Bihar assembly elections 2020: राजद के एक्स प्लेयर ने कहा, लिमिट से ज्यादा बाउंसर फेंक रहे तेजप्रताप
मुकाबला (Bihar assembly elections 2020) शुरू होने के ठीक पहले राजद की टीम में बवाल मचा हुआ है। हाल ही में टीम से ड्रॉप किये एक प्लेयर ने आरोप लगाया है, तेज प्रताप लिमिट से ज्यादा बाउंसर फेंक रहे हैं। अम्पायर सब कुछ देख कर भी इसे नोबॉल करार नहीं दे रहे। पिछले सीजन (2019 लोकसभा चुनाव) में भी उनकी गलतियों के कारण टीम हारी थी। 2020 में मैच से पहले ही वे अपने बयानों के बाउंसर से टीम को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पहले उन्होंने छह बार के विनर चंद्रिका राय की औकात नाप ली फिर टीम के सबसे सीनियर और क्लासिक प्लेयर रघुवंश प्रसाद सिंह की तुलना एक लोटा पानी से कर दी। 2019 की तरह तेज प्रताप क्या 2020 में भी टीम का पुलिंदा बांधेंगे? क्या टीम में अनुशासन के नियम सिर्फ दूसरे खिलाड़ियों के लिए हैं ? क्या ये नियम तेज प्रताप पर लागू नहीं होते ? जब अनुशासन तोड़ने के नाम पर टीम के तीन प्रमुख खिलाड़ियों (विधायकों) को निकाल जा सकता है तो तेज प्रताप पर एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा ? टीम के ओनर 2005 में भी अपने घरेलू खिलाड़ियों के गैरजिम्मेदाराना खेल से मुकाबला हार चुके हैं। क्या इतिहास फिर अपने को दोहराएगा?
चंद्रिका राय की पावर हिटिंग
चंद्रिका राय राजद की टीम के अहम खिलाड़ी थे। मान-सम्मान की लड़ाई में उन्होंने टीम छोड़ दी। राइवल टीम का हिस्सा बनने के बाद चंद्रिका राय ने तेज प्रताप के खिलाफ जबर्दस्त स्ट्रोक प्ले का नमूना पेश किया। उन्होंने कहा, तेज प्रताप ने लोकसभा चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ काम किया। छपरा सीट पर मेरे खिलाफ काम किया। जहानाबाद और हाजीपुर में अपने आदमी को खड़ा कर राजद उम्मीदवारों का हराया। राजद के चार-पांच अधिकृत खिलाड़ियों को रन आउट कराने की सफल कोशिश की। अनुशासन तोड़ने का इससे बड़ा कोई और प्रमाण हो सकता है क्या ? फिर राजद टीम प्रबंधन ने तेज प्रताप पर कोई एक्शन नहीं लिया। हार की समीक्षा के लिए जब टीम मीटिंग हुई तब मैंने तेज प्रताप के खिलाफ नोटिस देकर सजा देने की मांग की थी। लेकिन इसकी अनदेखी कर दी गयी। दरअसल राजद में अब योग्य खिलाड़ियों के लिए कोई जगह नहीं है। काबिल प्लेयर धीरे-धीरे किनारे लगाये जा रहे हैं। राजद की टीम में अब पैसे के आधार पर सेलेक्शन होता है। राज्यसभा इलेक्शन में कैसे सेलेक्शन हुआ, ये सभी लोगों ने देखा।
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लिमिट से ज्यादा बाउंसर
चंद्रिका राय के समर्थकों का कहना है, क्या लालू जी का बेटा होने के कारण तेज प्रताप की हर गलती माफ की जाएगी ? तेज प्रताप नियम कायदे तोड़ कर भी न केवल टीम में बने हुए बल्कि सीनियर खिलाड़ियों की बेइज्जती तक कर रहे हैं। चंद्रिका राय के प्रशंसकों का कहना है, अव्वल तो टीम में तेज का सेलेक्शन ही वाजिब नहीं । उन्हें बिना किसी अनुभव के सीधे प्लेइंग इलेवन में शामिल कर लिया गया। किसी गेंदबाज को वन डे के एक ओवर में दो और टी-20 में एक बाउंसर डालना होता है। लेकिन तेज तो हर गेंद को सिर के ऊपर से निकाल रहे हैं। लिमिट से ज्यादा बाउंसर फेंकने पर नो बॉल क्यों नहीं दिया जा रहा ? यहां तो अंधेरगर्दी मची है। सब कुछ देख कर मैदानी अम्पायर तो चुप है ही दूर बैठा थर्ड अम्पायर भी खामोश है। इसका नतीजा है कि तेज लगातार बयानों के बाउंसर मार रहे हैं। क्या ऐसे ही गेंदबाज से टीम मैच जीतेगी ?
