आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आंदोलन का इतिहास
हैदराबाद। कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने आखिरकार वोट बैंक मजबूत करने के लिये तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग कर दिया है। कैबिनेट में पास होने के बाद यह विधेयक लोकसभा में जायेगा और फिर वहां से राष्ट्रपति कार्यालय और राज्यसभा में आते-आते इसे छह महीने लग जायेंगे। यानी तेलंगाना को साकार रूप से देखने के लिये कम से कम आपको छह महीने और इंतजार करना होगा।
छह महीने बाद तेलंगाना में दस जिले होंगे- हैदराबाद, अदीलाबाद, खम्मन, करीमनगर, महबूबनगर, मेडक, नलगोंडा, निज़ामाबाद, रंगारेड्डी और वारंगल। कुल जनसंख्या 3.5 करोड़ होगी और इन दस जिलों में 17 लोकसभा और 119 विधानसभा क्षेत्र होंगे। देश के 29वें राज्य को साकार रूप देने के लिये केंद्र सरकार ने 122 दिन यानी चार महीने निर्धारित किये हैं।
तेलंगाना अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश का नाम भी बदल सकता है। उसका नाम सीमांध्रा हो सकता है, जिसमें तटीय आंध्रा और रायलसीमा आते हैं। खास बात यह है कि सीमांध्रा और तेलंगाना दोनों की राजधानी हैदराबाद ही होगी। वो भी दस साल के लिये। तब तक दोनों राज्यों का शासन हैदराबाद से ही किया जायेगा।
यह तो रहा भविष्य, जिसमें अभी थोड़ा और समय लग सकता है। अगर पीछे मुड़ कर देखें तो एक लंबा इतिहास तेलंगाना के निर्माण के पीछे है। आईये एक नज़र डालते हैं तेलंगाना के इतिहास पर तस्वीरों के साथ।
पहली राजधानी करीमनगर में
230 ईसापूर्व मौर्य साम्राज्य के खत्म होने के बाद सतावना साम्राज्य आया और इस क्षेत्र में शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभरा। यह साम्राज्य गोदावरी और कृष्णा नदी के बीच फैला हुआ था। इस क्षेत्रे की पहली राजधानी करीमनगर में कोटिलिंगला थी। उसके बाद धरनिकोटा हो गई। सतावना के बाद वकातका, विष्णुकुडिना, चालुक्य, राष्ट्रकुटा और पश्चिमी चालुक्यों ने यहां राज किया। काकातिया साम्राज्य तेलंगाना क्षेत्र के लिये इतिहास में स्वर्णिम समय रहा है। काकातिया के राजाओं ने आंध्र प्रदेश के कई क्षेत्रों में राज किया। काकातिया साम्राज्य में ही यभी तेलुगु भाषी इलाके एक जुट होकर राज्य में परिवर्तित हुए।
14वीं सदी में आये निज़ाम
इस राज्य में दिल्ली सल्तनत का राज 14वीं सदी से शुरू हुआ, उनके बाद बाहमनिस आये। गोलकोंडा के राज्यपाल सुलतान कुली ने 1518 में बाहमनी सल्तनत के खिलाफ मोर्चा खोला और फिर कुतुब शाही साम्राज्य की स्थापना की। उसके बाद 1687 में यहां मुगलों के शासक औरंगजेब ने राज किया। फिर ब्रिटिश शासन तक यहां निजामों का राज रहा। 1712 में आसिफ जाह यहां के निजाम-उल-मुल्क बने। उन्हीं ने ही आगे चलकर इस क्षेत्र का नाम हैदराबाद डेक्कन रखा। निजामों ने ही 1799 में ब्रिटिश के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किये और देखते ही देखते हैदराबाद राज्य ब्रिटिश हुकूमत का पसंदीदा राज्य बन गया और निजामों के अधिकार छिन गये।
स्वतंत्रता के बाद
स्वतंत्रता के ठीक बाद हैदराबाद के निजाम ने भारत सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा, जिसके अंतर्गत वो हैदराबाद राज्य को सरकार के अधीन नहीं बल्कि नियमों के तहत शाही राज्य का दर्जा मांगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सका और देखते ही देखते तुलुगू भाषी लोग 22 जिलों में बंट गये, जिनमें से 9 जिलों में निजामों का वर्चस्व कायम रहा। 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार ने एमके वेल्लोडी को हैदराबाद राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। वो मद्रास स्टेट और बॉम्बे स्टेट से शासन करते रहे। 1952 में पहले लोकतांत्रिक चुनाव हुए और डा. बुगुला रामकृष्ण राव पहले मुख्यमंत्री बने। यही वो समय था जब अलग तेलंगाना की मांग शुरू हुई और लोगों ने मद्रास स्टेट पर अपनी मांग रखते हुए सरकार के खिलाफ विरोध जताया।
