My Voice: विकृत मानसिकता देश और मानवता दोनों के लिए खतरा...
देश में अनैतिक संगठन और दायित्वहीन नेतृत्व, जनता को जनता के विरुद्ध प्रयोग और शोषित कर रहेे हैंं।
बेंगलूरु। My Voice कॉलम में आज नोएडा में रहने वाले स्वतंत्र लेखक एंव समाजविद फरहत ने एक ज्वलंत मुद्दे पर अपनी कलम बिखेरी है और लोगों को सोचने पर मजबूर किया है।
देश में काफी उहापोह की स्थिति है
फरहत के मुताबिक आज देश में एक तरफ जहां देशभक्ति की नई परिभाषा निकालने का प्रयास किया जा रहा है वहीँ दूसरी तरफ भ्रष्टाचार को दूसरा दृष्टिकोण दिया जा रहा है। कहीं वर्ग विशेष को हटाकर एकता की बात हो रही है, तो कहीं धर्म रक्षा के नाम पर मानवीय मूल्यों का हनन हो रहा है।
देशवासियों की विचारधारा में कट्टरपंथ की मिलावट
देश वासियों की विचारधारा में कट्टरपंथ की मिलावट की जा रही है और देश को विकास और बदलाव के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है। इसलिए इन सब भ्रमित करने वाले तथ्यों और उदाहरणों को समझने और समझाने की दृष्टि से इतिहास के कुछ प्रमुख घटनाचक्र का फरहत ने उल्लेख किया है।
द्वितीय विश्वयुद्ध और कट्टरवाद: हिटलर, 20 अप्रैल 1889 में जन्मा, एक ऐसा नाम जो द्वितीय विश्वयुद्ध का एक प्रमुख कारण और क्रूरता के लिए चर्चा का केंद्र था। हिटलर का बचपन अच्छा नहीं गुज़रा, पिता पुत्र के कटु संबंध और छोटे भाई की मौत ने हिटलर की मानसिकता पर आघात किया और हिटलर एक उदास और एकांतवासी बालक बन गया।
धार्मिक पक्षपात और जातिवाद का प्रमुख केंद्र
उम्र के 23वें साल में हिटलर जब वियाना में रहते थे तब वहां धार्मिक पक्षपात और जातिवाद का प्रमुख केंद्र था, कुछ नेताओं ने इस भाव का राजनैतिक प्रभाव और फायदे के लिए घृणित रूप से इस्तेमाल करना शुरू किया और यहुदिओं के प्रति घृणा फैलानी शुरू कर दी।
यहुदियों के प्रति घृणा हिटलर की मुख्य विचारधारा में समाहित
जातिवादी पक्षपात ने हिटलर के मन पर प्रभाव डाला और यहुदियों के प्रति घृणा हिटलर की मुख्य विचारधारा में समाहित हो गई जिसे और बल मिला कुछ अख़बारों जैसे 'Deutsches Volksblatt' से जो जातिगत पक्षपात का समर्थन और यहुदियों के प्रति घृणाभाव प्रेषित करने का काम करता था। हिटलर की यहुदियों के प्रति अतिघृणा का कारण उसकी ये सोच थी कि यहूदियों का प्रबुद्ध और संपन्न वर्ग ज़िम्मेदार है प्रथम विश्व युद्ध में दस हज़ार से भी ज़्यादा जर्मन लोगो की मौत का ।
हिटलर ने अपने आप को एक कुशल राष्ट्रवादी नेता के रूप में प्रस्तुत किया
काफी संघर्षों के बाद राजनीति में आए हिटलर ने अपने आप को एक कुशल वक्ता और राष्ट्रवादी नेता के रूप में प्रस्तुत किया लेकिन सोच में यहुदियों के प्रति घृणा, कट्टरवादी विचारधारा, महत्वाकांक्षा और तानाशाही ने द्वितीय विश्वयुद्ध को न्यौता दिया जिसमे हिटलर की हार हुई। हिटलर के आदेश पर जर्मन सेनाओं ने दस लाख से भी ज़्यादा यहुदियों, जिसमे औरतें और मासूम बच्चे भी थे, को मौत के घात उतार दिया जिसे प्रलय की संज्ञा भी दी गई।
विकृत मानसिकता को बढ़ावा देना, देश और मानवता दोनों के लिए हानिकारक
इस घटना की प्रस्तावना के पीछे फरहत का निजी उद्देश्य ये है कि किसी भी विकृत मानसिकता को बढ़ावा देना, देश और मानवता दोनों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
क्रूरता और दमन से रोकने के लिए मानवाधिकार संगठन
आज के परिवेश में जहां सेना को इतनी क्रूरता और दमन से रोकने के लिए मानवाधिकार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय नियम हैं, देश में अनैतिक संगठन और दायित्वहीन नेतृत्व, जनता को जनता के विरुद्ध प्रयोग और शोषित कर रहे हैं, ऐसे में फरहत का सवाल आपसे है कि क्या इस हालात में देश विकास की राह चलेगा या फिर भटक कर वापस वहीं आ जाएगा, जहां से वो चला है?