लोकसभा चुनाव: झारखंड की चार सीटों पर दिग्गजों की अग्निपरीक्षा
रांची। लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण का मतदान छह मई को होने जा रहा है। झारखंड में यह दूसरा चरण होगा। इस चरण में रांची, हजारीबाग, कोडरमा और खूंटी में मतदान होगा। राज्य की ये चारों सीटें बेहद प्रतिष्ठित हैं। इन सीटों से ही झारखंड का राजनीतिक भविष्य तय होना है, इसलिए दिग्गजों ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी है। जहां तक पिछले चुनाव का सवाल है, तो इन चारों सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों ने परचम लहराया था, लेकिन इस बार परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। इन चारों सीटों पर भाजपा को बेहद कड़ी चुनौती मिल रही है। तीन सीटों पर तो भाजपा ने अपने उम्मीदवार भी बदल दिये हैं। इसलिए उसका सफर और भी कठिन हो गया है। इस चरण की एक और खास बात यह है कि इन चारों सीटों पर एक केंद्रीय मंत्री, दो पूर्व केंद्रीय मंत्री, दो पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य की एक पूर्व मंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
रांची में भाजपा की राह में कांटे ही कांटे
सबसे पहले रांची की बात करें। राजधानी होने के कारण स्वाभाविक तौर पर यह प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित सीट है। यह सीट पिछली बार भाजपा के रामटहल चौधरी ने जीती थी। उन्होंने लगभग सीधे मुकाबले में कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को पराजित किया था। इस बार भाजपा ने चौधरी को टिकट नहीं देकर संजय सेठ को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर सुबोधकांत सहाय पर ही भरोसा जताया है। चौधरी यहां से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि उनके मैदान में रहने से भाजपा के वोट बंटेंगे और इसका सीधा लाभ कांग्रेस प्रत्याशी को होगा। हालांकि संजय सेठ के लिए भाजपा के साथ-साथ आजसू और एनडीए के अन्य घटक दल खूब पसीना बहा रहे हैं। प्रधानमंत्री यहां रोड शो कर चुके हैं और मुख्यमंत्री गलियों की खाक छान रहे हैं। संजय सेठ को चुनाव राजनीति का अनुभव नहीं है, जबकि उनके दोनों प्रतिद्वंद्वी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव कई बार लड़ चुके हैं। अब यह भाजपा पर निर्भर करेगा कि उसका बूथ मैनेजमेंट कैसा होता है। जहां तक मुद्दों की बात है, तो इस बार यहां राष्ट्रवाद का मुद्दा हावी है और न ही भ्रष्टाचार-चौकीदार का। रांची संसदीय सीट पर कुल 20 उम्मीदवारों की राजनीतिक किस्मत का फैसला 19 लाख 10 हजार 955 मतदाता करेंगे।
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हजारीबाग में त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे हैं जयंत सिन्हा
हजार बागों के शहर हजारीबाग में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा प्रत्याशी के रूप में केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा दूसरी बार यहां से किस्मत आजमा रहे हैं, जबकि गठबंधन की ओर से कांग्रेस के गोपाल साहू और भाकपा के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता उन्हें चुनौती दे रहे हैं। हजारीबाग में लगभग रांची की कहानी ही दोहरायी जा रही है। अंतर केवल इतना है कि रांची में भाजपा के नये प्रत्याशी का मुकाबला दो दिग्गजों से है, तो हजारीबाग में कांग्रेस प्रत्याशी को दो दिग्गजों से मुकाबला करना पड़ रहा है। बाहर का होने के कारण गोपाल साहू को जहां स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं का सहयोग लेने के लिए जहां पसीना बहाना पड़ रहा है, वहीं प्रचार के लिए किसी बड़े नेता का नहीं आना भी उनके लिए समस्या है। सांगठनिक और संसाधन के मोर्चे पर पिछड़ने के बावजूद उन्हें वैश्य समुदाय के वोट पर भरोसा है, जो भाजपा से नाराज बताया जा रहा है। हालांकि जयंत सिन्हा ने इस वर्ग को साधने की भी भरपूर कोशिश की है। इसके साथ ही गोपाल साहू ऐन चुनाव प्रचार अभियान एक विवाद में फंस गये। उनके नाम से एक स्थानीय होटल में बुक कमरे से 21 लाख रुपये नगद जब्त होने के बाद करीब 72 घंटे तक वह पूरे परिदृश्य से गायब हो गये थे। इस घटनाक्रम में कार्यकर्ताओं को असमंजस में डाल दिया। हजारीबाग सीट से 2004 में भाकपा के भुवनेश्वर मेहता चुनाव जीते थे। इसके बाद से यहां भाजपा का कब्जा रहा है। वर्ष 2009 में यशवंत सिन्हा ने यहां जीत हासिल की थी और पिछले चुनाव में उनके पुत्र जयंत सिन्हा को जनता ने ताज पहनाया था। इस बार भी कांग्रेस और भाकपा के अलग-अलग लड़ने का लाभ भाजपा को मिलेगा, इसके पूरे आसार दिख रहे हैं। हजारीबाग के रण में 16 उम्मीदवार उतरे हैं और यहां के 16.64 लाख लोग किसे चुनेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
