द ग्रेट चायनीज लोन ट्रैप: दुनिया के 58 देशों को चीन ने कैसे 'गुलाम' बना लिया?
अगर आप चीन द्वारा बांटे गये लोन की प्रकृति को देखेगें, तो पाएंगे कि चीनी कर्ज में अपारदर्शिता और हिंसा का समावेश है, जो उधार लेने वाले देशों के लिए एक फंदे से कम नहीं है।
नई दिल्ली, जून 23: चीन द्वारा दुनिया के अलग-अलग देशों को दिया गया लोन आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक द्वारा दिए गये लोन को जोड़ दें, तो उससे भी ज्यादा हो जाता है। 2020 में आई रिपोर्ट के मुताबिक चीन अब तक करीब 5.6 ट्रिलियन डॉलर का लोन बांट चुका है, जो भारत की जीडीपी का करीब करीब दो गुना है और विश्व में द्विपक्षीय संबंधों को तहत बांटे गये कुल लोन का 65 प्रतिशत है। 2017 में चायनीज सरकार द्वारा जारी एक व्हाइट पेपर के मुताबिक चीन ने अपने लोन को 'इंटरनेशनल डेवलपमेंट कॉपरेशन' कहा है, जो उसके साउथ-साउथ कॉपरेशन का हिस्सा है और चीन अपने इस लोन को 'वैश्विक समुदाय का जिम्मेदार देश' होने का कर्तव्य बताता है। लेकिन, असलियत इससे काफी अलग है और सच्चाई इससे काफी जुटा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि चीन ने विश्व के 58 देशों को अपने कर्ज के जाल में पूरी तरह से जकड़ लिया है, जिनमें पाकिस्तान और श्रीलंका भी शामिल हैं।
5.6 ट्रिलियन डॉलर लोन बांट चुका है चीन
द टाइम्स ऑफ इजरायल में फैबियन बौसार्ट ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि '' चीन जो कर्ज देता है, उसे वो वैश्विक कल्याण के वास्ते दिया गया कर्ज बताता है और कहता है कि उसका लोन बांटने का मकसद विश्व में सार्वजनिक तौर पर अच्छा काम करना है और वो एक वैश्विक समुदाय का जिम्मेदार देश होने के नाते ऐसा कर रहा है, लेकिन अगर आप चीन द्वारा बांटे गये लोन की प्रकृति को देखेगें, तो पाएंगे कि चीनी कर्ज में अपारदर्शिता और हिंसा का समावेश है, जो उधार लेने वाले देशों के लिए एक फंदे से कम नहीं है। चीन जिस तरह से लोन बांटता है और दो शर्तें लगाता है, उनसे छोटे देशों में आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है और वहां की राजनीति को चीन अपने हिसाब से चलने के लिए मजबूर करने लगता है और फिर उस देश की संप्रुभता ही खतरे में आने लगती है। इसके अलावा चीन जो लोन बांटता है, उसका करीब 60 प्रतिशत हिस्सा कॉमर्शियल रहता है और उसमें किसी भी तरह की कोई छूट नहीं रहती है, जो उस देश की डेवपलमेंट असिस्टेंस के नाम पर एक छल है।
लोन बांटने के पीछे चीन का मकसद
कर्ज देने से पहले चीन ने पूरी तरह से सुनिश्चित करता है कि उसका लोन किसी पब्लिक वेलफेयर के काम में ना जाए और जो लोन वो दे रहा है, उससे किसी विकासशील देश पर नियंत्रण बढ़े। चीन के लोन देने का मकसद उस देश का विकास करने के बजाए चीन का अपना विकास करने का मकसद होता है। उदाहरण के तौर पर चायना-पाकिस्तान कॉरिडोर में जो काम हुआ है, उसके लिए चीन ने पाकिस्तान को भारी ब्याज दरों पर कर्ज दिया है, लेकिन कर्ज के साथ साथ पाकिस्तान के हिस्से में भी जो काम हो रहा है, उसमें काम करने वाले मजदूर चीन के हैं और पाकिस्तान के लोगों को रोजगार नहीं मिला। वहीं काम चीन ने श्रीलंका में भी किया है। कोलंबो बंदरगाह के निर्माण के लिए चीन ने कर्ज दिया है और चीन के ही सारे कामगर हैं और वहां चीन के ही जहाज उतर रहे हैं। द टाइम्स ऑफ इज़राइल की रिपोर्ट के मुताबिक, "हाउ चाइना लेंड्स: ए रेयर लुक इन 100 डेब्ट कॉन्ट्रैक्ट्स विद फॉरेन गवर्नमेंट्स" शीर्षक से हाल ही में अप्रैल 2021 की रिपोर्ट में चीनी विदेशी उधार को लेकर सनसनीखेज रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।
चायनीज कर्ज- नन चायनीज कर्ज में तुलना
जर्मनी के कील इंस्टीट्यूट और वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट, एंड डेटा और पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स ने चीन द्वारा साल 2000 से 2020 तक 24 विकासशील देशों को बांटे गये लोन का अध्ययन किया है। इसके अलावा दुनिया के बाकी 142 देशों को मिले गैर-चीनी संस्थानों द्वारा बांटे गये लोन के साथ तुलना की गई है, जिन्हें 28 कॉमर्शियल संस्थान, या द्विपक्षीय संबंध या फिर बहुपक्षीय संबंधों द्वारा मिले गये है। इनके अध्ययन से पता चला है कि चीन जो कर्ज देता है, वो काफी कठोर शर्तों पर होता है।
