इतिहास: जानिए सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में खास बातें
आंचल श्रीवास्तव
सातवीं या आठवीं कक्षा में हम लोगों ने सोशल साइंस के पेपर में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के बारे में पढ़ा था। आजकल मोहनजोदड़ो के नाम पर हम टीवी में हृतिक रोशन को इधर उधर भागते दौड़ते देखते हैं। बड़े बड़े सेट देखते हैं। फिल्म में क्या कहानी है ये तो उसके रिलीज़ होने पर ही मालूम होगा लेकिन चलिए आज हम वापस सातवीं आठवीं क्लास में जाकर अपने सामान्य ज्ञान पर चढ़ी धूल झाड़ते हैं।
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रेलवे लाइन बनवाने के लिए शुरू हुई खुदाई
सिन्धु घाटी सभ्यता जिसे इंडस वैली सिविलाइज़ेशन भी कहते हैं ; दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी। यह हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। 1856 ई. में 'जॉन विलियम ब्रन्टम' ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' का नाम दिया गया।
यूँ पड़ा नाम इंडस वैली
इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इससे एक बात सामने आई की यह सभ्यता सिन्धु नदी के किनारों तक सिमित है जिससे इसका नाम इंडस वैली सिविलाइज़ेशन पड़ा।
यह हैं महत्वपूर्ण नगर
अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों के केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं -
- हड़प्पा
- मोईनजोदारो
- चन्हूदड़ों
- लोथल
- कालीबंगा
- हिसार
- बणावली
क्या है मोईनजोदड़ों का अर्थ?
मुअन जो दड़ो / मोहनजोदाड़ो जिसका अर्थ 'मुर्दों का टीला है' 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। हड़प्पा, मेहरगढ़ और लोथल की ही शृंखला में मोहनजोदाड़ो में भी पुरातत्त्व खुदाई किया गया। यहाँ मिस्र और मेसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है।
क्या मिला है खुदाई में?
- मोहनजोदड़ो नगर से जो मानव प्रस्तर मूर्तियां मिली हैं, उसमें सेदाढ़ी युक्त सिर विशेष उल्लेखनीय हैं।
- मोहनजोदड़ो के अन्तिम चरण से नगर क्षेत्र के अन्दर मकानों तथा सार्वजनिक मार्गो पर 42 कंकाल अस्त-व्यस्त दशा में पड़े हुए मिले हैं।
- इसके अतिरिक्त मोहनजोदाड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है।
- पत्थर के बने मूर्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शैलखड़ी से बना 19 सेमी. लम्बा 'पुरोहित' का धड़ है।
- 14 सेमी का चूना पत्थर का बना एक पुरुष का सिर।
- मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा पर एक आकृति है जिसमें आधा भाग 'मानव' का है आधा भाग 'बाघ' का है। एक सिलबट्टा तथा मिट्टी का तराजू भी मिला है।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर बैल का चित्र अंकित नहीं है।
- मोहनजोदड़ो के नगर के अन्दर शव विसर्जन के दो प्रकार आंशिक शावाधान और पूर्ण समधिकरणके साक्ष्य मिले हैं।
यह भी हैं कुछ ध्यान देने योग्य बिंदु
सिन्धु सभ्यता का स्थल बहावलपुर (पाकिस्तान) सूखी नदी के किनारे स्थित है |रेडिओ कार्बन पद्धति से इस सभ्यता का कल 2300 -1750 ई. माना गया है। कृषि और पशुपालन इस सभ्यता के लोगो के मुख्या पेशे थे। वे गेहूं जाऊ, कपास, राइ, मटर, खजूर और अनार की खेती करते थे। सिन्धु सभ्यता की लिपि दायें से बाएं लिखी जाती थी। इस लिपि में 700 चिन्ह अक्षरों में से 400 के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है।
सिन्धु सभ्यता अपने समकालीन सभ्यतों से श्रेष्ठ थी
लेखन सेलखड़ी की आयताकार मुहरों पर किया जाता था। नगर निर्माण योजना की दृष्टि से सिन्धु सभ्यता अपने समकालीन सभ्यतों से श्रेष्ठ मानी गयी है, मोहनजोदड़ो में मिले स्नानागार की लम्बाई 54 .85 मीटर और चौड़ाई 32 .90 मीटर है |इसमें बने स्नान कुंड की लम्बाई 11 .88 मीटर और चौड़ाई 7.01 मीटर है।