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इंडिया गेट से: बिहार में एंटी लोटस आपरेशन की तैयारी

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भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान के आफ्टर इफेक्ट दिखाई देने शुरू हो गए हैं, जिस में उन्होंने कहा था कि क्षेत्रीय दल खत्म हो जाएंगे। राष्ट्रीय दल भी खत्म हो जाएंगे, सिर्फ भाजपा बचेगी। उनके इस बयान ने क्षेत्रीय दलों के नए गठबंधन की संभावनाएं बढा दी हैं।

know about Anti Lotus Operation in Bihar politices

यह 1996 में बने संयुक्त मोर्चे जैसा प्रयोग होगा, जिसमें कांग्रेस के समर्थन से केंद्र सरकार की बागडोर क्षेत्रीय दलों के हाथ में आ गई थी। कोई अगर यह समझता हो कि क्षेत्रीय दल अब उतने ताकतवर नहीं रहे, तो वह गलत फहमी में है। हां, कांग्रेस अब उतनी ताकतवर नहीं रही कि वह किसी की सरकार बनवाने की हैसियत रखती हो।

लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है और 2024 आते आते तीसरा मोर्चा खड़ा हो सकता है। राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनावों में हुई क्रास वोटिंग के बाद तीसरे मोर्चे के गठबंधन की कवायद चल रही है। इस का पहला प्रयोग उसी बिहार से हो रहा है, जहां जेपी नड्डा ने क्षेत्रीय दलों के खात्मे की भविष्यवाणी की है।

नड्डा के बयान का आफ्टर इफेक्ट यह है कि बिहार में एंटी लोटस आपरेशन शुरू हो गया है। इस समय भाजपा की मदद से चल रही नीतीश सरकार कभी भी भाजपा से दामन छुडा कर दुबारा लालू यादव की राजद का दामन थाम सकती है।

नीतीश कुमार ने 2015 का चुनाव लालू यादव के साथ लड़ा लेकिन 2017 में उनका दामन छोड़ कर भाजपा का दामन पकड़ लिया था। 2020 में भाजपा के साथ गठबंधन से चुनाव जीतने के बाद अब वह भाजपा का दामन छोड़ कर फिर लालू का दामन पकड़ने को तैयार हैं। तात्कालिक कारण जेपी नड्डा का बयान है, जिसने नीतीश कुमार को सतर्क कर दिया।

दूसरा कारण महाराष्ट्र का सत्ता परिवर्तन है। भाजपा ने महाराष्ट्र के मजबूत क्षेत्रीय दल शिवसेना को विभाजित कर के महा विकास आघाडी की सरकार तोड़ कर भाजपा समर्थित सरकार बनवा ली। हालांकि बिहार में भाजपा समर्थित सरकार ही है, लेकिन बिहार के भी दो उदाहरण नीतीश कुमार के लिए चेतावनी थे।

पहला उदाहरण 2020 के विधानसभा चुनावों में एनडीए से गठबंधन नहीं होने के बावजूद चिराग पासवान ने भाजपा उम्मीदवारों के सामने अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए, लेकिन नीतीश कुमार की जदयू के लगभग सभी उम्मीदवारों के सामने उम्मीदवार खड़े किए। नतीजा यह निकला कि भाजपा के मुकाबले जदयू छोटी पार्टी बन कर रह गई।

भाजपा को 74 और जेडीयू को 43 सीटें मिलीं। जदयू को बड़ा झटका लगा था, उसकी 28 सीटें घट गईं थीं। हालांकि सब से बड़ी पार्टी राजद बनी थी, जिसे भाजपा से एक ज्यादा 75 सीटें मिलीं थीं। लेकिन एनडीए को बहुमत मिला और ज्यादा सीटों के बावजूद भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया, क्योंकि वही चुनावी चेहरा थे।

नीतीश कुमार ने तब कहा था कि उन्हें पता ही नहीं चल सका कि कौन किस के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है, उनके उस बयान का अर्थ सब को समझ आया था कि भाजपा ने उन्हें कमजोर करने के लिए चिराग पासवान को इस्तेमाल किया। भले ही वह मुख्यमंत्री बन गए थे, लेकिन यह बात उनके दिमाग में हमेशा खटकती रही कि भाजपा से गठबंधन करके उन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत कम की है।

