जिनके देशभक्ति के गाने से कांपते थे अंग्रेज, 102 साल के "जंग बहादुर सिंह" जी रहे गुमनामी की जिंदगी
जिनके देशभक्ति के गाने से कांपते थे अंग्रेज, 102 साल के "जंग बहादुर सिंह" जी रहे गुमनामी की जिंदगी
नई दिल्ली, 13 अगस्त: देश आजादी के 75 वर्ष पूरा होने की खुशी में अमृत महोत्सव का जश्न मना रहा है। इस मौके पर देश को स्वतंत्रता दिलवाने वाले वीर सपूतों को याद कर उन्हें सम्मानित किया जा रहा और उनकी वीर गाथाएं सुनाई जा रही हैं। लेकिन आज भी आजादी के ऐसे भी मतवाले हैं जो गुमनामी की जिंदगी बिता रहे हैं। ऐसे ही वीर सपूत हैं 102 साल के जंग बहादुर सिंह, जिनके देश भक्ति के गाने देशभक्तों में नया जोश भर देते थे और अंग्रेज जिसे सुनकर भयभीत होते थे वो आज आजादी के 75 साल बाद भी गुमनामी की जिंदगी बिता रहे हैं।
भोजपुरी लोकगायक जंग बहादुर काफी मशहूर हुए
बिहार के सिवान जिले के रघुनाथपुर के कौसड़ गांव में रहने वाले जंग बहादुर सिंह भोजपुरी लोकगायक हैं। 10 दिसंबर 1920 में सिवान में जन्में जंगबहादुर देश भक्ति के गीतों के लिए जाने जाते थे और 60 के दशक में जाने माने भोजपुरी लोकगायक थे। व्यास शैली के लोकगायक जंग बहादुर बिहार, बंगाल, यूपी और झारखंड में काफी मशहूर हुए।
Recommended Video
बिना माइक के दूर तक गूंजती थी आवाज
जंग बहादुर की खास बात ये हैं कि उनकी गायिकी में आवाज इतनी बुलंद थी कि वो बिना माइक के गाते रहे, उनकी आवाज बिना माइक के दूर-दूर तक उनकी आवाज गूंजती थी। लोग उनकी आवाज में ऐसे बंध जाते कि उनके पास आकर और गानों की फरमाइश करते। 102 साल की उम्र में भी उनकी आवाज बहुत सुरीली है।
जंग बहादुर के देशभक्ति के गाने से घबराते थे अंग्रेज
जंग बहादुर आजादी के पूर्व जब देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए क्रांतिकारी बिट्रिश हुकूमत से लड़ाई लड़ रहे थे तब जंग बहादुर लोगों में जोश जगाने के लिए अपनी बुलंद आवाज में देश भक्ति के तराने गाते थे। देश भक्ति के गीत गाते थे तो अंग्रेज हुकूमत के अधिकारी तक घबरा जाते थे । जिसका खामियाजा जंग बहादुर को जेल जाकर झेलना पड़ा। उनकी आवाज से घबरा कर अंग्रेजों ने उन्हें जेल में भी डाल दिया था लेकिन इसके बाद भी उनका देश भक्ति गीत बंद नहीं हुआ।
रजनीकांत ने 'राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को गर्व के साथ फहराने' का आग्रह करते हुए लिखी ये पोस्ट
पहलवानी करते हुए बन गए लोकगायक
भोर में राग भैरवी में गायन के धुरंधर जंग बहादुर सिंह पहलवानी करते थे। पहलवानी करते हुए लोकगायक बन गए। हालांकि जितना उन्हें बिहार में ख्याति और सम्मान मिलना चाहिए था वो नहीं मिला। शुरूआती दौर में पश्चिम बंगाल के आसनसोन में साइकिल कारखाने में दो जून की रोटी के लिए काम किया । जंग बहादुर रामायण और महाभारत के पात्रों की गाथा भी सुनाते थे।
स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिला
अपनी गायिकी के लिए हमेशा श्रोताओं की ताली से संतोष कर लेने वाले क्रांतिकारी गायक को आजादी के 75 साल बाद भी स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं दिया गया है।
बच्चों की मौत से टूटने के बाद गाना छोड़ दिया
1970 में अपने बेटे बेटी की मौत के बाद जंग बहादुर टूट गए और धीरे-धीरे लोक गायिकी से दूरी बना ली। 1980 में एक बेटे की कैंसर से मौत के बाद तो जंग बहादुर बिलकुल बिखर गए। जंग बहादुर मंचों पर गाना तो छोड़ दिया लेकिन मंदिर, शिवालय और मठ में अपनी तेज और सुरीली आवाज में भजन गाते हैं। जिंदगी में तमाम मुसीबतों झेलने वाले जंग बहादुर की हालत अब ये है कि वो देशभक्ति गीत गाते-गाते निर्गुण गाने लगते हैं।
जंग बहादुर को सम्मान और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा देने की उठी मांग
हालांकि 102 साल के आजादी के मतवाले लोकगायक जंग बहादुर के लिए कई संस्थाओं, कलाकारों समेत समाजसेवियों ने इन्हें सम्मान और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिए जाने की मांग तेज कर दी है। सोशल मीडिया पर भी इस आजादी के मतवाले को सम्मानित करने की मांग उठा रहे हैं।