Mahoba: रियल लाइफ 'बजरंगी भाईजान' ने एक मासूम को पहुंचाया उसके घर, मुस्लिम परिवार के लिए साधू बना फरिश्ता
मुस्लिम परिवार के लिए साधु एक फरिस्ता बनकर सामने आया और उसने बिछड़े किशोर को उसके परिवार से मिला दिया। अपने बच्चे को पाकर मुस्लिम परिवार के लोग ख़ासा प्रसन्न है और साधु को धन्यवाद दें रहे है।
उत्तर प्रदेश के महोबा में सांप्रदायिक सद्भावना और मानवता का संदेश देता एक मामला सामने आया है। स्कूल से लापता हुए मुस्लिम लड़के को उसके परिजनों से एक साधु ने मिलाने का काम किया है। मुस्लिम परिवार के लिए साधु एक फरिस्ता बनकर सामने आया और उसने बिछड़े किशोर को उसके परिवार से मिला दिया। अपने बच्चे को पाकर मुस्लिम परिवार के लोग ख़ासा प्रसन्न है और साधु को धन्यवाद दें रहे है। बच्चे के परिजनों का कहना है कि 'साम्प्रदायिक सौहार्द को खराब करने वालो के मुंह पर बड़ा तमाचा है। साधु ने धर्मों से बढ़कर इंसानियत की बड़ी मिशाल पेश की है।' इसरार से किशन बना मासूम अब अपनो के पास है।
फिल्म 'बजरंगी भाईजान' की याद दिला देगा यह मामला
दरअसल,
मध्यप्रदेश
के
छतरपुर
जनपद
के
चंदला
थाना
क्षेत्र
अंतर्गत
ग्राम
मनुरिया
में
रहने
वाले
मुबीन
ने
अपने
सबसे
बड़े
9
वर्षीय
पुत्र
इसरार
और
पुत्री
नसरीन
को
महोबा
शहर
के
शाहपहाडी
रोड
में
संचालित
मदरसे
में
पढ़ने
के
लिए
भेजा
था।
जहां
वर्ष
2019
में
इसरार
मदरसे
में
ही
पढ़ने
वाले
गुफरान
के
साथ
भाग
गया।
दोनो
बच्चे
ट्रेन
से
झांसी
पहुंच
गये
जिसके
बाद
किसी
तरह
गुफरान
तो
वापस
लौट
आया
लेकिन
इसरार
का
कोई
पता
नही
चला।
पिता
मुबीन
और
मां
मुबीना
अपने
बच्चे
की
तलाश
को
लेकर
महोबा
शहर
कोतवाली
में
आकर
फरियाद
करते
रहे
तो
पुलिस
ने
भी
गुमशुदगी
दर्ज
कर
लापता
इसरार
की
तलाश
की
मगर
उसका
कोई
पता
नही
चल
पाया।
इस
बात
को
देखते
देखते
4
वर्ष
बीत
गए
लेकिन
उसका
कोई
पता
न
चला
जिससे
परिवार
और
पुलिस
दोनो
ही
नाउम्मीद
हो
चुके
थे।
मगर
अचानक
एक
साधु
ने
मुबीन
के
घर
पहुँचकर
उसे
उसके
खोए
बच्चे
से
मिला
दिया।
बताया
जाता
है
कि
भटकते
हुए
इसरार
को
जनपद
जालौन
के
उरई
में
रहने
वाला
एक
व्यक्ति
अपने
साथ
ले
गया।
जिसका
नाम
उसने
किशन
रख
दिया
पर
उक्त
व्यक्ति
ने
वर्ष
2020
में
ढकोर
थाना
क्षेत्र
के
मोहम्दाबाद
में
सत्यानंन्द
ब्रह्मचारी
के
आश्रम
में
इसरार
को
अपना
पुत्र
किशन
बताकर
छोड़
दिया।
संदिघ्ध व्यक्ति को मिला था इसरार
जहां इसरार से किशन बना नाबालिग शिक्षा ग्रहण करता रहा और साधु सत्यानंन्द ब्रह्मचारी की सेवा में लगा रहा। बीती 4 नवंबर को अचानक आश्रम में आकर वही व्यक्ति जिसने बच्चे को साधू के पास छोड़ा था, बच्चे को लेकर कानपुर चला गया। इस बीच साधु बच्चे को तलाशता रहा।15 दिन बाद जब उसे पता चला कि बच्चा उरई में है तो साधु उसे लेने पहुंच गया जहां उक्त व्यक्ति ने बच्चा देने से मना कर दिया और बताया कि बच्चे से मुझे काम कराना है वो मेरी संतान नही बल्कि एक मुस्लिम परिवार का खोया हुआ बच्चा है। जिसके बाद साधु बच्चे से पूरी जानकारी लेकर मध्यप्रदेश के मनुरिया गांव पहुंचा और मुस्लिम परिवार के बिछड़े मासूम को मिलाया। साधु मुबीन और मुबीना के लिए मसीहा बन गया। अपने बच्चे को पाकर मां-बाप के चहेरे खिल उठे। जो अब बार बार साधु को धन्यवाद दें रहे है।
साधू ने किया सराहनीये काम
वहीं
परिवार
ने
पुलिस
को
खोए
इसरार
के
मिलने
की
खबर
दी।
जिस
पर
पुलिस
साधु
सहित
बच्चे
और
परिवार
को
कोतवाली
ले
आई
है।
जिसके
बाद
मासूम
को
चाइल्ड
लाइन
को
सौपने
के
बाद
आगे
की
कार्यवाही
की
जाएगी।
वहीं
साधु
सत्यानंद
ब्रह्मचारी
बताता
है
कि
उसने
एक
बड़े
पुण्य
का
काम
किया
है।
बिछड़े
मां-बाप
से
उसके
पुत्र
को
मिलाकर
उसने
सही
धर्म
निभाया
है।
दरअसल,
जब
भी
सांप्रदायिक
हिंसा
भड़कती
है,
तो
इससे
न
केवल
अनेक
परिवारों
की
क्षति
होती
है
बल्कि
पूरे
समाज
और
देश
की
क्षति
होती
है,
इंसानियत
की
मूल
भावना
भी
इससे
बहुत
आहत
होती
है।
भारत
में
हिंदू
और
मुसलमान
दोनों
समाज
के
लोग
हज़ारों
साल
से
साथ
में
रहते
चले
आए
हैं।
भारत
में
हिंदू
मुस्लिम
एकता
के
खूब
नारे
भी
लगते
हैं
और
खूब
कोशिशें
भी
होती
हैं,
लेकिन
नतीजा
वही
जस
का
तस
रहता
है।
अत
इस
मामले
में
साधू
जैसे
व्यक्ति
से
प्रेरणा
प्राप्त
करते
हुए
हमें
मजहबी
एकता
के
लिए
निरंतरता
से
प्रयास
करने
चाहिए।
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