क्या मध्यप्रदेश में भाजपा भी शिवराज मुक्त हो गयी है?
नई दिल्ली। तीन राज्यों में पराजय के बाद भाजपा आलाकमान ने अपने तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा राजे को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकार उन्हें दिल्ली बुला लिया गया है। भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्रियों के मुकाबले इन तीनों का अपने-अपने राज्यों में ठोस जनाधार है और उन्हें मोदी-शाह के 'गुड लिस्ट' में भी नहीं माना जाता है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद तीनों ही नेता अपने-अपने राज्यों में सक्रिय थे। ऐसा माना जा रहा है कि इन तीनों को बिना उनकी इच्छा के राष्ट्रीय राजनीति में धकेल दिया गया है जिससे इन प्रदेशों में पार्टी संगठन को इनकी छत्र छाया से मुक्त करके यहां उनकी जड़ों को कमजोर किया जा सके।
शिवराजसिंह चौहान ही ऐसे नेता थे जिनका भविष्य सबसे ज्यादा दांव पर
तेरह साल का जलवा मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में शिवराजसिंह चौहान ही ऐसे नेता थे जिनका भविष्य सबसे ज्यादा दांव पर था। वे पिछले तेरह सालों से मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज थे। इस दौरान प्रदेश भाजपा संगठन में उनके समकक्ष कोई दूसरा नेता खड़ा नहीं हो सका और सबकुछ शिवराज की मर्जी से ही चला। हालांकि उन्हें केवल बाहर से ही नहीं बल्कि भाजपा के अंदर से भी घेरने की कोशिश की गयी है लेकिन वे हर चुनौती से पार पाने में कामयाब रहे हैं। उमा भारती, बाबूलाल गौर, प्रभात झा, अनूप मिश्रा, लक्ष्मीकांत शर्मा और कैलाश विजयवर्गीय से मिलने वाले चुनौतियों का मुकाबला उन्होंने बहुत ही करीने से किया।राज्य के मुख्यमंत्री रहने के पहले भी शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के महासचिव पद पर तैनात थे। 2005 में जब भाजपा नेतृत्व द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर मध्यप्रदेश भेजा गया तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि शिवराज इतनी लंबी पारी खेलेंगे। इस दौरान वे पार्टी के अंदर से मिलने वाली हर चुनौती को पीछे छोड़ने में कामयाब रहे। मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज इकलौते राजनेता हैं जो लगातार तेरह सालों तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस चुनाव में भी भले ही भाजपा की हार हुई है लेकिन पंद्रह साल की एंटी इन्कंबैंसी के बावजूद अगर भाजपा इतने करीबी अंतर से सत्ता से बाहर हुई है तो उसका पूरा श्रेय शिवराज को ही दिया जा रहा है।लोप्रोफाईल, उदार और सहज नेता की छविभाजपा के अन्दर शिवराजसिंह की गिनती उन चुनिन्दा नेताओं में होती है जो अपनी छवि एक उदार नेता के तौर पर गढ़ने में कामयाब रहे हैं। उनकी शैली टकराव की नहीं बल्कि लोप्रोफाईल, समन्वयकारी और मिलनसार नेता की है। इतने लंबे समय तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी शिवराज सहज, सरल और सुलभ बने रहे यही उनके अबतक के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी और ताकत है।
मोदी और शिवराज में एक फर्क है
उनके पक्ष में कई और बातें भी हैं जैसे उनका ओबीसी समुदाय से होना और हिंदी ह्रदय प्रदेश का मास लीडर होना। इसके अलावा अपने विरोधियों से मेल-जोल बनाए रखने व जनता के साथ घुल-मिल कर उनसे सीधा रिश्ता जोड़ लेने की उनकी काबिलियत अद्भुत है। उनकी कोशिश होती है कि जनता उन्हें अपने में से ही एक समझें ना की कोई चमत्कारी दैवीय ताक़तों वाला हीरो। शायद इसी वजह से मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने भरे मंच से शिवराजसिंह की तारीफ करते हुये कहा था कि "मोदी और शिवराज में एक फर्क है, शिवराज जी तमीज से बोलते हैं और नरेंद्र मोदी जी तमीज से बोलना नहीं जानते हैं।"सबसे बड़ी बात मुख्यमंत्री के तौर पर अपने 13 सालों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने इस बात को बखूबी साबित करके दिखाया है कि कैसे बिना कोई विवाद खड़ा किये संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सकता है। शिवराज बदलते वक्त के हिसाब से अपने आप को ढाल लेने में भी माहिर हैं। 2014 में पार्टी के अंदरूनी समीकरण बदल गये थे लेकिन तमाम आशंकाओं के बीच वे अमित शाह और नरेंद्र मोदी के केंद्रीय नेतृत्व से तालमेल बिठाने में कामयाब रहे थे।कैसे शिवराज की खूबियां उन्हें मोदी का विकल्प बनाती है ? शिवराज की यह छवि नरेंद्र मोदी के बिलकुल विपरीत है जो उन्हें मोदी से अलग तो करती ही हैं साथ ही जरूरत पड़ने पर उन्हें भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी का विकल्प भी बना सकती हैं, भाजपा के लिये दूसरा कामयाब मुखौटा बनने की उनमें अपार संभावनायें हैं।
