पाइल्स के इलाज में सहायक है जोंक
गौरतलब है की प्रकृति ने हमें ऐसे कई नायब तोहफे दिए है जिन्हें हम अपना दुश्मन समझते हैं। ऐसा ही प्रकृति का एक तोहफा है लीच यानि जोंक जिसे देख मानों बस यही लगता है की अगर ये शरीर पर चिपक जाये तो बिना खून चूसे अलग नहीं हो सकती लेकिन आपको शायद ये नहीं मालूम की ये कई असाध्य रोगों के इलाज में भी कम आती है।
बीएचयू के आयुर्वेद विभाग में प्राचीन लीच पद्धति से फैलेरिया,पाइल्स,जैसे रोगों का इलाज किया जाता है। इंसान के अन्दर जो गन्दा खून संचरण होता है उसे जलोका विधि से बाहर निकाला जाता है।
डा .सुभाष चन्द्र (आयुर्वेद विभाग, बीएचयू) ने एक फोटो दिखाकर जानकारी देते हुए बताया की मरीज के शरीर पर चिपके जोंक और चेहरे पर चिपके जोंक को देख आप ये न सोचे की ये खून चूसने वाला कीड़ा है दरअसल ये कीड़ा खून तो चूस ही रहा है लेकिन ये उस खून को चूस रहा है जो गन्दा है और रोगों का सबसे बड़ा कारण है अलग अलग रोगों के हिसाब है लीच थिरेपी किया जाता है। औसतन 30 से 45 मिनट तक रोग ग्रस्त जगहों पर लीच को लगाया जाता है।
यही नहीं जोंक को इलाज से पहले हरिन्द्रा के चूर्ण में डुबोया जाता है तब उसका इस्तेमाल रोग पर किया जाता है ताकि गन्दा खून चूसने के साथ औषधि शरीर में जा सके। जलोका विधि का इस्तेमाल मुहासों, असाध्य घावों आदि के ठीक होने के लिए भी किया जाता है। इस विधि से कई लोगों को लाभ हुआ है जो बरसों से अंग्रेजी दवाइया खाकर परेशान थे।
बहुत सी आयुर्वेद पद्धति ऐसी है जो मेडिकल साइंस को भी मात देती है। जलोका पद्धति का इस्तेमाल प्लास्टिक सर्जरी में भी किया जाता जिसका कारगर उपयोग विदेशों में देखा जा सकता है। तो हुआ न ये खून चूसने वाला कीड़ा प्रकृति का नायब तोहफा।