J&K में झेलम नदी से मिली भगवान विष्णु की दुर्लभ मूर्ति, जानिए इसकी खासियत
पुलवामा, 31 मार्च: जम्मू-कश्मीर में झेलम नदी से भगवान विष्णु की एक बहुत ही प्राचीन और दुर्लभ प्रतीमा मिली है। यह प्रतिमा बुधवार को झेलम नदी में कुछ मजदूरों को मिली, जो जम्मू और कश्मीर के अभिलेखागार, पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय को सौंप दी गई है। दरअसल, पुलिस को सूचना मिली थी के झेलम नदी से रेत निकालते वक्त वहां काम कर रहे मजदूरों को यह मूर्ति मिली और जब स्थानीय पुलिस को सूचना मिली तो उन्होंने मौके पर पहुंचकर इस तीन-सिर वाली भगवान विष्णु की मूर्ति को अपने कब्जे में ले लिया।
तीन-सिर
वाली
भगवान
विष्णु
की
मूर्ति
मिली-पुलवामा
पुलिस
एनएनआई
की
रिपोर्ट
के
मुताबिक
पुलवामा
पुलिस
ने
तीन-सिर
वाली
भगवान
विष्णु
की
मूर्ति
के
बारे
में
बयान
देकर
बताया
है
कि
'हमें
काकापोरा
के
लेलहर
गांव
के
कुछ
लोगों
की
ओर
से
जानकारी
मिली
थी
कि
कुछ
मजदूरों
को
झेलम
नदी
से
रेत
की
खुदाई
करने
के
दौरान
एक
प्रतिमा
मिली
है।
काकापोरा
पुलिस
स्टेशन
के
स्टेशन
हाउस
ऑफिसर
(एसएचओ
)
की
अगुवाई
में
एक
टीम
मौके
की
ओर
रवाना
हुई
और
तीन-सिर
वाली
भगवान
विष्णु
की
मूर्ति
को
अपने
कब्जे
में
ले
लिया।'
9वीं
शताब्दी
की
हो
सकती
है
मूर्ति
इसके
बाद
पुलवामा
पुलिस
ने
पुरातत्व
दल
को
इसके
बारे
में
बताया
और
सभी
कानूनी
प्रक्रिया
को
पूरा
करने
के
बाद
मूर्ति
जम्मू
और
कश्मीर
के
अभिलेखागार,
पुरातत्व
और
संग्रहालय
निदेशालय
को
सौंप
दी
गई
है।
अपुष्ट
जानकारी
के
मुताबिक
यह
दुर्लभ
मूर्ति
9वीं
शताब्दी
की
हो
सकती
है।
चतुर्व्यूह
विष्णु
मूर्ति
है-
मोनिदीपा
बोस-डे
लेकिन,
स्तंभकार
मोनिदीपा
बोस-डे
ने
भी
इसी
मूर्ति
की
एक
और
तस्वीर
अपने
ट्विटर
हैंडल
पर
शेयर
की
है
और
इसे
वितस्ता
(झेलम)
नदी
से
रेत
से
निकाली
गई
चतुर्व्यूह
विष्णु
मूर्ति
बताया
है।
उन्होंने
इसपर
और
भी
ट्वीट
किए
हैं
और
कहा
है,
'चतुर्व्यूह
श्री
विष्णु
के
अवतार
की
अवधारणा
का
प्रतिनिधित्व
नहीं
करते
हैं।
यहां
जो
चार
मुख
हैं,
वे
हैं
वासुदेव,
संकर्षण,
प्रद्युम्न
और
अनिरुद्ध।
विष्णुधर्मत्तोरा
के
मुताबिक,
चारों
मुख
चार
गुणों
का
प्रतिनिधित्व
करते
हैं:
बाल,
ज्ञान,
ऐश्वर्य
और
शक्ति।
'विष्णुधर्मोत्तारा 4 मुखों की दिशा देता है: सामने मानव चेहरा वासुदेव (पूर्व मुखी) का है, दाहिना चेहरा (शेर) दक्षिण मुखी संकर्षण का है, बायां (वराह) उत्तर मुखी और अनिरुद्ध का है, जबकि पीठ की ओर गुस्से में जो मुख है, पश्चिम की ओर वह (कपिल / रौद्र) प्रद्युम्न का है।'