एलियंस के हमले में मारे गये, घायल हुए सैकड़ों अमेरिकी सैनिक, पूर्व CIA अधिकारी के खुलासे से सनसनी
पूर्व सीआईए अधिकारी और फोरेंसिक न्यूरोइमेजिंग विशेषज्ञ क्रिस्टोफर ग्रीन ने कहा कि, सैनिकों को लगने वाली कुछ चोटें रहस्यमयी 'हवाना सिंड्रोम' से मिलती-जुलती हैं।
वॉशिंगटन, अप्रैल 08: अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी और शीर्ष मस्तिष्क रोक विशेषज्ञ ने दावा किया है कि, एलियंस के विमान, जिन्हें हम यूएफओ कहते हैं, उनके सामने हमारी शक्ति बौनी है और यूएफओ के संपर्क में आने से से सैकड़ों सैन्य अधिकारियों को गंभीर मस्तिष्क बीमारी, शारीरिक चोट समेत लकवा जैसी गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा है। पूर्व सीआईए अधिकारी का ये खुलासा काफी सनसनीखेज है, क्योंकि, पिछले हफ्ते 'सूचना के अधिकार' के तहत पेंटागन से प्राप्त किए गये डॉक्यूमेंट में सबूतों के साथ कहा गया है कि, धरती पर यूएफओ आ रहे हैं और इंसानों में गंभीर बीमारियां फैला रहे हैं।
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पूर्व सीआईए अधिकारी का दावा
पेंटागन की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि, डेट्रॉइट के प्रोफेसर क्रिस्टोफर ग्रीन को यूएफओ की निगरानी के लिए एक सीक्रेट मिशन दिया गया था और इस मिशन के लिए 220 करोड़ डॉलर का फंड दिया गया था। इस कार्यक्रम के तहत यूएफओ से इंसानों के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव की जांच करना था, जिसमें यूएफओ से करीबी एनकाउंटर को लेकर सबूतों के साथ कई खुलासे किए गये थे। डेलीमेल डॉट कॉम के साथ एक इंटरव्यू में, फोरेंसिक न्यूरोइमेजिंग विशेषज्ञ, जिन्होंने 1960 के दशक से सीआईए के साथ काम किया है, उन्होंने कहा कि, उन्होंने सैकड़ों ऐसे अमेरिकी अधिकारियों का इलाज किया गया है, जो यूएफओ के संपर्क में आने के बाद बुरी तरह घायल हुए थे, जिनमें से कई सैनिक बाद में मर गये।
दिमाग पर डायरेक्ट असर
पूर्व सीआईए अधिकारी और फोरेंसिक न्यूरोइमेजिंग विशेषज्ञ क्रिस्टोफर ग्रीन ने कहा कि, सैनिकों को लगने वाली कुछ चोटें रहस्यमयी 'हवाना सिंड्रोम' से मिलती-जुलती हैं, जिसके बारे में खुफिया एजेंसियों का मानना है, कि यह माइक्रोवेव का इस्तेमाल कर अमेरिकी राजनयिकों और सैनिकों पर गुप्त हमले किए गये होंगे। लेकिन, प्रोफेसर ग्रीन ने अपनी रिपोर्ट 2016 में क्यूबा में अमेरिकी सैनिकों और अधिकारियों पर सिलसिलेवार गुप्त हमलों, जिन्हें हवाना सिन्ड्रोम कहा जाता है, उसके ऊपर इन बीमारियों का नाम रखा है।
यूएफओ से यूएस सैनिकों की मुठभेड़
दरअसल, डॉ. ग्रीन ने यूएफओ के संपर्क में आने वाले और घायल हुए जिन सैनिकों का इलाज किया था, उस रिपोर्ट को ‘फ्रीडम ऑफ इंफॉर्मेशन एक्ट' के तहत हासिल किया गया है और इस रिपोर्ट का शीर्षक है, 'क्लिनिकल मेडिकल एक्यूट एंड सबक्यूट फील्ड इफेक्ट्स ऑन ह्यूमन डर्मल एंड न्यूरोलॉजिकल टिश्यू' और ये एक सीक्रेट रिपोर्ट है, जिसमें मल्टीपल स्केलेरोसिस, ब्रेन डैमेज और बर्न्स के लक्षणों के बारे में पूरी जानकारियां दी गई है। इन मेडिकल रिपोर्ट्स में बताया गया है, कि जिन अमेरिकी सैन्य अधिकारियों को लकवा मारा है, या फिर गंभीर रूप से जले हैं, असल में वो अदृश्य यूएफओ की चपेट में आए थे और इनमें से कई मरीजों की बाद में मौत हो गई थी।
यूएफओ से बातचीत और अपहरण
इन मेडिकल रिपोर्ट्स में ये भी लिखा गया है कि, यूएफओ से अमेरिकी सैनिकों का संपर्क हुआ था और कुछ सैनिकों का अपहरण भी किया गया था और फिर वो गंभीर मस्तिष्क बीमारी का शिकार हो गये, जिनमें लकवा सबसे सामान्य था। यह रिपोर्ट, पिछले साल दिसंबर में एक आधिकारिक सरकारी यूएफओ-निगरानी कार्यक्रम के लिए, अमेरिकी कांग्रेस द्वारा जारी किए गये फंड के बाद सामने आई है, जिसमें 'अज्ञात हवाई घटनाओं का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिए किसी भी स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव का आकलन' शामिल किया गया है।
