जानिए गणेश की सवारी मूषक के बारे में ये चौंकाने वाली बात
नई दिल्ली। भगवान गणपति के सभी आराधक उनके अद्भुत रूप के ही अनुरूप उनके अनूठे वाहन को देखकर आश्चर्यचकित होते आए हैं। इतने बड़े और भारी शरीर वाले भगवान गणेश ने एक नन्हे से चूहे को अपना वाहन क्यों चुना, इस पर हैरानी होना स्वाभाविक भी है।
आइए, जानते हैं ऐसा क्यों है...
प्राचीन काल में गजमुख नाम का एक महाभयंकर असुर हुआ करता था। वह पूरी धरती के साथ पाताल और स्वर्ग पर भी अधिकार करना चाहता था। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर वरदान लेने की योजना बनाई।
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गजमुख घने जंगल में जाकर शिव की तपस्या में लीन हो गया। कई वर्ष बीत गए और वह बिना कुछ खाए-पीए, एक पैर पर खड़ा होकर भगवान शिव के नाम का जाप करता रहा।
वरदान मांगने को कहा
अंततः भगवान शिव प्रकट हुए और गजमुख से वरदान मांगने को कहा। गजमुख ने कहा कि हे भगवन्! मुझे ब्रह्मांड का कोई अस्त्र ना मार सके, ऐसा वरदान दीजिए। शिव जी ने तथास्तु कहकर वरदान स्वीकृत कर दिया।
गजमुख वरदान पाकर बहुत प्रसन्न हुआ
गजमुख अपना मनचाहा वरदान पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और तुरंत ही अपनी इच्छा पूरी करने में जुट गया। बहुत ही शीघ्र उसने पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन कर लिया और फिर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। शिव जी के वरदान के अनुसार कोई भी अस्त्र-शस्त्र गजमुख का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता था, इसलिए उसके सामने देवताओं के दिव्यास्त्र भी टिक ना सके।
गणपति के भी सारे अस्त्र-शस्त्र समाप्त
देखते ही देखते उसने देवलोक से देवताओं को खदेड़ दिया। सारे देवता घबराकर त्रिशक्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शरण में पहुंचे। देवों की समस्या को देखकर शिवजी ने अपने पुत्र गणेश को गजमुख से युद्ध करने भेजा। इसके बाद भगवान गणेश और गजमुख में भयंकर युद्ध हुआ। भगवान शिव के वरदान के कारण गजमुख पर कोई अस्त्र प्रभाव ही नहीं कर रहा था, सो गणपति के भी सारे अस्त्र-शस्त्र समाप्त और प्रभावहीन हो गए।
दांत वास्तव में एक अस्त्र नहीं था...
इसी बीच एक क्षण निहत्थे हो जाने पर गणपति ने अपना एक दांत तोड़कर गजमुख को दे मारा। दांत वास्तव में एक अस्त्र नहीं था, इसीलिए वह अचूक प्रमाणित हुआ और गजमुख गंभीर रूप से घायल हो गया। इसके बावजूद गजमुख ने हार नहीं मानी। उसने अपनी माया से विशाल चूहे का रूप धरा और पूरे वेग से गणपति की तरफ दौड़ने लगा। जब गणपति ने उसे अपनी तरफ आते देखा, तो वे भी पूरी गति से गजमुख की तरफ दौड़ने लगे और उसके समीप आते ही कूदकर उसकी पीठ पर जा बैठे।
गजमुख ने हार मान ली
गजमुख ने अपनी पूरी ताकत लगाकर गणपति को पटकना चाहा और गणेश भी पूरी ताकत से उसकी गर्दन पर सवार रहे। आखिरकार लंबे संघर्ष के बाद गजमुख ने हार मान ली। इसके बाद भी गणेश जी ने उसे नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि तुम स्वभाव से ही उत्पाती हो। इसीलिए यह अधिक उत्तम होगा कि तुम हमेशा इसी रूप में मेरा वाहन बनकर रहो, ताकि मैं हमेशा तुम्हारी सवारी कर तुम्हारी कुबुद्धि को नियंत्रित रखूंगा। गजमुख ने उनका आदेश स्वीकार किया और भगवान का वाहन बन गया।