बिहार में क्यों खेला जा रहा है तोड़-फोड़ की राजनीति का माइंड गेम
तोड़-फोड़ की राजनीति का माइंड गेम: बिहार के सियासी आसमान पर रह-रह कर बादल गरज रहे हैं। ऐसा लगता है कि बारिश अब होगी कि तब होगी। लेकिन उमड़ने-घुमड़ने वाले ये बादल बरसने वाले नहीं हैं। बादल छाएंगे और फिर छंट जाएंगे। कोई राजद को तोड़ने का दावा कर रहा है तो कोई जदयू को। कोई कांग्रेस के घरौंदे को कमजोर बता रहा है। और तो और नीतीश सरकार के गिरने और मध्यावधि चुनाव की हवा बनायी जा रही है। लेकिन हकीकत यही है कि नीतीश सरकार पूरे पांच साल चलने वाली है। किसी राजनीति दल में इतना साहस नहीं है कि वह सरकार गिरा कर मध्यावधि चुनाव में जाने का खतरा मोल ले। राजद में भी ये हिम्मत नहीं। जिसने भी ऐसा किया जनता ने उसे सबक सिखाया । 2005 में जब रामविलास पासवान की जिद से मध्यावधि चुनाव हुआ था तो लोजपा 29 से 10 पर लुढ़क गयी थी। राजद, जदयू, भाजपा और कांग्रेस नेताओं के डपोरशंखी बयानों का कोई मतलब नहीं। एक ही दल में कोई आम बोलता है तो कोई इमली। इन नेताओं का रवैया चायखाने के उस मजमे की तरह है जिसने खाया-पीया कुछ नहीं और ग्लास फोड़ा बारह आने का।
नीतीश को महागठबंधन में लाने की बतोलाबाजी
राबड़ी देवी ने कुछ दिन पहले कहा था, “नीतीश कुमार को महागठबंधन में लाने पर राजद विचार कर रहा है। अगर वे दोबारा महागठबंधन में आते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।” नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलने वाली राबड़ी देवी के अचानक रुख बदलने से हंगामा लाजिमी था। बातों की चिनगारी भड़क ही रही थी कि तेजस्वी यादव ने उस पर पानी डाल दिया। तेजस्वी ने कहा, नीतीश के साथ जाने का सवाल ही नहीं उठता। बिहार में मध्यावधि चुनाव तय है। मैंने अपने कार्यकर्ताओं से इसके लिए तैयार रहने के लिए कहा है। अब अगर राबड़ी देवी की बात को तेजस्वी काट रहे हैं तो इन बयानों की हकीकत समझी जा सकती है। जिसके जी में जो आ रहा है, बोल रहा है। शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी को सीएम और नीतीश को पीएम इन वेटिंग बनाने शगूफा छोड़ा था। कुछ दिनों पहले कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने नीतीश कुमार महागठबंधन में आने का न्योता दिया था। कांग्रेस के नये नवेले बिहार प्रभारी भक्तचरण दास ने अजीत शर्मा के इस न्योते की मिट्टीपलीद कर दी। उन्होंने कहा, मुझे नहीं मालूम कि कौन किसको न्योता दे रहा है। तेजस्वी हमारे गठबंधन के पार्टनर हैं। बिना उनसे मिले कोई बात नहीं कह सकते। यानी नीतीश को महागठबंधन में लाने की चर्चा, बतोलाबाजी से सिवा कुछ और नहीं।
कौन किसको तोड़ेगा ?
बिहार के राजनीतिक दल एक दूसरे को तोड़ने के लिए वर्चुअल पहलवानी कर रहे हैं। दलों को तोड़ने के दावे इस तरह किये जा रहे हैं जैसे वह दालभात का कौर हो। किसी दल को तोड़ने के लिए उसके दो तिहाई विधायकों की रजामंदी जरूरी है। ये आंकड़ा अभी तक किसी के पास नहीं है। राजद नेता श्याम रजक ने जदयू को तोड़ने का ख्याली पुलाव पकाया। लेकिन वे भी जदयू के 28 विधायक नहीं जुटा पाये। कांग्रेस को तोड़ने की चर्चा चली। लेकिन कांग्रेस के भी तेरह-चौदह विधायक नहीं जुट पाये। अब नयी चर्चा राजद को तोड़ने की चल रही है। हैरत की बात ये है कि इस हवाई लठ्मलठ में बड़े नेता भी कूद गये हैं। भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेन्द्र यादव ने कहा है कि तेजस्वी यादव खरमास बाद अपनी पार्टी को बचाने की चिंता करें। दही मे सही मिला दिया जदयू सांसद ललन सिंह ने। उन्होंने एक डेग आगे बढ़ कह दिया कि भूपेन्द्र यादव जिस दिन तय कर लें उसी दिन राजद का भाजपा में विलय हो जाएगा। अब भला बताइये कि जब 19 विधायकों वाली कांग्रेस और 43 विधायकों वाला जदयू नहीं टूटा तो 75 विधायकों वाला राजद कैसे टूट जाएगा ? ललन सिंह ये क्यों नहीं बता रहे कि वे राजद में टूट के लिए 50 या 51 विधायक कहां से लाएंगे ? जो पार्टी जितनी बड़ी है उसे तोड़ना उतना ही मुश्किल। लेकिन जुबानी जमाखर्च में किसी को हिसाब तो देना नहीं है, जो जी में आये बक दो।
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पांच साल चलेगी नीतीश सरकार
क्रिकेट के खेल की तरह बिहार की राजनीति में अभी माइंड गेम खेला जा रहा है। मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने के लिए उकसाने वाले बयान दिये जा रहे हैं। कोई दल गलती करे और सामने वाला मौका लपक ले। लेकिन इससे नीतीश सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। सरकार को पूर्ण बहुमत हासिल है। जदयू और भाजपा के बीच कुछ समस्याएं हैं लेकिन दोनों इसे स्वीकार एक साथ रहने के लिए मजबूर हैं। जदयू को भाजपा से कुछ कसक है। लेकिन उसने ये साफ कर दिया है कि सरकार पांच साल चलेगी। नीतीश कुमार पर डोरे डालने की कोशिश, केवल दिखावा है। जीतन राम मांझी कभी शराबबंदी पर बोल कर नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ा रहे हैं तो कभी भाजपा के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। लेकिन अंजाम से वे भी वाकिफ हैं। उनके चार विधायकों के इधर से उधर होने पर भी तेजस्वी की सरकार नहीं बनने वाली। वे केवल नीतीश सरकार को गिराने के लिए एनडीए से अलग नहीं सकते। बहुत मुश्किल से वे एक से चार विधायक हुए हैं। फिल्मी जुबान में कहें तो बिहार के नेता 'खाली –पीली’ का टाइम खोटा कर रहे हैं।