चिंग शीः चीन की वो महिला जो सेक्स वर्कर से बनी समुद्री डाकुओं की महारानी
चिंग शी के पास समंदर में लूटमार करने के लिए 1,800 जहाज़ थे. उसके नाम से कई बड़े साम्राज्य भी डरते थे. आख़िर कैसा था इस साधारण सी महिला का असाधारण सा सफ़र, पढ़िए
हमने कई ऐसे साम्राज्यों की कहानियां पढ़ी हैं जिन्होंने दूसरे देशों में जाकर वहां के साम्राज्यों को पराजित किया. लेकिन 200 साल पहले चीन की एक ऐसी महिला समुद्री डाकू भी थी जिनके पास 1,800 से अधिक जहाज़ थे.
इस महिला ने अपने जीवन की शुरुआत चीन के तटीय इलाक़े में देह व्यापार से की थी. बाद में ये समंदर में पुर्तगाल और चीन के सैनिकों का काल बन गई.
ये महिला समुद्री डाकू (पाइरेट) झेंग यी साओ, शी यैंग और चिंग शी के नामों से चर्चित हुई.
हिंसा, बर्बर सज़ा और देह व्यापार से चर्चित हुई ये महिला 1844 तक ज़िंदा रही. चिंग शी अपने क़ब्ज़े में आए लोगों को दर्दनाक़ सज़ाएं दिया करती थी.
चिंग शी का जन्म 1775 में शिनहुई के ग्वांगडोंग में हुआ था. इतिहासकार उनके परिजनों और पारिवारिक इतिहास के बारे में जानकारी नहीं जुटा सके. लेकिन उनके जीवन ने इतिहास में उनकी जगह पक्की कर दी है.
18वीं सदी में समुद्री जहाज़ों और समंदर के ज़रिए होने वाले कारोबार में सिर्फ़ पुरुष ही हिस्सा लेते थे. बंदरगाहों पर ठहरे हुए जहाज़ों और किनारे पर लंगर डालने वाले जहाज़ों में वेश्यावृत्ति आम बात थी.
इतिहासकारों का मानना है कि चिंग शी सिर्फ़ छह साल की उम्र में ही सेक्स वर्कर बन गईं थीं.
उस दौर में झेंग यी एक पाइरेट थे और चिंग और ग्वेन आन साम्राज्यों के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे.
वो वियतनाम के सूर्यवंशी राजाओं के वारिसों के समर्थन में लड़ रहे थे और उनके रिश्तेदार झेंग की उस दौर के प्रमुख पाइरेट थे.
समुद्री डाकू से शादी
अपने एक आक्रमण के दौरान झेंग यी की मुलाक़ात चिंग शी से हुई और दोनों को प्यार हो गया. उन्होंने 1801 में शादी कर ली.
झेंग यी ने वादा किया कि उनकी जीती हुई आधी संपत्ति पर उसका हक़ होगा. चिंग शी को ये सौदा पसंद आया और उन्होंने तुरंत शादी के लिए हां कर दी. शादी के समय उनकी उम्र 26 साल थी.
शादी के एक साल बाद ही झेंग यी के रिश्तेदार झेंग की को ग्वेन साम्राज्य की सेना ने पकड़ लिया. उसे वियतनाम सीमा के पास जियांगपिंग में पकड़ा गया था और वहीं क़त्ल कर दिया गया.
इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर झेंग यी ने झेंग की के नेतृत्व में काम कर रहे सभी डाकुओं को अपने साथ मिला लिया और स्वयं उनके नेता बन गए.
झेंग यी ने एक मछुआरा परिवार के लड़के झांग बाओ साइ को गोद ले लिया था. वो सिर्फ़ 15 साल का था जब 1798 में उसे अग़वा करके समुद्री डाकुओं को सौंप दिया गया था.
झांग बाओ आक्रमणों के दौरान अपने पिता की मदद किया करता था.
झेंग यी चीन के समंदर में सक्रिय सभी पाइरेट को एक झंडे के नीचे लाना चाहते थे ताकि पुर्तगाली, चीनी, ब्रितानी और फ़्रांसीसी सैनिकों का मुक़ाबला किया जा सके.
डाकुओं की नेता बनीं चिंग शी
डाकुओं को एकजुट करने में चिंग शी ने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने डाकुओं के नेताओं से बातचीत की. देह व्यापार के दौरान के संबंधों ने भी उनकी मदद की.
झेंग और चिंग के प्रयासों से 1805 में चीन के सागर में सक्रिय सभी पाइरेट एक साथ आ गए. उनकी पहचान छह अलग-अलग रंगों के झंडों से थी. ये रंग थे- लाल, काला, नीला, सफ़ेद, पीला और बैंगनी.
इन डाकुओं ने समुद्र को अपने-अपने हिस्से में बांट लिया. ये सब झेंग यी के नेतृत्व में लड़ने को तैयार हो गए थे.
19वीं सदी की शुरुआत में झेंग यी एक मज़बूत पाइरेट नेता बन गए, जिनके साथ 70 हज़ार से अधिक पाइरेट और 1200 से अधिक जहाज़ थे. उनकी ताक़त के पीछे चिंग शी ही थीं.