सब कुछ छिपा हुआ
चीन के कर्ज में कर्ज अदायगी के लिए काफी कठोर नॉर्म्स को रखा जाता है, जिसमें सबसे बड़ा शर्त गोपनीयता की होती है, यानि कर्ज लेने वाले देश किन शर्तों पर चीन से कर्ज ले रहे हैं, वो उसे सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं। वहीं चीन ने उन्हें कितना कर्ज दिया है, ये भी बताने से मनाही होती है। जो सीधे तौर पर ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनोमिक कॉपरेशन एंड डेवलपमेंट यानि ओईसीडी के तय मानकों का उल्लंघन है। चीन द्वारा दिए गये 'अपारदर्शी' कर्ज से कर्ज लेने वाले देशों पर छिपा हुए कर्ज का भार काफी ज्यादा बढ़ जाता है और जनता को चीन द्वारा दिए गये कर्ज और कर्ज की शर्तों का पता ही नहीं लग पाता है। इसके साथ ही चीन जो कर्ज बांटता है, उसमें 'नो पेरिस क्लब' एग्रीमेंट अलग से रहता है। 'नो पेरिस क्लब' वह संस्था है, जिसमें विश्व के तमाम कर्ज बांटने वाले बड़े बड़े देश शामिल हैं, जो कर्ज लेने वाले देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और अगर कर्ज लेने वाला कोई देश कर्ज चुकाने में नाकाम साबित होता है तो फिर उसे रियायत की जाती है। लेकिन, चीन कर्ज देते वक्त सबसे पहले इस शर्त को हटाता है।
कर्ज देने के लिए चीन की शर्तें
कर्ज देने से पहले चीन कई कठोर शर्तें थोपता है। एक शर्त ये होता है कि चीन कभी भी कर्ज के कॉन्ट्रैक्ट को रद्द करने का अधिकार रहता है और कभी भी कर्ज का पूरा पैसा वापस मांग सकता है, चाहे कर्ज लेने वाले देश की स्थिति कैसी भी क्यों ना हो और कर्ज अदायगी से उसपर कोई भी फर्क क्यों ना पड़े। इसके साथ ही चीनी शर्त के मुताबिक, चूंकी 60 प्रतिशत कॉमर्शियल लोन होता है, लिहाजा जो काम होगा, उसमें चीन के लोगों के शामिल होने का शर्त अलग से रहता है। इसके साथ ही उस देश के पर्यावरण और कानून को पहुंचे नुकसान से चीन को कोई मतलब नहीं होगा, ये शर्त भी रहता है। ये शर्तें सीधे तौर पर कर्ज लेने वाले देश की संप्रभुता के लिए खतरा होते हैं। अगर चीन ने आपके देश के कानून को मानने से इनकार कर दिया है, तो जाहिर है वो आपके संविधान और संप्रभुता को मानने से इनकार कर रहा है। इसके साथ ही कभी भी पूरा पैसा मांगकर वो आपको अपाहिज कर सकता है और फिर आपकी जमीन पर कब्जा कर सकता है, जो उसने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह के साथ किया।
पॉलिटिकल सिस्टम पर कब्जा
कर्ज देने के अलावा चीन विकासशील देशों के पॉलिटिकल सिस्टम पर भी कब्जा करते जा रहा है। वो विकासशील देशों के नेताओं को रिश्वत खिलाता है, उस देश में अलग अलग परियोजनाओं के लिए टेंडर लेता है। यानि, चीन के लोन पर बनने वाले प्रोजेक्ट का टेंडर भी चीन के पास ही जाता है। उदाहरण के तौर पर जकार्ता-बांडुंग रेल परियोजना में चीन ने जापान के 0.1 प्रतिशत ब्याज दर की तुलना में 2 प्रतिशत ब्याद दर पर लोन देने का ऑफर दिया। फिर भी लोन जापान से नहीं लेकर चीन से लिया गया और रेल परियोजना का प्रोजेक्ट भी चीन की कंपनी को मिला। असल में गोपनीय शर्तों के जाल में फंसाकर, उस देश के भ्रष्ट नेताओं को रिश्वत में डूबोकर, एक तरह से चीन उस देश के सभी तंत्रों पर कब्जा करने लगता है। उदाहरण के तौर पर अब कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चायना ने पाकिस्तान की पॉलिटिकल पार्टियों से संबंध बनाने की पेशकश की है। जबकि संबंध दो देशों के बीच में होते हैं, दो देशों की पॉलिटिकल पार्टियों के बीच नहीं। रिपोर्ट में पता चला है कि चीन ने विश्व के 50 देशों को उनकी जीडीपी का 15 प्रतिशत से ज्यादा कर्ज दे रखा है और दुनिया के आठ देशों को उनकी जीडीपी का 45 प्रतिशत से ज्यादा कर्ज दे रखा है और एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये देश अब पूरी तरह से चीन के 'गुलाम' बन चुके हैं।
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