अमेरिकी अधिकारियों के पास हैं सबूत
इस हफ्ते की शुरूआत में जो रिपोर्ट ‘सूचना के अधिकार' के तहत पेंटागन से निकाले गये हैं, उसमें खुलासा हुआ है कि, अमेरिकी अधिकारियों के पास इस बात के पर्यार्त सबूत हैं, कि यूएफओ धरती पर आए और उन्होंने अमेरिकी सैनिकों को निशाना भी बनाया। इस कार्यक्रम को साल 2012 में बंद कर दिया गया था। वहीं, रिपोर्ट में लिखा गया है कि, यूएफओ के देखे जाने से सैनिक रेडियेशन की चपेट में आए, जलन, पक्षाघात और यहां तक कि मस्तिष्क क्षति जैसे प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव के शिकार हुए। डॉ ग्रीन ने कहा कि, उन्होंने अमेरिकी सैनिकों का इलाज किया गया, जिनके पास यूएफओ को लेकर रडार डेटा, बड़े बड़े साइलेंट ड्रोन, जो काफी अजीब तरीके से घूमते हुए चलते हैं, काफी अजीबोगरीब रोशनी के साथ यूएफओ को लेकर रिसर्च कर रहे थे।
जनवरी में सीआईए ने जारी की थी रिपोर्ट
जनवरी में सीआईए ने विशेषज्ञों के एक पैनल से एक रिपोर्ट जारी की थी, जिन्होंने 1,000 रोगियों के मामलों का विश्लेषण किया था, जिनमें दो दर्जन सैनिकों को लगे गंभीर चोट भी शामिल थे। जिसमें कहा गया था कि, अमेरिकी सैनिकों को लगने वाली विचित्र और रहस्यमयी चोटों के पीछे दुश्मन देश और दुश्मन देश के अत्याधुनिक हथियार हो सकते हैं और उन्होंने सबसे बड़ा शक रूस पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक करेंट से हमले का जताया था। इनमें से कई चोटें 2016 में क्यूबा के हवाना में अमेरिकी दूतावास में राजनयिकों को लगी थीं। लेकिन ग्रीन का पेपर अमेरिकी सरकार और सैन्य कर्मियों के मामलों पर केंद्रित है, जिन्हें 'हवाना सिंड्रोम' में घायल हुए अमेरिकी सैनिकों से काफी पहले तैयार किया गया था।
रिपोर्ट्स को गुप्त रखने का प्रेशर
प्रोफेसर ग्रीन ने साल 2009 के डीओडी-कमीशन रिसर्च पत्र पर क्लासीफाइड रिपोर्ट तैयार की थी, लेकिन उन्होंने ‘शपथ' का हवाला देकर ज्यादा जानकारी देने से इनकार कर दिया। लेकिन, उन्होंने कहा कि, उनका रिसर्च उन 38 रिसर्च रिपोर्ट में शामिल है, जिसे उन्नत एयरोस्पेस वेपन सिस्टम एप्लीकेशन प्रोग्राम (एएडब्ल्यूएसएपी) कहा जाता है, जो कि 22 मिलियन डॉलर की लागत से शुरू किए गये प्रोग्राम का हिस्सा है। ये प्रोग्राम साल 2007 से 2012 तक रक्षा खुफिया एजेंसी द्वारा चलाया गया। उन्होंने डेलीमेल डॉट कॉम को बताया कि, 'मैंने अखबार में कुछ ऐसी बातें कही थीं जो वे [डीआईए] नहीं चाहते थे कि मैं कुछ कहूं।
अलौकिक शक्तियां हैं मौजूद
डॉ. ग्रीन ने कहा कि, 'मुझे लगता है कि रक्षा विभाग में गंभीर लोग हैं, जो गंभीरता से मानते हैं. कि कुछ वस्तुएं हैं, जिन्हें 'अज्ञात उड़ान वस्तुओं' के रूप में पहचाना जाता है, वे वास्तविक हैं, और अलौकिक हैं। उन्होंने कहा कि, ‘वो इस बारे में चिंतित हैं और ये सही भी है'। आपको बता दें कि, सीआईए के पूर्व असिस्टेंट नेशनल इंटेलिजेंस ऑफिरस (साइंस एंड टेक्नोलॉडी) डॉ. ग्रीन ने उन विस्तृत मेडिकल रिपोर्ट्स का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार किया गया है, जिसमें साल 1969 में अमेरिकी सरकार द्वारा चला गये खुफिया एलियन मिशन भी शामिल है, जिसमें सैकड़ों अमेरिकी सैनिक या तो गंभीर घायल हुए थे या मारे गये थे।
धरती पर आ चुके हैं एलियंस, फैला रहे हैं गंभीर बीमारी, मार रहा लकवा, पेंटागन की रिपोर्ट से सनसनी