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कोडरमा में है भाजपा-झाविमो की अग्निपरीक्षा
दुनिया भर में अभ्रक नगरी के रूप में चर्चित कोडरमा संसदीय क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा गिरिडीह जिले में पड़ता है। यहां भी भाजपा ने इस बार उम्मीदवार बदला है, जबकि महागठबंधन की ओर से झारखंड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और भाकपा माले के राजकुमार यादव एक बार फिर मैदान में हैं। भाजपा ने अपने दिग्गज डॉ रविंद्र कुमार राय के स्थान पर हाल ही में पार्टी में शामिल हुईं राज्य की पूर्व मंत्री अन्नपूर्णा देवी को प्रत्याशी बनाया है। बाबूलाल मरांडी ने इस क्षेत्र का 10 वर्षों तक संसद में प्रतिनिधित्व किया है, जबकि अन्नपूर्णा देवी कोडरमा से चार बार विधायक रही हैं। वह पहले राजद में थीं। कोडरमा के मुकाबले को त्रिकोणीय बनानेवाले राजकुमार यादव अभी राज धनवार से विधायक हैं और पिछले दो लोकसभा चुनाव में वह यहां दूसरे स्थान पर रहे थे। बाबूलाल को जहां कांग्रेस, झामुमो और राजद का साथ मिल रहा है, वहीं भाजपा के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि यहां के पांच विधानसभा क्षेत्रों पर उसका कब्जा है। झाविमो को जहां पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर भरोसा है, वहीं भाजपा को अपने परंपरागत वोटरों का आसरा है। इसके साथ ही अन्नपूर्णा देवी को उनकी जाति का वोट भी मिलने की उम्मीद है, हालांकि माले प्रत्याशी भी उसी जाति से आते हैं। यदि कोडरमा में यादवों का वोट विभाजित हुआ, तो मरांडी की राह आसान हो सकती है। भाजपा के लिए कोडरमा प्रतिष्ठा की सीट है, इसलिए प्रधानमंत्री को खुद यहां आना पड़ा। उनकी जमुआ में हुई सभा से पहले जहां पुराने भाजपाई अन्नपूर्णा को लेकर थोड़े झिझक रहे थे, वहीं अब वे काम में जुट गये हैं। बाबूलाल मरांडी ने पिछले चुनाव के बाद से यहां लगातार कैंप किया और इस बार उन्हें इसका लाभ मिल सकता है। यहां कुल 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं और 18.12 लाख वोटर इनमें से किसी एक को चुनेंगे।
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खूंटी में भाजपा को किला बचाने की चुनौती
झारखंड में छह मई को होनेवाले चुनाव में खूंटी एकमात्र सुरक्षित सीट है। पत्थलगड़ी के रूप में समानांतर शासन व्यवस्था स्थापित करने के प्रयास के कारण देश-दुनिया में चर्चा में आये खूंटी की पहचान भाजपा और संघ के मजबूत किले के रूप में है, हालांकि पिछले कुछ दिनों में यहां चर्च का प्रभाव भी बढ़ा है। यहां से भाजपा ने अपने भीष्म पितामह कड़िया मुंडा के स्थान पर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के कालीचरण मुंडा मैदान में हैं। अर्जुन मुंडा खरसावां से कई बार विधायक रहे हैं, जो खूंटी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। कड़िया मुंडा का आशीर्वाद इनके साथ है। यहां भी कांग्रेस पार्टी से वर्ष 2004 में सुशीला केरकेट्टा चुनाव जीती थीं, लेकिन इसके बाद हुए दोनों चुनाव में भाजपा के कड़िया मुंडा ने जीत हासिल की। अर्जुन मुंडा को मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा का साथ मिल रहा है, जो कांग्रेस प्रत्याशी के सगे भाई हैं। कालीचरण मुंडा के पिता टी मुचिराय मुंडा को झारखंड का गांधी कहा जाता है और वह अपने समय के दिग्गज कांग्रेसियों में शुमार थे। कांग्रेस प्रत्याशी को झामुमो, झाविमो और राजद का समर्थन है। हालांकि झाविमो और राजद का इस क्षेत्र में कोई खास जनाधार नहीं है, लेकिन झामुमो के दो विधायक इस क्षेत्र से आते हैं। एक विधानसभा क्षेत्र तमाड़ पर आजसू ने कब्जा जरूर किया था, लेकिन अभी वहां के विधायक विकास मुंडा झामुमो के लिए काम कर रहे हैं। जाहिर है कि विकास मुंडा का फायदा कांग्रेस प्रत्याशी को मिलेगा, लेकिन झामुमो के एक विधायक पौलुस सुरीन अपनी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। ऐसे में तोरपा क्षेत्र में भाजपा को झामुमो के भितरघात का फायदा मिल सकता है। खूंटी में सबसे प्रमुख मुद्दा पत्थलगड़ी ही है। यहां संघ और चर्च, दोनों की अग्निपरीक्षा होनी है। खूंटी से कुल 11 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें से 11.99 लाख मतदाता किसी एक को चुनेंगे।
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