जब घर के ‘खिलाड़ी’ बने थे हार की वजह
वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत के मुताबिक, ये बात तब की है राबड़ी देवी अपने भाई साधु यादव को विधानसभा चुनाव (1995) में टिकट नहीं दिला पायी थीं। लालू यादव मुख्यमंत्री थे। उस समय सीएम हाउस आने वाले पत्रकारों को लालू भोजपुरी में अक्सर एक बात कहते थे, राबड़ी रुसल बाड़ी, मांग तानी चोखा त देत बाड़ी चटनी।(राबड़ी रुठी हुईं हैं, चोखा मांगने पर चटनी दे रही हैं।) यह तब की बानगी थी। बाद में घटनाक्रम बदला। लालू यादव ने 1995 में ही साधु यादव को सांस्कृतिक कोटा से विधान परिषद का सदस्य बना दिया था। फिर लालू ने राबड़ी देवी के एक और भाई सुभाष यादव को 1998 में एमएलसी बनाया। लालू की कृपा से साधु यादव विधायक और सांसद भी बने। सुभाष यादव को लालू ने राज्यसभा में भेजा था। लालू- राबड़ी राज के दौरान साधु और सुभाष असीम सत्ता के प्रतीक बने गये थे। साधु यादव को शैडो चीफ मिनिस्टर कहा जाने लगा था। तब दोनों भाइयों का ऐसा खौफ था कि किसी में चूं करने हिम्मत न थी। आरोप है कि इनके कारण ही राजद के शासन को जंगलराज कहा गया। तब यह भी आरोप लगा था कि लालू यादव ने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर अपने दो सालों को राजनीति में बहुत आगे बढ़ाया। 2005 में नीतीश ने जंगल राज को उखाड़ फेंकने के वायदे पर चुनाव लड़ा। नीतीश जीते और राजद के शासन अंत हुआ।
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“जरा सोचिए क्यों हारे ?”
धीरे-धीरे लालू-राबड़ी को ये बात समझ में आयी। 2009 के लोकसभा चुनाव में जब लालू यादव ने साधु यादव को फिर टिकट देने से इंकार कर दिया तो साधु ने विद्रोह कर दिया। वे कांग्रेस में गये। लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हारे। नाराज लालू ने साधु को पार्टी से निकाल दिया। सुभाष यादव भी किनारे लगा दिये गये। लालू के बिना साधु कुछ नहीं थे। उन्होंने 2019 में महाराजगंज से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन हारे गये थे। लालू से दूर होने के बाद सुभाष यादव पप्पू यादव की पार्टी में गये थे। लेकिन उनकी भी राजनीति परवान नहीं चढ़ी। अब राजद के पुराने वफादार कह रहे हैं, "लालू यादव ने पहले भी ‘घर' के चक्कर में अपना नुकसान किया था और आज फिर उसी रास्ते पर चल पड़े हैं। 2005 में जनता ने उन्हें क्यों दिल से उतार दिया था, एक बार जरूर सोचना चाहिए।"