पिंजरा तोड़ कार्यकर्ताओं की रिहाई में देरी को लेकर दिल्ली की कोर्ट में हाई वोल्टेज ड्रामा
नई दिल्ली, 16 जून। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा साल 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में आरोपी तीन छात्र कार्यकर्ता देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दिए जाने के एक दिन बाद यानी कि बुधवार को राजधानी के कड़कड़डूमा अदालत में जोरदार ड्रामा हुआ। दिल्ली पुलिस ने एक याचिका दायर कर छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत पर रिहा करने से पहले उनके पतों और उनके जमानतदारों के पते की पुष्टि के लिए और समय मांगा था। अब छात्रों का आरोप है कि दिल्ली पुलिस उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद जानबूझकर उनकी रिहाई में देरी कर रही है। आगे की बात करने से पहले आपको बता दें कि देवांगना कलिता और नताशा नरवाल दिल्ली स्थित महिला अधिकार ग्रुप 'पिंजरा तोड़' के सदस्य हैं। वहीं आसिफ इकबाल तन्हा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र हैं।
पूर्व राज्यसभा सांसद वृंदा करात, कार्यकर्ता गौतम भान और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के कई प्रोफेसर तीन छात्र कार्यकर्ताओं के लिए जमानतदार हैं। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस सत्यापन प्रक्रिया के दौरान उनसे "अजीब सवाल" पूछ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिा तीनों छात्र कार्यकर्ताओं की रिहाई में जानबूझकर देरी कर रही है ताकि आरोपियों को जमानत पर रिहा होने से पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सके। दूसरी ओर दिल्ली पुलिस का कहना है कि उन्हें आधार कार्ड की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए समय चाहिए इसलिए उनकी रिहाई में देरी हो रही है।
फैसला सुनाते हुए दिल्ली HC ने की थी सख्त टिप्पणी
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने इन छात्रों पर यूएपीए के आरोप लगाए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। हाईकोर्ट ने कहा "हम ये कहने के लिए मजबूर हैं कि असहमति की आवाज को दबाने की जल्दबाजी में सरकार ने संविधान की ओर से दिए गए विरोध-प्रदर्शन के अधिकार और आतंकवादी गतिविधियों के अंतर को खत्म सा कर दिया है।" तीनों छात्रों को जमानत पर छोड़ने का फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा कि अगर यह मानसिकता ऐसे ही बढ़ती रही, तो यह लोकतंत्र के लिए दुखद होगा।
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