कल्याण सिंह जी, मत कहो अकबर को बाहरी
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) क्या अकबर बाहरी थे? कम से कम राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह यही मानते हैं। समझ नहीं आता हमारे नेताओं को इतिहास खंगालने का शौक क्यों पैदा हो जाता है। अब कल्याण सिंह ने अकबर और महाराणा प्रताप के बीच तुलना करना चालू कर दिया है।
उन्होंने जयपुर के बिड़ला सभागार में अकबर और महाराणा प्रताप पर बोलते हुए कहा कि अकबर बाहरी था। कल्य़ाण सिंह ने अकबर को महान बताए जाने पर भी आपत्ति जताई। अकबर महान थे या नहीं, इस पर बहस हो सकती है।
नाइंसाफी होगी
पर, अकबर को बाहरी कहना इतिहास के साथ नाइंसाफी करना है। अकबर को बाहरी वह ङी शख्स कह सकता है,जिसे उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। उनका जन्म 14 अक्तूबर, 1542 को उमरकोट(अब पाकिस्तान) में हुआ था। मृत्यु 1605 में फतेहपुर सीकरी में हुई।
बाबर के पौत्र
वे मुगलवंश के संस्थापक बाबर के पौत्र थे। वे 1556 से अपनी मृत्यु तक देश के बादशाह रहे। अब जिस शख्स का जन्म भारत में हुआ हो, मृत्यु इसी धरती पर हुई हो, उसे बाहरी आप कैसे कह सकते हैं। ये बात कल्याण सिंह को कौन बताए-समझाए।
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हिन्दुओं को खास पद
अकबर के ही दौर में बीरबल, राजा मान सिंह और टोडरमल जैसे हिन्दुओं को अहम पद मिले। वे कुल मिलाकर धर्मनिरपेक्ष बादशाह थे। उन्होंने हिन्दू- मुसलमानों के बीच प्रगाढ़ संबंध स्थापित करने की भरसक कोशिश की।
साहित्यकारों को सुविधाएं
उनके दौर में संस्कृत, अरबी, फारसी, कश्मीरी साहित्यकारों को विशेष सुविधाएं दी जाती थीं। अकबर के दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी के दरबार में लगातार साहित्यकारों का सम्मान होता था। अकबर ने दीने- इलाही नाम के एक अलग धर्म की स्थापना की। जिसमें सभी धर्मों की खास बातों को सम्मिलित किया गया था।
सफल बादशाह
इतिहासकार गीता कहती हैं कि अकबर भारत के इतिहास के सबसे सफल बादशाह माने जा सकते हैं। उनके काल में देश आर्थिक रूप से मजबूत था। वे प्रगतिशील किस्म के इंसान थे। वे किसी से धर्म के आधार पर भेदभाव भी नहीं होता था।