कहां गायब हो गई कोवैक्सिन की 4 करोड़ डोज ? दावों और आंकड़ों ने बढ़ाई उलझन
नई दिल्ली, 28 मई: कोरोना वायरस की देसी वैक्सीन कोवैक्सिन के प्रोडक्शन और उससे अबतक हुए टीकाकरण के आंकड़ों में इतना ज्यादा अंतर है कि मामला बहुत ही ज्यादा उलझ गया है। कम से कम 4 करोड़ डोज का पता नहीं लग पा रहा है कि वह कहां है? उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया ? दिक्कत ये है कि इस वैक्सीन की दूसरी डोज के बीच अंतर रखने के लिए सरकार ने सिर्फ 28 दिन ही निर्धारित कर रखे हैं। ऐसे में जिन लोगों की दूसरी डोज का समय आ गया है, वह परेशान हो रहे हैं। लेकिन, कोवैक्सिन सेंटर वैक्सीन नहीं है का बोर्ड लगाए हुए हैं। इतने बड़े देश में मांग के मुकाबले में उत्पादन कम हो पाने की बात तो समझ में आती है। लेकिन, दावों के मुताबिक जितनी वैक्सीन स्टॉक में होनी चाहिए वह क्यों नहीं है ?
कोवैक्सिन की 2.14 करोड़ डोज का इस्तेमाल
भारत ही नहीं पूरी दुनिया कोविड वैक्सीन की भारी किल्लत झेल रही है। ऐसे में भारतीय वैक्सीन कोवैक्सिन की कम से कम 4 करोड़ डोज का हिसाब नहीं मिल पाना हालात की गंभीरता को बहुत ज्यादा उलझा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक गुरुवार सुबह तक के सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि देशभर में अभी तक कोवैक्सिन की सिर्फ 2.14 करोड़ डोज ही लोगों को लगाई गई है। जबकि, भारत बायोटेक और केंद्र सरकार के बयानों पर यकीन करें तो देश में इसकी कम से कम 4 करोड़ डोज और उपलब्ध होनी चाहिए। फिर भी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों से कोवैक्सिन सेंटर वैक्सीन की कमी के चलते बंद होने के मामले सामने आ रहे हैं। आखिर कोवैक्सिन की दो-तिहाई डोज कहां गायब हो गई ? हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने इसपर कोशिशों के बावजूद अबतक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
कंपनी और केंद्र के दावे और स्टॉक में भारी अंतर
अब जरा कंपनी की ओर से बताए गए आंकड़ों पर गौर फरमाइए। कंपनी के सीएमडी कृष्णा एला ने 20 अप्रैल को आधिकारिक तौर पर कहा था कि मार्च में 1.5 करोड़ डोज का उत्पादन हुआ और अप्रैल के अंत तक 2 करोड़ डोज तैयार हो जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि मई के अंत तक 3 करोड़ डोज और बन जाएगी। मान लिया जाए कि मई में कंपनी अपना तय टारगेट नहीं हासिल कर पाई। फिर भी मार्च-अप्रैल में 3.5 करोड़ और मई में कम से कम 2 करोड़ डोज उत्पादित होने की तो उम्मीद जरूर है। केंद्र सरकार ने भी पहले सुप्रीम कोर्ट और पिछले 24 मई को केरल हाई कोर्ट में जो दो हलफनामा दायर किया है, उसमें कहा है कि हर महीने कोवैक्सिन की 2 करोड़ डोज का प्रोडक्शन हो रहा है। अगर इन दोनों के आधार पर देखें तो मई के अंत तक कोवैक्सिन का पिछले तीन महीनों का ही उत्पादन करीब 5.5 करोड़ डोज तो होना ही चाहिए।
कम से कम 8 करोड़ डोज का हुआ उत्पादन
एक और तथ्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। जब देश में वैक्सीनेशन शुरू भी नहीं हुआ था, तभी इस साल 5 जनवरी को भारत बायोटेक के सीएमडी ने कहा था कि कंपनी के पास कोवैक्सिन की 2 करोड़ डोज का स्टॉक पहले से उपलब्ध है। इसको मिला दें तो कुल डोज कम से कम 7.5 करोड़ हो जाती है। इसके अलावा जनवरी और फरवरी में भी तो कुछ प्रोडक्शन हुआ था। हालांकि, मान लेते हैं कि तब मार्च-अप्रैल के स्केल पर यह काम नहीं हो रहा था, फिर भी कोवैक्सिन के कुल करीब 8 करोड़ डोज का उत्पादन तो जरूर हुआ होगा। अगर इसमें से लोगों को लगाई गई 2.14 करोड़ डोज घटा दें तो इस हिसाब से करीब 6 करोड़ डोज बचती है।
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कहां गई कोवैक्सिन की 4 करोड़ डोज ?
बेशक भारत ने शुरू में विश्व स्वास्थ्य संगठन के तहत कोवैक्स से जुड़कर वैक्सीन डिप्लोमेसी के दायरे में इसका निर्यात भी किया है। लेकिन, भारत से वैक्सीन की कुल निर्यात ही करीब 6.6 करोड़ डोज ही कई गई है। इसमें से ज्यादातर हिस्सा सीरम इंस्टीट्यूट में बनी कोविशील्ड की ही थी। अब मान लें कि इसमें से 2 करोड़ डोज कोवैक्सिन की थी (जिसकी संभावना बहुत ही कम लग रही है) तो भी 6 करोड़ डोज में से भारत में खपत के लिए कम से कम 4 करोड़ डोज तो और बची होनी चाहिए। फिर दिल्ली समेत कई राज्य कोवैक्सिन सेंटर बंद करने का दावा क्यों कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने इस हफ्ते दूसरी डोज का इंतजार करने वालों का भी टीकाकरण कोवैक्सिन नहीं होने के चलते बंद करने का दावा किया।