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यूपी की सियासी पाठशाला में हर कोई पास नहीं होता

ये उत्तर प्रदेश है यहां लोगों को समझना मुश्किल ही नहीं तकरीबन नामुमकिन है, लोग पसंद तो किसी नेता को करते हैं लेकिन वोट किसी और को देते हैं।

By Ankur
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा प्रदेश है और यहां की राजनीति देश की राजनीति को दशा और दिशा देती है। 2014 में नरेंद्र मोदी को यहां से 71 सीटें हासिल हुई थी, जिसने उन्हें एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित किया और वह पहली बार कांग्रेस से इतर पूर्ण बहुमत के प्रधानमंत्री बने। उत्तर प्रदेश में कुल सात चरणों में चुनाव हो रहा है, यहां तमाम नेता तरह-तरह के बयान दे रहे हैं। यहां कभी गधा हेडलाइन बनता है तो कभी कब्रिस्तान, श्मशानघाट जैसे मुद्दे भी मीडिया की सुर्खियां बनती है।

लोगों की राय समझना मुश्किल

लोगों की राय समझना मुश्किल

उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों की राजनीति को देखें तो मुख्य रूप से लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, इलाहाबाद चर्चा में रहे। प्रदेश में अभी तक कुल 5 चरण के मतदान हो चुके हैं लेकिन अभी तक किसी भी मीडिया संस्थान ने किसी भी चरण के बाद एग्जिट पोल जारी नहीं किए, ऐसे में लोग लोगों की राय के आधार पर ही प्रदेश की राजनीति का मूड समझने की कोशिश कर रहे हैं। यहां यह भी समझना होगा कि प्रदेश में इस बार तीनों अहम दलों में से किसी भी एक दल की लहर नहीं है, यही वजह है कि बड़े-बड़े राजनीति पंडित भी इस बार किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं और त्रिशंकु विधानसभा की आशंका जता रहे हैं।

वोट कहीं पर पसंद कुछ और

वोट कहीं पर पसंद कुछ और

उत्तर प्रदेश में अगर आप किसी भी क्षेत्र में जाएं तो लोग अपनी राजनीतिक पसंद के बारे में बात तो करते हैं लेकिन अगर उनसे यह पूछा जाए कि किस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल रहा है तो वह इसका जवाब कुछ अलग देंगे। प्रदेश में एक बड़ा तबका आपको ऐसा भी मिलेगा जो कहेगा कि मैं सपा या बसपा को वोट दुंगा लेकिन वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं, लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि ये लोग प्रधानमंत्री मोदी की बतौर नेता तारीफ करते हैं लेकिन उन्हें अखिलेश यादव से काफी उम्मीदें हैं।

वोट कहीं पर पसंद कुछ और

वोट कहीं पर पसंद कुछ और

उत्तर प्रदेश में अगर आप किसी भी क्षेत्र में जाएं तो लोग अपनी राजनीतिक पसंद के बारे में बात तो करते हैं लेकिन अगर उनसे यह पूछा जाए कि किस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल रहा है तो वह इसका जवाब कुछ अलग देंगे। प्रदेश में एक बड़ा तबका आपको ऐसा भी मिलेगा जो कहेगा कि मैं सपा या बसपा को वोट दुंगा लेकिन वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं, लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि ये लोग प्रधानमंत्री मोदी की बतौर नेता तारीफ करते हैं लेकिन उन्हें अखिलेश यादव से काफी उम्मीदें हैं।

मायावती की राजनीति जाति पर आधारित

मायावती की राजनीति जाति पर आधारित

यूपी में जब आप पारंपरिक सपा बसपा व कांग्रेस समर्थकों से मिलेंगे तो वह अपने वोट को बदलने की भी बात करेंगे, यहां ह भी अहम है कि लोग मायावती की नेतृत्व क्षमता के साथ खड़े नजर नहीं आते हैं, इनका मानना है कि मायावती उम्मीदवारों का चयन धर्म और जाति के आधार पर करती हैं ताकि वह भाजपा को हरा सके। लखनऊ में मुस्लिम मतदाताओं की बात करें तो बड़ा तबका यह मानता है कि सिर्फ भाजपा को हराने के लिए मायावती ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं।

तुम पसंद तो हो लेकिन साथी नहीं

तुम पसंद तो हो लेकिन साथी नहीं

अगर आप उत्तर प्रदेश में मतदाताओं की राय पर नजर डालें तो यह बात सामने निकलकर आती है कि लोग पसंद किसी नेता को करते हैं लेकिन वोट किसी और नेता को देते हैं। यह कुछ ऐसा ही है कि लोग कहते हैं कि वह प्रेम विवाह करेंगे लेकिन विवाह के समय वह अपने माता-पिता पर निर्भर होते हैं और अरेंज मैरिज करते हैं। बहरहाल इस बार उत्तर प्रदेश के सियासी माहौल को समझना काफी मुश्किल है, इसकी एक बड़ी वजह है कि लंबे समय के बाद प्रदेश में सपा-कांग्रेस से इतर भाजपा भी एक मजबूत दावेदार के तौर पर मैदान में है, ऐसे में एक तरफ जहां अखिलेश यादव लोगों को अपनी ओर खींचने सफल हो रहे हैं तो पीएम मोदी की लोकप्रियता भाजपा के पक्ष में जा रही है, हालांकि अभी भी एक तबका ऐसा है जो यह मानता है कि प्रदेश में मायावती बेहतर प्रशासन दे सकती हैं। बहरहाल चुनाव के नतीजे 11 मार्च को आएंगे और तभी यूपी का मूड समझ में आएगा।

English summary
This is Uttar Pradesh where it Is tough to understand the wave of political parties. People like to a leader but they do not vote to him.
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