तीसरा कारण उन्हें यह खबर मिल रही थी कि जिस तरह चुनाव में भाजपा ने उनके खिलाफ चिराग पासवान का इस्तेमाल किया था, उसी तरह अब उनकी पार्टी के भीतर ही एक एकनाथ शिंदे भी ढूंढा जा रहा है और वह कोई और नहीं बल्कि जदयू कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री आरसीपी सिंह ही हैं। यह खबर मिलने के बाद ही उन्होंने एंटी लोटस आपरेशन की तैयारी शुरू कर दी थी।

पहले उन्होंने आरसीपी सिंह को राज्य सभा में फिर से भेजने से मना करके उनकी मंत्रिमंडल से छुट्टी करवाई और बाद में सोनिया गांधी और तेजस्वी यादव से बात की थी। उस समय राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव चल रहे थे। नीतीश कुमार ने यह भनक किसी को नहीं लगने दी कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। बीते कुछ महीने में नीतीश ने कई अहम केन्द्रीय बैठकों से दूरी बनाई हुई थी।

हाल में वह पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सम्मान में दिए गए भोज और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी दिल्ली नहीं आए। नीति आयोग की बैठक में नहीं आना बड़ी घटना होने का संकेत था। कहानी को मोड़ पर लाने के लिए उन्होंने आरसीपी सिंह की जगह केंद्र में दो मंत्री बनाने की मांग इसलिए रखी थी, क्योंकि उन्हें पता था कि भाजपा हाईकमान इसे मानेगा नहीं। जेपी नड्डा ने यह कह कर जले पर नमक छिडक दिया था कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएँगी।

इससे पहले कि आरसीपी सिंह जदयू में कोई आपरेशन लोटस कर पाते, नीतीश कुमार ने उनके खिलाफ ही कार्यवाही कर दी । हालांकि जदयू ने उनसे दस साल में खरीदी गई जिन 58 प्रापर्टी का हिसाब माँगा था, उनकी सूची किसी पार्टी कार्यकर्ता की बनाई हुई ही है। अब आरसीपी सिंह जदयू से बाहर हैं। जब पार्टी का पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री ही पार्टी से बाहर निकाल दिया गया है, तो किसी अन्य की एकनाथ शिंदे बनने की संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं। नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से दुबारा बात की है, लेकिन उन्होंने राजद से सीधी बात करने को कहा है।

पेंच मुख्यमंत्री पद पर फंसा है। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं, लेकिन राबडी देवी ने फच्चर फंसा दिया है कि राजद के 75 विधायक हैं, जबकि जदयू के सिर्फ 43 विधायक हैं, इस लिए मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगे। संख्या बल को देखते हुए ही सोनिया गांधी ने नीतीश कुमार को लालू यादव का रास्ता दिखाया है।

जदयू और राजद ने अपने अपने विधायकों और सांसदों को 9 अगस्त को पटना तलब किया है। जदयू की बैठक में अंतिम निर्णय का अधिकार नीतीश कुमार को और राजद की बैठक में अंतिम निर्णय का अधिकार लालू यादव को दिया जाएगा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह खिचडी पक पाएगी? जैसे ज्यादा विधायक होने के बावजूद भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री पद सौंपा हुआ है, क्या लालू यादव उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकार करेंगे? लालू यादव और राबडी देवी ऐसे नए गठबंधन के लिए तैयार हैं। लेकिन शर्त यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं, बल्कि उन का बेटा तेजस्वी यादव होगा।

क्या नीतीश कुमार भाजपा से इतने खफा हो चुके हैं कि वह मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार हो जाएंगे? वह मुख्यमंत्री पद को तरजीह देंगे या पार्टी बचाने को। नीतीश कुमार के सामने भविष्य का सपना है कि अगर क्षेत्रीय दलों का नया मोर्चा बन जाता है, तो वह उस मोर्चे के राष्ट्रीय संयोजक हो सकते हैं।

झंझारपुर के जेडीयू सांसद रामप्रीत मंडल ने कहा कि बिहार की राजनीति में कुछ भी संभव है। उन्होंने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि 1999 वाजपेयी सरकार गिराने के बावजूद सोनिया गांधी इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बन पाईं थीं क्योंकि मुलायम सिंह ने वीटो लगा दिया था। उस समय देश को चुनावों का सामना करना पड़ा था। राजनीति में सचमुच कुछ भी संभव है|

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

English summary
know about Anti Lotus Operation in Bihar politices
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