क्यों राहुल गांधी और बेंजामिन नेतन्याहू के बीच मुलाकात नहीं हो पाई?
नई दिल्ली। बीजेपी की सरकार में भारत और इजराइल के रिश्ते हमेशा से बेहतर रहे हैं। करीब 15 साल पहले एरियल शेरोन ने इजराइली पीएम के रूप में पहली बार भारत दौरा किया था, तब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत-इजराइल के संबंध एक बार फिर अपनी मधुरता की चरम पर है। जब इजराइली पीएम के रूप में शेरोन भारत आए थे, तब उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी, हालांकि इन दोनों नेताओं की तस्वीरें सार्वजनिक नहीं की गई थी। वहीं, इस बार जब बेंजामिन नेतन्याहू नई दिल्ली पहुंचे हैं, तो कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी उनसे नहीं मिल रहे हैं।
सरकार ने तय किया एजेंडा
इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जब नई दिल्ली उतरे और मोदी ने उन्हे गले लगाया, तभी कांग्रेस ने एक ट्वीट कर पीएम के गले लगने वाले अंदाज को व्यंग्यपूर्ण ढंग से मजाक बनाने की कोशिश की गई। विदेश मंत्रालय ने इजराइली लीडर के भारत में प्रोग्राम को जारी करने के एक दिन बाद ही अनौपचारिक रूप से यह स्पष्ट हो गया था कि बेंजामिन नेतन्याहू और राहुल गांधी के बीच मुलाकात नहीं होगी। नेतन्याहू और राहुल गांधी की मुलाकात ना होने को लेकर जेएनयू प्रोफेसर पीआर कुमारस्वामी इंडियन एक्सप्रेस मे अपने एक आर्टिकल में लिखते हैं कि यह द्विपक्षीय संबंधों में अनायास ही नकारात्मक परिणाम की संभावनाएं दिखती है।
यूपीए के दौरान भारत-इजराइल के रिश्तों में खास तवज्जो नहीं
यूपीए के 10 साल के कार्यकाल के दौरान भारत और इजराइल के रिश्ते ठीक-ठाक ही थे। दोनों देशों के बीच कोई खास पब्लिक पॉलिटिकल कॉन्टेक्ट नहीं देखा गया। वहीं, दोनों सरकारों के बीच ना तो ऐसा हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम या समारोह आयोजित किया गया, जिसमें दोनों देशों की पार्टी या सरकार भाग ले सके। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूपीए युग में दोनों देशों के बीच सीमित कैबिनेट स्तरीय की आदान-प्रदान देखने को मिली थी। मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत और इजराइल के बीच रिश्तों में नये आयाम पैदा हुए हैं। पिछले तीन सालों में दोनों देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही नहीं बल्कि विदेश, रक्षा और गृह मंत्रियों ने भी एक-दूसरे के देशों का दौरा कर रिश्तों की एक नई नींव खड़ी करने की कोशिश की गई है।
मोदी ने की थी इजराइल के विपक्षी नेता से मुलाकात
पिछले साल जुलाई में जब पीएम मोदी ने इजराइल का दौरा किया था, तब उन्होंने बेंजामिन नेतन्याहू के अलावा, वहां के विपक्षी पार्टी से भी मुलाकात की थी। मोदी ने इजराइल में लेबर पार्टी के नेता इसाक हेर्जोग से मुलाकात थी, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसाक अपनी लीडरशिप रेस हारने के बाद भी मोदी के साथ मीटिंग को बनाए रखी थी।
राहुल गांधी-नेतन्याहू से मुलाकात ना होना एक गंभीर चूक
कुमारस्वामी अनुसार, बेंजामिन नेतन्याहू और राहुल गांधी के बीच मुलाकात ना होना एक गंभीर चूक है। सरकार अपनी इस स्थिति को कांग्रेस की चुनावी पराजय और विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति को औचित्य दे सकती है और उनके हिसाब से व्यवहारिक रूप से सही भी होगा। हालांकि, सरकार की यह छोटी-नजर वाली सामरिक चाल है और यह इजराइल की राष्ट्रीय सहमति के रूप में सामने आ सकती है। हालांकि, इससे कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां ज्यादा खुश होगी कि भारत और इजराइल के बजाय बीजेपी-लिकुड (इजराइल में राइट विंग पार्टी) के अच्छे रिश्तों के लिए नेतन्याहू को नई दिल्ली बुलाया गया है।