नवरात्र स्पेशल: सती अनुसूया मंदिर, मान्यता संतान की इच्छा होती है पूरी, त्रिदेव भी वात्सल्य रूप में रहे बंदी
सती माता अनसूया का मंदिर उत्तराखंड के चमोली में स्थित है
देहरादून, 30 सितंबर। सती माता अनसूया का मंदिर उत्तराखंड के चमोली में स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 5 किमी की खड़ी चढ़ाई है। मंदिर में लगभग हर रोज दंपति तपस्या के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के गर्भगृह में देवी अनसूया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है। जिसके ऊपर चांदी का छत्र रखा है। मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में रात्रिभर जागरण, ध्यान करने से संतान की इच्छा रखने वाली महिला की गोद भर जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सपने में देवी के दर्शन हो गए तो समझो माता ने अपने भक्त की प्रार्थना सुन ली है।
मंदिर कत्यूरी शैली में बना है
जिला मुख्यालय गोपेश्वर से 13 किलोमीटर दूर चोपता मोटर मार्ग पर मंडल के पास देवी अनसूया का मंदिर स्थित है। यह मंदिर कत्यूरी शैली बना है। मंदिर में सबसे पहले गणेश जी की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं। जो एक शिला पर बनी है। कहा जाता है कि यह शिला यहां पर प्राकृतिक रूप से है। यहां पर अनसूया नामक एक छोटा सा गांव हैए जहां पर भव्य मंदिर है। मंदिर नागर शैली में बना है। मंदिर में लगभग हर रोज दंपति तपस्या के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के गर्भगृह में देवी अनसूया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है। जिसके ऊपर चांदी का छत्र रखा है।अनसूया मंदिर परिसर के पास पीछे की ओर दत्तात्रेय भगवान की एक प्राचीन शिला है, जो माता के तीन पुत्रों में से एक हैं। दत्तात्रेय भगवन विष्णु के अवतार माने जाते हैं। हर साल दत्तात्रेय जयंती के दिन यहां मेला लगता है, जिसे स्थानीय लोग अनसूया मेला या नौदी मेला कहते हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भारत में सती साध्वी नारियों में अनसूया का स्थान बहुत ऊंचा है। ब्रह्मा के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि को इन्होंने पति के रूप में प्राप्त किया था। मान्तया है कि लक्ष्मी, सती और सरस्वती को अपने पातिव्रत्य का बड़ा अभिमान था। तीनों देवियों के अहंकार को नष्ट करने के लिए एक बार भगवान ने लीला रची। तीनों देवियों ने त्रिदेवों से हठ करके उन्हें सती अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए बाध्य किया। ब्रह्मा, विष्णु और महेश महर्षि अत्रि के आश्रम पर पहुंचे। तीनों देव मुनिवेष में थे। मान्यता है कि सती अनुसूया ने त्रिदेव को बाल्य रूप में वात्सल्य प्रेम से बंदी बना लिया था। इस पर तीनों देवियों के क्षमा मांगने पर ही त्रिदेव इससे मुक्त हो पाए। त्रिदेवों ने प्रसन्न होकर अपने.अपने अंशों से अनसूया के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया।