ब्लैक फंगस के बाद कोविड पीड़ित बच्चों की किस समस्या ने बढ़ाई डॉक्टरों की चिंता, जानिए
बेंगलुरु, 23 मई: देशभर के डॉक्टर इस वक्त कोविड-19 से उबर चुके लोगों पर ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस के अटैक से निपटने में उलझे हुए हैं। लेकिन, ऐसे वक्त में कोरोना से ठीक होने वाले बच्चों में एक ऐसी बीमारी फैलने लगी है, जिसने डॉक्टरों में हड़कंप मचा दिया है। नई तरह की बीमारी पोस्ट-कोविड का मामला है और कोरोना से ठीक हुए बच्चों में एक से डेढ़ महीने बाद सामने आती है। सबसे बड़ी बात ये है कि मल्टी-सिस्टम इंफ्लेमैटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रेन नाम की यह बीमारी शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को ही नुकसान पहुंचाने लगती है और दूसरी लहर के पीक खत्म होने के बाद एक्सपर्ट इस तरह के मामले बढ़ने की आशंका से चिंतत हो रहे हैं।
हार्ट, लिवर और किडनी पर असर
देश का पूरा हेल्थ सिस्टम इस समय कोरोना की दूसरी लहर के बीच में ही ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस के खिलाफ जंग लड़ने के लिए इंफ्रास्टरक्चर मजबूत करने में जुटा हुई है। लेकिन, इसी दौरान मल्टी-सिस्टम इंफ्लेमैटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रेन (एमआईएस-सी) नाम की बीमारी ने डॉक्टरों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। हालांकि, एमआईएस-सी के ज्यादातर मामले ज्यादा जानलेवा नहीं होते हैं, लेकिन टेंशन की वजह ये है कि इसकी वजह से बच्चों के हार्ट, लिवर और किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचता है। यह बीमारी कई हफ्तों तक कोरोना से लड़ चुके बच्चों में उससे ठीक होने के बाद देखी जा रही है। डॉक्टरों के मुताबिक कोविड से लड़ने के लिए पैदा हुए एंटीजन के खिलाफ शरीर की प्रतिक्रिया की वजह से यह समस्या पैदा हो रही है।
कोविड इंफेक्शन के 4 से 6 हफ्ते बाद होती है यह बीमारी
एक्सपर्ट का कहना है कि भारत के अलावा दूसरे देशों में भी कोरोना की लहर के बाद एमआईएस-सी के मामले बड़ी संख्या में सामने आ चुके हैं। फोर्टिस हेल्थकेयर में पीडियाट्रिशियन डॉक्टर योगेश कुमार गुप्ता ने कहा है, 'मैं नहीं कहूंगा कि यह (एमआईएस-सी) खतरनाक या जानलेवा है, लेकिन बेशक, कई बार यह बच्चों को बहुत ज्यादा प्रभावित कर देता है। यह बच्चों के हार्ट, लिवर और किडनी जैसे अंगों को प्रभावित कर सकता है। यह समस्या इंफेक्शन होने के 4 हफ्तों या 6 हफ्तों के बाद होती है।' हालांकि, डॉक्टर गुप्ता ने कहा है कि बच्चों को कोविड-19 से ज्यादा जोखिम एमआईएस-सी है। उनका कहना है, 'ऐक्टिव कोविड इंफेक्शन को लेकर हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनमें से ज्यादातर मामले हल्के से लेकर मध्यम लक्षण वाले होते हैं, लेकिन जब वे एकबार ठीक हो जाते हैं और उनमें एकबार एंटीबॉडी बन जाती है, तब बच्चों में ये एंटीबॉडी किसी तरह से रिएक्ट करने लगते हैं। यह एक एलर्जी या शरीर में रियेक्शन की तरह है।'
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लहर खत्म होने के बाद मामले बढ़ने की आशंका
डॉक्टर गुप्ता ने चिंता जताई है कि जब एक बार कोविड का उच्चम स्तर खत्म हो जाएगा तो इसके ज्यादा मामले सामने आ सकते हैं। उन्होंने कर्नाटक का हवाला देकर बताया कि वहां के फोर्टिस हेल्थकेयर में ही पिछले साल इसके तीन केस देखने को मिले थे और इसबार अबतक दो केस सामने आ चुके हैं। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में एपिडेमोलॉजिस्ट और राज्य के कोविड टेक्निकल एडवाइजरी कमिटी के मेंबर डॉक्टर गिरिधर आर बाबू ने कहा है कि 'अगर इसका प्रतिशत बहुत कम भी है तो भी इसकी पूरी जांच की जरूरत है। अगली लहर से पहले एक स्पष्ट समझ विकसित करने की आवश्यकता है।' डॉक्टर बाबू का कहना है कि 'पहले तो बच्चों को इंफेक्शन से बचाना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण विषय है और उसके बाद जल्द से जल्द संभावित लक्षणों की पहचान करके उन्हें स्पेशलिस्ट के पास भेजने की जरूरत है। '(तस्वीरें-सांकेतिक)