अफगानिस्तान में भारत की राह हुई और मुश्किल! दोस्त रूस से मिला बहुत बड़ा झटका
अफगानिस्तान में रूस ने भारत को बड़ा झटका देते हुए ट्रायका फोरम में शामिल करने से मना कर दिया है।
काबुल, जुलाई 23: भारत और रूस भले ही सालों से दोस्त हैं, लेकिन अफगानिस्तान में रूस अब तक कई बार भारत को झटके दे चुका है और माना जा रहा है कि एक बार फिर से रूस से भारत को निराशा हाथ लगने वाली है। हालांकि, अफगानिस्तान शांति वार्ता में भारत के साथ रूस मजबूती के साथ खड़ा है, लेकिन अफगानिस्तान के लिए बेहद अहम 'ट्रायका फोरम' में भारत के शामिल होने को लेकर रूस ने अब तक फैसला नहीं किया है।
क्या है 'ट्रायका फोरम' ?
आपको बता दें कि 'ट्रायका फोरम' अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया के लिए बनाया गया बेहद अहम प्लेटफॉर्म है, जिसमें अमेरिका, चीन, रूस और पाकिस्तान शामिल है लेकिन, इसके विस्तारित प्रारूप में भारत की भागीदारी को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। माना जा रहा है कि भारत के पत्र में अमेरिका मजबूती के साथ खड़ा है, जबकि पाकिस्तान और चीन भारत के खिलाफ हैं और अब फैसला रूस के ऊपर है, कि वो भारत को इस ग्रुप का हिस्सा बनाना चाहता है या नहीं। दरअसल, 'ट्रायका फोरम' के जरिए अफगानिस्तान में स्थायी युद्ध विराम को बातचीत को समझौते के जरिए बढ़ावा दे रहा है, जिसकी शुरूआत दो साल पहले की गई थी।
रूस से भारत को बड़ी निराशा
पिछले हफ्ते रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने ताशकंद में अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित एक सम्मेलन में कहा था कि 'ट्रायका फोरम' में भारत और ईरान को शामिल करने पर रूस विचार कर रहा है। जिसके बाद 'ट्रायका फोरम' को लेकर भारत की उम्मीदें काफी बढ़ गईं थीं, लेकिन अगले दो दिनों के बाद ही रूस ने भारत को बड़ा झटका दे दिया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अफगानिस्तान मामले को लेकर विशेष दूत ज़मीर काबुलोव ने साफ कर दिया है कि 'ट्रायका फोरम' में भारत शामिल नहीं हो सकता है। इसके पीछे पुतिन के विशेष दूत ने कहा कि भारत का तालिबान पर कोई खास प्रभाव नहीं है।
अगले हफ्ते होने वाली है बैठक
रूस की समाचार एजेंसी तास की रिपोर्ट के मुकाबिक काबुलोव ने मंगलवार को राजधानी मॉस्को में कहा कि 'ट्रायका फोरम' की बैठक को अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा के लिए बुवाया गया है, जिसमें शांति के लिए समझौता करने पर बात होगी। उन्होंने कहा कि 'ट्रायका फोरम' में सिर्फ वो ही देश हिस्सा लेंगे, जिसका प्रभाव दोनों पक्षों पर हैं, जबकि तालिबान के ऊपर भारत का प्रभाव नहीं है, लिहाजा 'ट्रायका फोरम' में भारत शामिल नहीं हो सकता है। हालांकि, काबुलोव ने आगे कहा कि अफगानिस्तान में संघर्ष विराम के बाद रूस वहां पर भारत की सक्रिय भूमिका का स्वागत करने के लिए तैयार है। लेकिन, माना जा रहा है कि 'ट्रायका फोरम' की बैठक में भारत का शामिल नहीं होना बहुत बड़ा झटका है और ये झटका भारत को दोस्त रूस ने ही दिया है।
भारत को नजरअंदाज करता रूस
इससे पहले भी अफगानिस्तान में शांति वार्ता के लिए रूस ने एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था, जिसमें रूस ने अपने धूर विरोधी अमेरिका के साथ चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित किया था, लेकिन उस कॉन्फ्रेंस में भी भारत को आमंत्रित नहीं किया गया था। रूस द्वारा आयोजित उस सम्मेलन में तालिबान के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था और वो सम्मेलन पूरी तरह से 'ट्रायका फोरम' के जरिए ही हुई थी।
पाकिस्तान अटका रहा रोड़ा ?
रूस की समाचार एजेंसी टास के मुताबिक पुतिन के अफगानिस्तान मामलों के विशेष दूत काबुलोव ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच विरोधाभास की स्थिति है, जिसका असर अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर पड़ सकता है। टास ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ''भारत का मानना है कि पाकिस्तानियों ने अफगानिस्तान की स्थिति (तालिबान) का फायदा भारत के खिलाफ उठाने में किया है, वहीं पाकिस्तान का मानना है कि अफगानिस्तान की सीमाओं का इस्तेमाल भारत, पाकिस्तान के खिलाफ करना चाहता है, लिहाजा अविश्वास की स्थिति अफगानिस्तान के लिए सही नहीं है''। हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन भी भारत को ज्यादा से ज्यादा अफगानिस्तान से दूर रखना चाहता है, और पाकिस्तान चीन के साथ खड़ा है।
भारत को दूर रखना चाहता है रूस ?
वहीं, रूसी राष्ट्रपति के अफगान दूत काबुलोव की टिप्पणी पर अब राजनयिकों ने सफाई भी पेश ही की है। राजनयिकों ने कहा है कि अफगानिस्तान शांति वार्ता को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं किया गया है और ना ही कोई बदलाल किया गया है। वहीं, वार्ता में भारत को शामिल किया जाए या नहीं, इसको लेकर भी अभी तक रूस ने कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन सवाल ये है कि अफगानिस्तान के विकास में अहम भागीदारी निभाने वाले भारत को इस बैठक से दूर रखना कहां तक सही है? वहीं, रूसी मीडिया का कहना है कि तालिबान के बढ़ते प्रभाव से रूस भी चिंतित है और रूस को लगता है कि तालिबान अगर मजबूत होता है तो मध्य एशिया में चरमपंथ फिर से पनप सकता है। खासकर रूस चेचन्या की स्थिति को लेकर काफी चिंतिति है, लेकिन फिर भी रूस ने भारत को लेकर अभी तक अपना मन नहीं बनाया है, जबकि अमेरिका लगातार इस बैठक में भारत को शामिल करने के लिए कह रहा है। व्हाइट हाउस का कहना है कि भारत को अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया का हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए।
तालिबान ने किया आधे से ज्यादा अफगान जिलों पर कब्जा, यूएस सैन्य अधिकारी का दावा, खतरे में 'लाइफ लाइन'