Blind cricket: कैसे खेलते हैं दृष्टिहीन क्रिकेट? क्या हैं इसके नियम?
दृष्टिहीन खिलाड़ी भारत के लिए तीसरी बार विश्व कप जीत चुके हैं लेकिन बीसीसीआई से किसी प्रकार के सहयोग के बिना। जहां आम क्रिकेट खिलाड़ी करोड़ों कमा रहे हैं, वहीं ब्लाइंड क्रिकेट के विश्व कप विजेता गरीबी में रहने के लिए मजब
जी हां, आपने सही पढ़ा। दृष्टिहीन भी खेल सकते हैं क्रिकेट और फुटबॉल जैसे खेल। अभी हाल ही में 17 दिसंबर 2022 को भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने टी-20 ब्लाइंड क्रिकेट विश्वकप जीतकर इतिहास रचा था। इस संस्करण के सभी विश्वकप भारत ने ही तीन बार जीते हैं। टी-20 ब्लाइंड क्रिकेट विश्वकप का आयोजन क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन इंडिया (CABI) द्वारा किया जाता है। इसके अलावा भी दृष्टिहीनों के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य कई इवेंटस होते हैं। जैसे फुटबॉल, गोल्फ, एथलैटिक्स, खो-खो, कबड्डी, तैराकी आदि।
कितना
अंतर
है
ब्लाइंड
क्रिकेट
और
पारंपरिक
क्रिकेट
में
ब्लाइंट
क्रिकेट
प्रचलित
क्रिकेट
से
अलग
होता
है।
एक
टीम
में
कम-से-कम
चार
खिलाड़ी
पूरी
तरह
से
दृष्टिहीन,
अधिकतम
चार
खिलाड़ी
ऐसे
जिन्हें
आंशिक
रूप
से
दिखाई
देता
है
और
3
आंशिक
रूप
से
दृष्टिहीन
(जिनकी
आंखों
में
थोड़ा
विकार/दृष्टि
बाधित
हो)
खिलाड़ी
होते
है।
ब्लाइंड क्रिकेट बॉल का आकार आम क्रिकेट गेंद से बड़ा होता है और उसके अंदर बॉल बियरिंग होते हैं जो घुंघरू जैसी आवाज करते हैं, जिसे सुनकर बैट्समैन व फिल्डर खेलते हैं। गेंदबाज को हाथ नीचे करके अंडरआर्म बॉलिंग करनी होती है और बैट्समैन के पास पहुंचने से पहले बॉल के दो ठप्पे पड़ने चाहिए। बैट्समैन के शॉट लगाते ही आंशिक रूप से देखने वाला फील्डर आवाज लगाकर बताता है कि बॉल किसकी तरफ जा रही है। चूंकि गेंद नीची रहती है इसलिए इसमें सबसे ज्यादा स्वीप शॉट ही खेला जाता है।
बॉलर को बॉल फेंकने से पहले 'रेडी' बोलना होता है। बैट्समैन के 'यस' बोलने पर ही बॉल फेंकी जाती है अन्यथा अंपायर उसे 'नो बॉल' देता है। बॉल फेंकते ही बोलर बोलता है 'प्ले'। अगर पूर्ण नेत्रहीन एक बांउस के बाद भी गेंद पकड़ लेता है तो उसे 'कैच' माना जाता है। लाल या नारंगी रंग के स्टंप्स स्टील से बने होते हैं व आपस में जुड़े होते है, ताकि गेंद उनसे टकराने या गिरने पर आवाज हो और खिलाड़ियों को पता चल सके।
कब
शुरू
हुआ
ब्लाइंड
क्रिकेट
इसकी
शुरूआत
साल
1922
में
मेलबर्न
(आस्ट्रेलिया)
में
हुई
थी।
1922
में
विक्टोरियन
ब्लाइंड
क्रिकेट
एसोसिएशन
का
गठन
हुआ
और
दृष्टिहीनों
के
लिए
विशेष
क्रिकेट
ग्राउंड
1928
में
मेलबर्न
में
बनाया
गया।
लेकिन
इसके
सात
दशक
बाद
जॉर्ज
अब्राहम
के
नेतृत्व
में
1996
में
वर्ल्ड
ब्लाइंड
क्रिकेट
काउंसिल
(WBCC)
की
स्थापना
भारत
में
हुई
और
इसका
मुख्यालय
बेंगलुरु
में
है।
ऑस्ट्रेलिया,
बांग्लादेश,
इंग्लैंड,
भारत,
न्यूजीलैंड,
दक्षिण
अफ्रीका,
श्रीलंका,
पाकिस्तान,
वेस्टइंडीज
और
नेपाल,
WBCC
के
10
सदस्य
देश
हैं।
ब्लाइंड क्रिकेट विश्व कप (40-40 ओवर) का आयोजन 5 बार हुआ है। जिसमें 3 बार भारत (2014, 2018 व 2022), 2 बार पाकिस्तान (2002 व 2006) व 1 बार साउथ अफ्रीका विजेता रहे हैं।
ब्लाइंड
क्रिकेटर
की
सैलरी
क्या
होती
है?
भारतीय
क्रिकेट
कंट्रोल
बोर्ड
(बीसीसीआई)
द्वारा
जहां
क्रिकेट
खिलाडियों
को
करोड़ों
रूपया
सालाना
सैलरी
रूप
में
देता
है,
वहीं
ब्लाइंड
क्रिकेटरों
को
कुछ
भी
नहीं
मिलता
है।
उनको
सिर्फ
प्रोत्साहन
राशि
प्राप्त
होती
है।
कोई
बड़ा
टूर्नामेंट
जीतते
हैं
तो
सरकार
या
अन्य
संस्था/व्यक्ति
की
तरफ
से
कुछ
प्रोत्साहन
राशि
मिल
जाती
है।
टूर्नामेंट
बीत
जाने
के
बाद
इन
खिलाडियों
की
जिंदगी
अंधकारमय
हो
जाती
है।
कोई
सब्जी
बेचता
है
तो
कोई
मजदूरी
कर
रहा
होता
है।
टी 20 ब्लाइंड विश्व कप जीतने के बाद टीम के कप्तान अजय कुमार रेड्डी ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा, "हमने तीसरी बार ब्लाइंड विश्व कप जीता है लेकिन हमारे पास कोई मुख्य प्रायोजक नहीं है और हमारे पास आजीविका कमाने के लिए कोई काम नहीं है जिससे हम अपने परिवार का भरण-भोषण कर सकें।"
ऐसी ही कुछ बात पूर्व कप्तान शेखर नाइक, जो दुनिया के सभी नेत्रहीन क्रिकेटरों में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी है, (63 मैच, 32 शतक व 15 अर्धशतक) ने भी कही थी, "13 साल तक भारत का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद, मुझे क्रिकेट खेलने के लिए कोई पैसा नहीं मिलता है।"
सचिन तेंदुलकर सहित कई नामी खिलाड़ी क्रिकेट बोर्ड से यह मांग कर चुके हैं कि ब्लाइंड क्रिकेट टीम को भी आर्थिक मदद की जाए, लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।