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सरकार के दावे से उलट, महाराष्ट्र से बिहार जाने वाले प्रवासी मजदूरों से लिया गया रेल किराया

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नई दिल्ली- सरकार का कहना है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से यात्रा करने वाले प्रवासी मजदूरों से कोई रेल भाड़ा नहीं लिया जा रहा है। बल्कि, 85 फीसदी खर्च रेलवे उठा रहा है और 15 फीसदी संबंधित राज्य सरकारों को वहन करना है। लेकिन, ऐसी कुछ रिपोर्ट्स आ रही हैं, जिनमें श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सफर करने वाले मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन के बावजूद उन्होंने जो भी पैसे पॉकेट में बचा रखे थे, वे लगभग सारे पैसे रेल किराए के रूप में दे देने पड़े। इसके अलावा महाराष्ट्र में स्टेशन तक पहुंचने के लिए बेस्ट की बसों में भी किराया लिए जाने का दावा किया गया है।

मजदूरों के रेल किराए का क्या है सच?

मजदूरों के रेल किराए का क्या है सच?

मंगलवार को करीब 1,200 प्रवासी मजूदर महाराष्ट्र के कल्याण से बिहार के दानापुर के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन से रवाना हुए थे। इनमें से लगभग 650 मजदूर मुंबई के शास्त्री नगर झुग्गियों में रहते हैं। उनकी घर वापसी इसलिए संभव हो सकी है, क्योंकि हाल ही में केंद्र ने लॉकडाउन की वजह से इन प्रवासी मजदूरों को गृहराज्य लौटने की छूट दी है। इसके लिए भारतीय रेलवे अलग-अलग रूटों पर स्पेशल ट्रेनें चला रहा है। रेलवे के एक प्रवक्ता के मुताबिक, 'जारी गाइडलाइंस के तहत भेजने वाला राज्य रेलवे को किराया चुकाएगा। भेजने वाला राज्य यह तय करेगा कि वह इसका भार खुद ढोए या यात्रियों से ले या आपसी बातचीत से उन राज्यों से ले जहां ट्रेन जा रही है या किसी दूसरे फंड से ले ले। यह पूरी तरह से उनपर निर्भर है।' रेल मंत्रालय के मुताबिक रेलवे स्टेशनों तक लाने और रेलवे स्टेशनों से उन्हें जरूरी जांच-पड़ताल के बाद उनके आगे की यात्रा की व्यवस्था करना भी संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।

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हमनें दिया रेल और बेस्ट बस का किराया- मजदूर

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लेकिन, मुंबई के शास्त्री नगर से जो प्रवासी मजदूर दानापुर गए उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि टिकट के पैसे उन्होंने अपनी जेब से भरे हैं या अपने किसी रिश्तेदार या दोस्तों से लेकर दिए हैं। जबकि, लॉकडाउन की वजह से वह पाई-पाई को मोहताज हो चुके हैं। इन मजदूरों के मुताबिक उन्होंने कल्याण स्टेशन आने के लिए बेस्ट की बस को 20 रुपये और कल्याण से दानापुर के लिए ट्रेन टिकट के लिए 700 रुपये दिए। पटना के रहने वाले एक मजदूर ने बताया, 'मेरे पास सिर्फ 1,000 रुपये बच गए थे, उसमें से आधा तो टिकट पर ही खर्च हो गया। मुझे पता नहीं है कि मैं घर जाकर अपने बच्चों को क्या खिलाऊंगा। एक मजदूर ने बताया कि 'मेरे सारे पैसे मां के ऑपरेशन पर खत्म हो गए और जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, मैंने एक पैसा भी नहीं कमाया है। मुझे अपनी मां को देखना है, जो मेरी पत्नी और दो बच्चों के साथ भागलपुर में है। मैं ट्रेन में नहीं चढ़ सकता अगर मेरे भाइयों ने मेरे लिए पैसे नहीं दिए होते।'

श्रमिक स्पेशल में खाने-पीने के भी व्यवस्था नहीं होने के आरोप

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इतना ही नहीं श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बिहार गए मजदूरों ने बताया कि 'पूरे रास्ते में हमें सिर्फ एक बार खाना दिया गया और वह भी सबको नहीं मिल पाया। हमें ट्रेन के शौचालयों के नल से पानी पीना पड़ा। ' पिछले सोमवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने नियमित प्रेस ब्रीफिंग में कहा था कि, 'चाहे भारत सरकार हो या रेलवे हो, हमनें मजदूरों से पैसे लेने की बात नहीं कही है। 85 फीसदी खर्चा रेलवे उठा रहा है और 15 फीसदी राज्यों को वहन करना है।' बता दें कि पिछले शनिवार से 7 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र के अलग-इलग हिस्सों से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए अपने गृहराज्य जा चुके हैं। ये ट्रेनें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के लिए भेजी गई हैं।

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English summary
Contrary to the government's claim, the rail fare charged from migrant laborers from Maharashtra to Bihar
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