मेघालय: 17 दिन बाद 15 मज़दूरों को नहीं तलाश पाए नौसेना के गोताख़ोर
ना तो यहां बिजली है, ना सड़क है. एजेंसियां अपनी तरफ से यहां तैयार होकर पहुंच रही हैं लेकिन मौक़े पर पहुंचने के बाद उनके पास कुछ ना कुछ कमी दिख रही है.
वहां के स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी अब तक रस्सियों और नट-बोल्ट जैसी चीज़ों के इंतज़ाम में लगे हुए थे. इसे देखने पर लगता है कि योजनाबद्ध तरीके से काम करने की कमी का असर बचाव कार्य पर पड़ रहा है.
मेघालय की लुमथरी की कोयला खदान में 15 मज़दूरों को निकालने पहुंची भारतीय नौसेना के स्पेशल गोताखोरों की टीम ने 17 दिन बाद अपना अभियान शुरू किया.
ये मजदूर 13 दिसंबर से कोयला खदान में फंसे हुए हैं.
नए उपकरणों का इंतज़ार कर रही नौसेना और एनडीआरएफ़ की टीमों ने 29 दिसंबर को बचाव अभियान शुरू करने की योजना बनाई थी, लेकिन खदान का मुआयना कर के वापस लौट आई.
इसके बाद रविवार को नौसेना के दो गोताखोरों ने खदान में 70 फुट तक भीतर तक जा कर खोजबीन की लेकिन लापता मज़दूरों के संबंध में कोई सुराग उनके हाथ नहीं लगा.
शाम को छह बजे के आसपास नौसेना के दोनों गोताखोर और एनडीआरएफ़ की टीम लौट आई.
नौसेना के गोताख़ोरों का कहना है कि खदान में 100 फुट तक पानी भरा हुआ है और इस कारण वो खदान की ज़मीन तक नहीं पहुंच पाए हैं, मात्र 70 फुट तक ही जा पाए. उनका कहना है कि बचाव कार्य अब सोमवार को फिर से चलाया जाएगा.
पहले अनुमान ये लगाया जा रहा था कि 70 फुट तक ही पानी है लेकिन दो-ढाई घंटे के बाद गोताखोर खदान से बाहर निकल आए.
कोयला खदान में फंसे मज़दूरों को निकालने के काम में मदद के लिए ओडिशा से तूफ़ान प्रभावित जगहों पर काम करने वाली ख़ास फायर ब्रिगेड की टीम को भी बुलाया गया है.
खदान में फंसे मज़दूरों के परिजनों को शनिवार तक ये उम्मीद थी कि नौसेना के गोताख़ोर कुछ नतीजे तक पहुचेंगे. लेकिन उनके चेहरों पर उदासी साफ देखी जा सकती है.
अभियान में जो सबसे बड़ी कमी दिख रही है वो ये है कि बचाव कार्य के लिए कई एजेंसियां तो वहां हैं लेकिन उनमें तालमेल की कमी दिख रही है.
ईस्ट जयंतिया हिल्स ज़िले के साइपुंग क्षेत्र में जिस कोयले की खदान में ये हादसा हुआ है वहां पहुंचना आसान नहीं है.
ये इलाक़ा सड़क मार्ग से कटा हुआ है. मेघालय के जुवाई-बदरपुर नेशनल हाईवे से होते हुए खलिरियाट तक पहुँचा जा सकता है.
खलिरियाट से करीब 35 किलोमीटर अंदर गाड़ी से पहुंचने के बाद बाकी का चार किलोमीटर का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है.
पहाड़ और जंगलों के बीच टूटी-फूटी कच्ची सड़कें और तीन नदियों को पार करने के बाद अप कोयला खदान तक पहुंच सकते हैं.
ना तो यहां बिजली है, ना सड़क है. एजेंसियां अपनी तरफ से यहां तैयार होकर पहुंच रही हैं लेकिन मौक़े पर पहुंचने के बाद उनके पास कुछ ना कुछ कमी दिख रही है.
वहां के स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी अब तक रस्सियों और नट-बोल्ट जैसी चीज़ों के इंतज़ाम में लगे हुए थे. इसे देखने पर लगता है कि योजनाबद्ध तरीके से काम करने की कमी का असर बचाव कार्य पर पड़ रहा है.