काम निकालने के बाद मुखबिरों को बेसहारा छोड़ देता अमेरिका, CIA के दोमुंहेपन पर सनसनीखेज खुलासा
जब रायटर्स ने इस बाबत सीआईए के पूर्व अधिकारियों से बात की, तो उन्होंने बताया कि, सीआईए इस बात को लेकर 'पूरी तरह से अवगत' नहीं था कि, 2013 तक इसकी गुप्त संदेश प्रणाली से समझौता किया गया था।
तेहरान/वॉशिंगटन, अक्टूबर 01: इंटरनेशनल समचार एजेंसी रॉयटर्स के जोएल स्केक्टमैन और बोजोर्गमेहर शारफेडिन ने करीब एक साल की कड़ी मेहनत के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के नकारापन और लापरवाही को लेकर सनसनीखेज रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कहा गया है, कि किस तरह से अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने अपने ईरानी गुप्तचरों को जरूरत के वक्त बेसहारा छोड़ दिया। गुरुवार को जोएल स्केक्टमैन और बोजोर्गमेहर शारफेडिन की एक साल की मेहनत से तैयार किए गये इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी को प्रकाशित किया गया है, जिसमें अमेरिका के डबल गेम का एक बार फिर से खुलासा हुआ है, जिसमें कहा गया है, कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने अपने ईरानी मुखबिरों को लेकर भारी लापरवाही बरती है।
सीआईए की बड़ी लापरवाही
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने 'अमेरिकाज थ्रोअवे स्पाईज' हेडलाइंस के साथ जो रिपोर्ट छापी है, उसमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को लेकर बड़े खुलासे किए गये हैं और बताया गया है, कि किस तरह से अमेरिकी एजेंसी उन नागरिकों के प्रति लापरवाही बरतती है और अपनी जवाबदेही से भाग जाती है, जिनका इस्तेमाल उसने अपने नेटवर्क विस्तार और खुफिया जानकारियों को जुटाने के लिए किया था। इस रिपोर्ट में अमेरिकी एजेंसी की दोषपूर्ण प्रणालियों के बारे में बताया गया है। रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट को 'unprecedented firsthand account' कहा है और दावा किया गया है कि, कई ईरानी मुखबिरों को पकड़े जाने के बाद सीआईए ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया और कई मुखबिरों को यह आशंका भी है, कि उनका सौदा खुद अमेरिकी एजेंसी ने ही कर दिया।
6 ईरानी मुखबिरों से बातचीत
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने साल 2009 से 2015 के बीच सीआईए के लिए जासूसी करने वाले 6 ईरानी मुखबिरों से बात की, जिन्हें ईरान में पकड़ लिया गया और फिर उन्हें सजा मिली। उस वक्त ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद हुआ करते थे और रॉयटर्स के रिपोर्टर्स ने सरकारी दस्तावेजों की स्टडी करने के साथ साथ पूर्व अमेरिकी खुफिया अधिकारियों से भी बात की। रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में शुरू हुए "काउंटर इंटेलिजेंस पर्स" के हिस्से के रूप में ईरान ने इन अमेरिकी जासूसों को जेल में डालना शुरू कर दिया था और ईरान ने दर्जनों सीआईए मुखबिरों को पकड़ने का दावा किया था। जांच में पाया गया कि, सीआईए ने अपने मुखबिरों से संपर्क स्थापित करने के लिए 350 से ज्यादा फर्जी वेबसाइटों का इस्तेमाल किया। सीआईए के दो पूर्व अधिकारियों ने रायटर को बताया कि, 'किसी भी तरह के जोखिम से बचने के लिए एक नकली वेबसाइट का इस्तेमाल सिर्फ एक जासूस से संपर्क स्थापित करने के लिए किया गया', लेकिन सीआईए के दोमुंहेपन के बारे में ये बात जानकर आप दंग रह जाएंगे, कि इन वेबसाइटों की पहचानना और उन्हें क्रैक करना काफी ज्यादा आसान कर दिया गया था।
खराब कम्युनिकेशन चैनल