लाल झंडे वाले जहाज़ों का समूह झेंग यी और उसके बाद दूसरे नंबर का समूह उनके बेटे बाओ के नेतृत्व में था.
इसी बीच चिंग शी ने दो बेटों को जन्म दिया. 1803 में झेंग यिंगशी और 1807 में झेंग शियोंगशी को. हालांकि कुछ इतिहासकार दावा करते हैं कि उन्होंने कभी किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया.
माना जाता है कि दूसरे बेटे के जन्म के कुछ दिन बाद ही झेंग यी का निधन हो गया. वो उस समय 42 साल के थे. चिंग शी चाहती थीं कि डाकुओं का नेतृत्व किसी और के हाथ में न जाए. इसलिए गोद लिए बेटे झांग बाओ की मदद से उन्होंने ताक़त को अपने पास केंद्रित कर लिया.
चिंग शी के अवैध संबंध
हालांकि डाकुओं के स्वघोषित क़ानून किसी महिला को नेता होने की अनुमति नहीं देते थे. ये माना जाता था कि जहाज़ पर महिला की मौजूदगी से बुरा समय आ सकता है. ऐसे में चिंग शी ने झांग बाओ को नेता बना दिया. धीरे-धीरे चिंग शी ने उसे अपनी कठपुतली बना लिया.
कुछ अप्रमाणित ऐतिहासिक स्रोत ये दावा करते हैं कि चिंग शी के झांग बाओ के साथ भी नज़दीकी संबंध थे.
झांग बाओ बस नाम के ही नेता थे. असल ताक़त चिंग शी के हाथों में ही थी. डाकुओं के इस समूह में सेना जैसा अनुशासन था. आदेश का पालन अनिवार्य था और अवहेलना करने पर सख़्त सज़ा दी जाती थी.
बर्बर सज़ाएं देती थीं
यदि कोई पाइरेट तटीय इलाक़े में किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार करता था तो उसके कान काट दिए जाते थे. यहां तक कि उन्हें नंगा करके घुमाया जाता और दूसरे डाकुओं के सामने मार दिया जाता था.
लूटे गए माल के लिए एक मालख़ाना था और यहां लूट का माल जमा करने से पहले लूटे गए माल की सूची बनाना अनिवार्य था. लूट करने वाले डाकुओं को दस में से दो चीज़ें दी जाती थीं. लेकिन यदि कोई पाइरेट चोरी करता या लूट का माल इकट्ठा करता था तो उसे ही मार दिया जाता था.
लूट की ख़ातिर गांवों में घुसने वाले समुद्री डाकू महिलाओं को न नुक़सान पहुंचाएंगे और न ही उनका बलात्कार करेंगे इस पर सहमति थी. इसके साथ ही पकड़ी गई महिलाओं की संख्या का रिकॉर्ड रखा जाता था और उन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को फांसी दी जाती थी.
इन तीन नियमों को किंग राजवंश के अधिकारी युआन योंगलुन ने समुद्री डाकुओं के महासंघ के लिए तय किए थे. हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये झांग बाओ के बनाए नियम थे, जो अनुवाद की ग़लती के चलते चिंग शी के मान लिए गए.
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समुद्री युद्ध और आक्रामक हमले
1808 में चिंग शी की कठपुतली झांग बाओ ने, पर्ल नदी के किनारे के गांवों को लूटने के लिए हुमेन के जनरल लिन गुओलियांग के जहाज़ों पर हमला किया. उस समय तक, समुद्री डाकुओं ने चीन के युद्धपोतों पर आक्रामक हमला नहीं किया था. इस हमले में चीन के 35 युद्धपोत नष्ट हो गए.
इसके बाद डाकुओं ने हुमेन में वीयुआन द्वीप के पूर्वी इलाके पर हमला किया. लेफ्टिनेंट कर्नल लिन फा वो युद्ध हार गए. इन दो हमलों ने पर्ल नदी में समुद्री डाकुओं का रास्ता साफ कर दिया.
उन दिनों, सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए भी चिंग शी सोचती थीं कि उनका दल अपने आप में एक सेना और अजेय ताक़त है.
1809 में, किंग साम्राज्य की प्रांतीय सेना के नेता सुन क्वानमउ ने 100 लड़ाकू जहाजों के बेड़े के साथ दावानशान द्वीप के पास समुद्री डाकुओं के एक समूह को घेर लिया. डाकुओं ने चिंग शी को पहले ही एक आपातकालीन संदेश भेज दिया था.
इसके चलते लाल और सफ़ेद झंडों के लड़ाकों ने मिलकर चीन के जहाज़ों पर हमला कर दिया. इसके चलते सुन क्वानमउ को पीछे हटना पड़ा.
इस हमले के दौरान सफ़ेद झंडे वाले समूह के नेता लियांग मारे गए. उनकी कमान के सभी जहाज़ नष्ट हो गए. चीन के 25 जहाज़ बर्बाद हो गए.
सफ़ेद झंडा समूह के नुक़सान से ग़ुस्सा होकर झांग बाओ के नेतृत्व में लाल और काले झंडे के लड़ाकों ने पर्ल नदी के आसपास के सभी जहाज़ नष्ट कर दिए.
