सीआईए की रिपोर्ट: राजीव गांधी को 'शर्मिंदगी' से बचाने के लिए स्वीडन ने बोफोर्स जांच को रोका
अमेरिकी खुफिया एजेंसी की तरफ से करीब 1.2 करोड पेज के 9.30 लाख गोपनीय दस्तावेजों को पब्लिक जोन में रख दिया गया है।
नई दिल्ली। अमेरिकी खुफिया एजेंसी की तरफ से करीब 1.2 करोड पेज के 9.30 लाख गोपनीय दस्तावेजों को पब्लिक जोन में रख दिया गया है। अब इस रिपोर्ट में एक नया खुलाया हुआ है कि स्वीडन ने बोफोर्स घोटाले की जांच को जानबूझकर बीच में छोड़ दिया क्योंकि उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी इस जांच के दायरे में थे और अगर जांच पूरी होती तो उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती। सीआईए की इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि राजीव गांधी की स्टॉकहोम यात्रा के बाद वर्ष 1988 में स्वीडन ने उस जांच को पूरी तरह से रोक दिया था जिसमें राजीव गांधी और उनके अधिकारियों को भी कथित रूप से रिश्वत देने का आरोप था।
स्वीडन की सैन्य हथियार बनाने वाली कंपनी बोफोर्स ने भारत में अपनी युद्धक तोप को बेचने के लिए राजीव गांधी और अन्य लोगों को अच्छी खासी रिश्वत देने की बात उस समय मीडिया में आई थी। वर्ष 2004 में कोर्ट ने कहा था कि राजीव गांधी के रिश्वत लेने के कोई भी सुबूत मौजूद नहीं हैं। आपको बताते चले कि 21 मई, 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी।
सीआई ने वर्ष 1998 की अपनी गुप्त रिपोर्ट में बोफोर्स हथियार घोटालों का हवाला देते हुए कहा कि स्टॉकहोम ने बोफोर्स रिश्वत मामले की जांच को शायद इसलिए बंद कर दिया गया था जिससे भारतीय अधिकारियों को दी गई रिश्वत के खुलासे सामने न आ सकें। साथ ही अगर सच सामने न आएं जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को शर्मिंदा होने से भी बचाया जा सके। सीआईए की रिपोर्ट में इस घोटाले का नाम स्वीडन बोफोर्स हथियार घोटाला दिया गया है।
आपको बताते चले कि बोफार्स तोपों की खरीद में यह आरोप था कि 155 एमएम तोपों की 150 करोड़ डॉलर की खरीद में शामिल भारतीय बिचौलिये और अधिकारियों को कथित तौर पर रिश्वत दी थी। सीआईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीडन के जांचकर्ताओं ने भारत के साथ बोफोर्स के लेनदेन का राष्ट्रीय ऑडिट किया था।