आमरण अनशन के बाद
1953 में पोट्टि श्री रामुलू के आमरण अनशन के बाद उत्तरी सिरकार और रायलसीमा को काटकर आंध्र राज्य को बनाया गया, जिसकी राजधानी कुरनूल हुई। इसी दौरान तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के लिये 1946 से लेकर 1951 तक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के नेतृत्व में आंदोलन चले। यह आंदोलन नलगोंडा जिले से शुरू हुआ और देखते ही देखते वारंगल बीदर जिले में फैल गया। हिंसा हुई, लोग मारे गये, लाठियां चलीं और बहुत कुछ हुआ।
कैसे हुआ आंध्र प्रदेश का गठन
1 नवंबर 1956: में जब राज्यों के गठन के लिये बनाया गया आयोग तेलंगाना को आंध्र प्रदेश में जोड़कर राज्य बनाने के पक्ष में नहीं था। भले ही वहां की भाषा एक थी। लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते आयोग ने हैदराबाद के तटीय इलाकों और तेलंगाना के इलाकों को एक में जोड़ते हुए आंध्र प्रदेश राज्य का गठन कर दिया। मद्रास स्टेट से तेलंगाना को अलग कर आंध्र स्टेट में शामिल कर तेलुगूभाषियों के लिए एक अलग राज्य आंध्र प्रदेश की स्थापना की गई।
'जय तेलंगाना' और 'जय आंध्र' आंदोलन
1969
:
तेलंगाना
को
पृथक
राज्य
घोषित
करने
के
लिए
'जय
तेलंगाना'
आंदोलन
की
शुरुआत।
पुलिस
की
गोलीबारी
में
300
से
अधिक
लोगों
की
मौत।
यह
आंदोलन
पूरे
राज्य
में
फैला
इसमें
आये
दिन
हिंसक
झड़पों
के
कारण
हजारों
की
संख्या
में
लोग
घायल
भी
हुए।
1972
:
आंध्र
प्रदेश
के
तटवर्ती
इलाकों
में
'जय
आंध्र'
आंदोलन
की
शुरुआत
हुई।
इस
आंदोलन
की
आग
तेलंगान
से
निकली।
यहीं
से
आंध्र
प्रदेश
के
लोगों
में
तटीय
आंध्रा
और
तेलंगाना
क्षेत्र
के
लोगों
के
बीच
द्वेश
की
भावना
फैल
गयी।
'एक मत, दो राज्य' के नारे
1997
:
भारतीय
जनता
पार्टी
(भाजपा)
तेलंगाना
के
समर्थन
में
आई,
तथा
1998
के
चुनाव
में
उसने
'एक
मत,
दो
राज्य'
के
नारे
के
साथ
चुनाव
लड़ा।
2001
:
तेलंगाना
आंदोलत
को
जिवित
रखने
के
लिए
के.
चंद्रशेखर
राव
ने
तेलंगाना
राष्ट्र
समिति
(टीआरएस)
की
स्थापना
की।
टीआरएस ने कांग्रेस के साथ संयुक्त रूप से चुनाव में हिस्सा लिया
2004 : टीआरएस ने कांग्रेस के साथ संयुक्त रूप से चुनाव में हिस्सा लिया और पांच लोकसभा सीटों तथा 26 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) दल ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में तेलंगाना मुद्दे को शामिल किया तथा प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में तीन सदस्यी समिति का गठन किया।
चंद्रशेखर राव ने पृथक तेलंगाना के लिए आमरण अनशन
2
सितंबर
2009
:
मुख्यमंत्री
वाई.
एस.
राजशेखर
रेड्डी
के
हेलीकॉप्टर
दुर्घटना
में
निधन
के
कारण
राज्य
राजनीतिक
अस्थिरता
की
स्थिति।
अक्टूबर
2009
:
चंद्रशेखर
राव
ने
पृथक
तेलंगाना
के
लिए
आमरण
अनशन
शुरू
किया।
9
दिसंबर
2009
:
केंद्र
सरकार
ने
तेलंगाना
राज्य
के
गठन
प्रक्रिया
के
लिए
कदम
उठाने
की
घोषणा
की।
श्रीकृष्णा समिति
तीन
फरवरी
2010
:
केंद्र
सरकार
ने
तेलंगाना
मुद्दे
पर
पांच
सदस्यीय
श्रीकृष्णा
समिति
गठित
की।
28
दिसंबर
2012
:
केंद्रीय
गृहमंत्री
सुशील
कुमार
शिंदे
ने
एक
सर्वदलीय
बैठक
के
बाद
एक
महीने
के
अंदर
अंतिम
निर्णय
किए
जाने
की
घोषणा
की।
पृथक तेलंगाना राज्य के गठन
12
जुलाई
2013
:
तेलंगाना
पर
आई
रिपोर्ट
पर
मुख्यमंत्री,
उप
मुख्यमंत्री
और
कांग्रेस
के
प्रदेशाध्यक्ष
के
साथ
चर्चा
के
लिए
कांग्रेस
की
कोर
कमेटी
की
बैठक
हुई।
30
जुलाई
2013
:
संप्रग
की
समन्वय
समिति
और
कांग्रेस
की
कार्यकारी
समिति
की
बैठक
में
पृथक
तेलंगाना
राज्य
के
गठन
का
निर्णय
लिया
गया।