जुलाई से सितंबर के बीच 10 हज़ार से अधिक लोग मारे गए. पर्ल नदी के आसपास के लगभग 2,000 नागरिक भी मारे गए. उन लोगों ने गांवों को तबाह करते हुए उसे जमकर लूटा और सैकड़ों गांववालों को पकड़ लिया. चिंग शी ने 500 जहाज़ों के बेड़े के साथ लूट के इन अभियानों की निगरानी की.
उस समय मकाऊ पर पुर्तगाली साम्राज्य का नियंत्रण था. ऐसे में समुद्री डाकुओं पर नियंत्रण पाने के लिए किंग साम्राज्य ने उनसे मदद मांगी. समुद्री डाकुओं ने पहले ही तिमोर के पुर्तगाली गवर्नर के अधीन रहे इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था. उस घटना से झल्लाए पुर्तगाली पहले से बदले की प्रतीक्षा में थे.
इसी दौरान, जब उन्हें पता चला कि चिंग शी अपने जहाजों की मरम्मत के लिए तुंग चुंग की खाड़ी में आई हुई हैं, तो उन्हें घेर लिया गया. सुन क्वानमउ के नेतृत्व में 93 जहाज़ों ने इस जीत में उनकी मदद की. ये डाकू फ़्रांसीसी उपनिवेश के समुद्री कारोबार के लिए भी एक ख़तरा थे. इसलिए फ़्रांस ने भी उस संघर्ष में भाग लिया.
दो सप्ताह तक यह लड़ाई चली. इसमें पुर्तगालियों ने एक जहाज़ खो दिया था. इसलिए सन क्वानमउ अपने जहाज़ों में आग लगाकर उसे डाकुओं के जहाज़ों से टकराने लगे. 43 से अधिक धधकते जहाज़ों को डाकुओं की ओर भेजा गया था, लेकिन हवा की तेज़ गति के कारण, जहाज़ों ने पलट कर उनके जहाज़ों को ही नष्ट कर दिया.
चिंग शी के जहाज़ बर्बाद तो नहीं हुए, लेकिन 43 समुद्री डाकू ज़रूर मारे गए. चीन के इतिहास में इसे "बाघ के मुंह की लड़ाई" कहा जाता है.
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आत्मसमर्पण करने वालों को नौसेना की नौकरी
काले झंडे के नेता गुओ पोडाई ने महसूस किया कि इस लड़ाई के लिए अपनी जान देना मूर्खता है. इसलिए उन्होंने चिंग शी और झांग बाओ के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया.
पोडाई ने जनवरी 1810 में लियांगगुआंग के वायसराय के सामने सरेंडर कर दिया. इसके लिए उन्हें सब लेफ्टिनेंट का पद दिया गया. सेना में शामिल होने के तुरंत बाद, उन्होंने डाकुओं के भोजन, ईंधन और हथियारों की आमद की जानकारी उन्हें विस्तार से बताई. इसके बाद समुद्री लुटेरों के जीवन के लिए ज़रूरी सभी चीज़ों की 'सप्लाई लाईन' काट दी गई.
इसी दौरान, किंग साम्राज्य ने महसूस किया कि समुद्री लुटेरों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ना हानिकारक है, तो बातचीत की योजना बनाई गई. चिंग शी को यह प्रस्ताव मानने को मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उनकी क्षमता चूक रही थी. बाई लिंग ने इस बातचीत का नेतृत्व किया.
20 अप्रैल, 1810 को झांग बाओ और चिंग शी ने 17,000 से अधिक समुद्री डाकुओं, 226 युद्ध के जहाज़ों, 1,300 तोपों और 2,700 हथियारों के साथ सरेंडर कर दिया. किंग राजवंश ने झांग बाओ को 20-30 जहाज़ों का लेफ्टिनेंट बना दिया.
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गोद लिए बेटे से विवाह
चिंग शी ने शासन से अपने गोद लिए बेटे झांग बाओ से शादी करने की अनुमति मांगी. कुछ ही महीनों में, वू शियर के नेतृत्व में नीले झंडे वाले समूह को हार का सामना करना पड़ा.
चिंग शी और झांग बाओ ने झांग यूलिन नाम के एक बेटे और एक बेटी को जन्म दिया. 1822 में 36 वर्ष की उम्र में झांग बाओ की मौत हो गई. चिंग शी ग्वांगडोंग वापस चली गईं. उसने वहां एक जुआ घर और वेश्यावृत्ति के लिए एक कोठे की स्थापना की.
कई साम्राज्य और सेना के लिए बुरा सपना रहीं चिंग शी की 69 साल की उम्र में नींद में ही मौत हो गई.
चिंग शी का जीवन एक ऐसी वेश्या की कहानी है, जो सत्ता की भूख, ज़िद, युद्ध रणनीति के कौशल और विश्वासघात से भरी हुई थी. कई इतिहासकारों का मानना है कि उनकी कहानी ये संदेश देती है कि एक महिला भी इतिहास का रुख़ मोड़ सकती है.
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