रिपोर्ट में पाया गया कि, इन फर्जी वेबसाइटों में "एक ही गुप्त संदेश प्रणाली" का इस्तेमाल किया गया था और उन वेबसाइटों में ज्यादातर के आईपी एड्रेस एक क्रम में ही थे, जिनकी पहचान करना काफी आसान हो जाता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, इस तरह की कमियों का मतलब है कि, अगर ईरानी अधिकारियों ने किसी एक वेबसाइट का पता लगा लिया, तो फिर उस वेबसाइट के जरिए काफी आसानी से दूसरे, तीसरे और फिर दर्जनों वेबसाइट का पता लगा लिया गया और इससे ईरानी अधिकारियों को सीआईए के मुखबिरों की पहचान करने में काफी ज्यादा आसानी हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि, एक बार जैसे ही किसी एक वेबसाइट की पहचान की जाती थी, उसे इस्तेमाल करने वाले सीआईए के मुखबिर को पकड़ना काफी ज्यादा आसान हो जाता था। मुखबिरों को पकड़ने के लिए ईरानी अधिकारियों को सिर्फ वेबसाइट के खुलने का इंतजार करना पड़ता था। वहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि, सीआईए ने दुनियाभर में अपने मुखबिरों के लिए इसी तरह से वेबसाइट्स डिजाइन किए, लिहाजा दुनियाभर में भारी संख्या में सीआईए के जासूस गिरफ्तार किए गये।
सीआईए के पूर्व अधिकारियों का 'बहाना'
जब रायटर्स ने इस बाबत सीआईए के पूर्व अधिकारियों से बात की, तो उन्होंने बताया कि, सीआईए इस बात को लेकर 'पूरी तरह से अवगत' नहीं था कि, 2013 तक इसकी गुप्त संदेश प्रणाली से समझौता किया गया था। लेकिन रिपोर्ट में सीआईए के एक पूर्व अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि, बड़े पैमाने पर इन फर्जी वेबसाइटों का निर्माण इसलिए किया गया, क्योंकि सीआईए अधिकारियों को लगता था, कि ऐसे मामलों के लिए किसी एडवांस इन्वेस्टमेंट की जरूरत नहीं है, यानि, एक तरह से यही समझा जा सकता है, कि सीआईए ने अपने मुखबिरों को भेड़-बकरी की तरह समझा, जो अगर पकड़े भी जाते हैं, तो उससे सीआईए को कोई फर्क नहीं पड़ता।
पकड़े गये जासूसों के साथ क्या हुआ?
सीआईए की वजह से जो 6 ईरानी मुखबिर पकड़े गये थे, उन्हें जासूसी के आरोप में पांच से 10 सालों की सख्त सजा दी गई और 2010 में दोषी ठहराए गए मुखबिरों में से एक, घोलमरेज़ा होसैनी ने तेहरान के एविन जेल में एक दशक बिताया। कई सालों तक सख्ततम जेल की सजा काटने और भारी टॉर्टर की वजह से मुखबिर की बोलने की क्षमता काफी प्रभावित हुई है और उसके करीबी रिश्तेदार बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। मुखबिर ने कहा कि, "अगर कोई मुझसे साधारण बात भी करता है, तो मुझे लगता है कि, मैं वापस पूछताछ कक्ष में आ गया हूं।" रिपोर्ट के मुताबिक, 6 जासूसों में से चार जासूस तो ईरान में ही रह गये, लेकिन दो जासूस अब "स्टेटलेस शरणार्थी" बन गए हैं, जिन्हें दोस्तों, परिवार या फिर जिस सीआईए एजेंसी के लिए उन्होंने काम की थी, उससे उन्हें कोई मदद नहीं मिलती है। यानि, सीआईए ने उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी है।
दिखाए गये थे हसीन सपने
रिपोर्ट के मुताबित, कई मुखबिरों ने अमेरिका में बसने की संभावना को देकते हुए सीआईए के लिए मुखबिर बनने के लिए तैयार हो गये और उन्हें भरोसा दिलाया गया था, कि अगर वो फंसते हैं, तो उन्हें फौरन ईरान से बाहर निकाल लिया जाएगा और जीवन भर उनके परिवार का ख्याल रखा जाएगा, लेकिन उनका ये सपना दो कौड़ी का साबित हुआ। क्योंकि, सीआईए ने अपने मुखबिरों को अलग अलग क्रूर शासन के सामने गाजर-मूली की तरह पेश किया और सीआईए के तीन पूर्व अधिकारियों ने कहा कि, सीआईए ने दुनियाभर में फैले अपने जासूसों के लिए एक साल में महज 100 वीजा ही आवंटित किए। सीआई के पूर्व काउंटर इंटेलिजेंस चीफ जेम्स ओल्सन ने रॉयटर को बताया कि, "अगर लोगों ने जानकारी शेयर करने के लिए हम पर भरोसा करने की कीमत चुकाई और उन्होंने इसके लिए भारी कीमत चुकाई है, तो हम नैतिक रूप से विफल हो गए हैं।"
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