शिवराज सिंह चौहान ने बीमारू मध्यप्रदेश को जो विकास की राह दिखाई
लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता पहले से ही गुजरात विकास माडल के बरअक्स मध्यप्रदेश का माडल पेश करते रहे हैं, छुपे तौर पर ही सही पिछले लोकसभा चुनाव से पहले शिवराजसिंह चौहान का नाम भी प्रधानमंत्री के तौर पर उछाला गया था।दरअसल उन्हें नरेंद्र मोदी के विरोधी खेमे का माना जाता रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान वो आडवाणी के ज्यादा करीब रहे। इस दौरान शिवराज ने ना सिर्फ आडवाणी को मंच पर जगह दी बल्कि उन्हें मध्यप्रदेश आकर चुनाव लड़ने का न्यौता भी दिया था। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की चौथी सूची में अपना नाम ना पाने पर लाल कृष्ण आडवाणी ने ऐलान कर दिया था कि वे गांधी नगर छोड़ कर मध्यप्रदेश से चुनाव लड़ेंगे। इसके बाद भोपाल की सड़कों पर होर्डिंग्स लगाये गये थे जिस पर लिखा था 'लालकृष्ण आडवाणी का भोपाल लोकसभा क्षेत्र में अभिनंदन।' बदले में आडवाणी ने उनकी तारीफ करते हुये कहा था कि नरेंद्र मोदी ने तो विकसित गुजरात को आगे बढ़ाया लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने बीमारू मध्यप्रदेश को जो विकास की राह दिखाई है वह काबिले तारीफ है । शायद इसी वजह से मोदी और शाह की जोड़ी इस बात को बखूबी समझती है कि अगर वे 2019 के लोकसभा चुनाव में थोड़ा भी कमजोर पड़ते हैं तो शिवराज सिंह की दावेदारी सामने आ सकती है इसलिये शिवराज को उनके मजबूत किले से बाहर निकालना जरूरी है। शायद शिवराज भी इस हकीकत को समझते हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर मकर संक्रांति की शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने एक वीडियो संदेश जारी किया किया था। इस वीडियो के बैकग्राउंड में लाल कृष्ण आडवाणी की एक बड़ी सी तस्वीर भी नजर आ रही है। इसके कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं जो पार्टी आलाकमान के साथ चल रही उनकी खींचतान को जाहिर करता है।
मैं केंद्र की राजनीति में नहीं जाऊंगा
मध्यप्रदेश बदर शिवराज ?शिवराज मध्यप्रदेश की सियासत में ही सक्रिय रहना चाहते थे। चुनाव हारने के बाद वे लगातार इस बात का संकेत दे रहे थे कि उनका इरादा मध्यप्रदेश में ही रहने का है और वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगें। इस सम्बन्ध में वे दो टूक घोषणा भी कर चुके थे कि "मैं केंद्र की राजनीति में नहीं जाऊंगा। मैं मध्यप्रदेश में ही रहूंगा और यहीं मरूंगा"। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने प्रदेश के 52 ज़िलों में आभार यात्रा निकालने की घोषणा भी की थी। विधानसभा के पहले सत्र में भी वे पूरी तरह सक्रिय थे और कमान अपने हाथों में रखने की कोशिश कर रहे थे। वंदेमातरम विवाद पर भी कमलनाथ सरकार को घेरने में वे सबसे आगे थे। दरअसल चुनाव हारने के बाद शिवराज किसी भी स्थिति में मध्यप्रदेश नहीं छोड़ना चाहते थे और सूबे में अपनी स्थिति को मजबूत बनाये रखना चाह रहे थे। लेकिन आलाकमान द्वारा बार-बार संकेत दिया जा रहा था कि शिवराज को मध्यप्रदेश छोड़ना होगा। पहले वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की दावेदारी जता रहे थे लेकिन इसे साफ-तौर पर खारिज कर दिया गया, इसके बाद उनकी कोशिश अपने किसी चहेते को इस पद के लिये आगे बढाने की थी लेकिन गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया जो आलाकमान के करीबी माने जाते हैं। इसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से एक दिन पहले शिवराजसिंह चौहान को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर केंद्रीय टीम में शामिल कर लिया गया। जिसपर कमलनाथ सरकार के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने चुटकी लेते हुये कहा कि "राज्य से टाइगर को निष्कासित कर दिल्ली भेज दिया गया"। आलाकमान के इस कदम को शिवराज सिंह चौहान पर शिकंजा कसने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है जिससे राज्य में उनकी स्थिति को कमजोर किया जा सके।जमीन ना छोड़ने की जिद लेकिन इन सबके बावजूद शिवराज अभी भी मध्यप्रदेश में ही डटे हुये है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
VIDEO: जब पीएम मोदी ने बोला 'उरी' फिल्म का डायलॉग 'हाउज द जोश'