केंडिडेट'
कैंपेन
भी
शुरु
की
है।
इसमें
हिमाचल
के
97
वर्षीय
श्याम
सरन
नेगी
को
दिखाया
है
जिन्होंने
हर
चुनाव
में
मत
दिया
है।
ट्विटर-फेसबुक
और
बीबर
भी
पीछे
नहीं:
माइक्रो-ब्लाॅगिंग
साइट
ट्विटर
ने
भी
चुनावी
ट्वीट्स्
के
लिए
डिस्कवर
सेक्शन
शुरु
किया
है।
फेसबुक
ने
इलेक्शन
ट्रेकर्स
और
फेसबुक
टाॅक्स
पेज
की
शुरुआत
की
है।
बीवर
ने
अंगुली
कैंपेन
शुरु
किया
है।
सोशल
साइट्स
भी
उठा
रही
हैं
फायदा:
बेंगलोर
स्थित
सेंटर
फाॅर
इंटरनेट
एंड
सोसाइटी
के
कार्यकारी
निदेशक
सुनील
अब्राहम
का
कहना
है
कि
सोशल
साइट्स
चुनावों
को
ध्यान
में
रखते
हुए
विज्ञापकर्ताओं
को
लुभाने
के
लिए
नए
पेज़
क्रिएट
किए
हैं।
पार्टियों
को
भी
लाभ:
पार्टियों
को
भी
फायदा
है
कि
सोशल
मीडिया
कंपनियों
के
पास
इस
बात
का
डेटाबेस
मोजूद
होता
है
कि
किस
तरह
की
बातों
को
युवा
पसंद-नापसंद
कर
रहे
हैं।
बेंगलोर।
सोशल
मीडिया
ने
इस
बार
राजनीति
को
पाॅलिटक्स
और
नेताओं
को
गेमचेंज़र
बना
दिया
है।