बेलबॉटम की असल कहानी : प्लेन हाईजैक होने पर इंदिरा गांधी ने किया पाक राष्ट्रपति को फोन
नई दिल्ली, 05 अगस्त। भारत की लौहमहिला कही जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक बार फिर चर्चा में हैं। वजह है फिल्म बेलबॉटम में इंदिरा गांधी की भूमिका निभा रही लारा दत्ता का बेहतरीन मेकअप। अभी फिल्म का ट्रेलर ही जारी हुआ है। लेकिन इंदिरा गांधी के रूप में लारा दत्ता का गेटअप सुर्खियों में है।
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इस फिल्म की कहानी एक भारतीय हवाई जहाज के हाईजैकिंग पर आधारित है। फिल्म में भारत के जांबाज जासूस (अक्षय कुमार) बंधक यात्रियों को छुड़ाने के लिए एक रोमांचकारी अभियान को मूर्त रूप देते हैं। लेकिन इस घटना की असल कहानी क्या है ? इस घटना के समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने क्या किया था ? उस समय भारत की राजनीतिक परिस्थियां कैसी थीं ?
खौफनाक कहानी की शुरुआत
साल 1984, तारीख 24 अगस्त और दिन शुक्रवार। इंडियन एयरलाइंस के एक विमान ने चंडीगढ़ से जम्मू जाने के लिए उड़ान भरी। वी के मेहता मुख्यपायलट के रूप में विमान उड़ा रहे थे। विमान में यात्री और क्रू मेम्बर समेत कुल सौ लोग सवार थे। विमान ऊंचाई पर पहुंच चुका था। सुबह के साढ़े सात बजे थे। तभी पगड़ी पहने कुछ सिख नौजवान तूफान की तरह कॉकपिट में दाखिल हो गये। उन्होंने कृपाण लहराते हुए कहा, प्लेन को हाईजैक कर लिया गया है। कुल सात अपहरणकर्ता थे जिनकी उम्र 18 से 20 साल के बीच रही होगी। इनमें से कुछ खालिस्तान के समर्थन में नारे लगा रहे थे। हथियार के रूप में उनके पास सिर्फ कृपाण और पगड़ी में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के निडिल्स (सुए) थे। उन्होंने पायलट मेहता को आदेश दिया कि प्लेन को अमृतसर ले चलें और हवा में स्वर्ण मंदिर की परिक्रमा करें। विमान अमृतसर पहुंचा। विमान ने स्वर्ण मंदिर के अभी दो ही चक्कर लगाये थे कि अपहरणकर्ताओं ने लाहौर चलने का आदेश दिया। वे लाहौर से अमेरिका जाना चाहते थे। सभी अपहरणकर्ता कम उम्र के थे और उनके पास कोई ठोस योजना नहीं थी।
भारत से हाईजैक विमान पहुंचा लाहौर
पायलट मेहता ने विमान को लाहौर की तरफ मोड़ा। लाहौर एयरपोर्ट के ऊपर करीब 80 मिनट तक विमान चक्कर काटता रहा लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने लैंड करने की मंजूरी नहीं दी। उन्होंने रनवे को ब्लॉक कर दिया। तब तक सुबह के 9 बज कर 50 मिनट हो चुके थे। विमान का इंधन लगातार कम हो रहा था। जब स्थिति खतरनाक स्तर पर पहुंच गयी तो पायलट मेहता ने रेडियो पर त्राहिमाम संदेश भेजा। अंत में पाकिस्तान ने विमान को लैंड करने की मंजूरी दे दी। अचानक गले आ पड़ी मुसीबत से पाकिस्तान जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहता था। भारत से जुड़ा होने के चलते यह बहुत ही संवेदनशील मामला था। तब तक ये पता चल चुका था कि अपहरकर्ताओं के पास कोई आधुनिक हथियार नहीं है। वे सिर्फ कृपाण के सहारे ही खौफ पैदा किये हुए हैं। भारत की नजर यह एक मौका था जब वह कमांडो ऑपरेशन के जरिये बंधकों को छुड़ सकता था। अपहरणकर्ताओं के पास चूंकि बम या रिवाल्वर नहीं था इसलिए कमांडो ऑपरेशन में रिस्क कम था।
इंदिरा गांधी ने जियाउल हक को फोन लगाया
इस घटना के बाद भारत में तहलका मच गया था। पिछले पांच साल में यह चौथा मौका था जब किसी भारतीय प्लेन को हाईजैक किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुफिया एजेंसियों की नाकामी पर बरस पड़ी। कहा जाता है कि उन्होंने उसी समय पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउल हक को फोन लगाया। उन्होंने जियाउल हक से दरख्वास्त की कि वो भारत के हाईजैक विमान को पाकिस्तान से उड़ने न दें। बंधक बने विमान यात्रियों को छुड़ाने में वे मदद करें। लेकिन जियाउल हक ने इंदिरा गांधी के अनुरोध को ठुकरा दिया। उस समय इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में केडी शर्मा राजनयिक के रूप में तैनात थे। इस घटना के बाद उन्हें लाहौर पहुंचने के लिए कहा गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी किसी कीमत पर भारतीय यात्रियों को छुड़ाना चाहती थीं। जब तक केडी शर्मा लाहौर पहुंचते तब तक विमान इंधन भर कर वहां से उड़ान भर चुका था।
पाकिस्तान की साजिश
लाहौर एयरपोर्ट पर खालिस्तान समर्थक अपहरणकर्ताओं ने विमान अमेरिका ले चलने का आदेश दिया। तब पायलट मेहता ने उन्हें बताया कि यह घरेलू उड़ान में इस्तेमाल होने वाला प्लेन है, इसकी क्षमता अमेरिका तक उड़ान भरने की नहीं है। यह सुन कर अपहरणकर्ता असमंजस में पड़ गये। तब तक शाम के सात बज चुके थे। तभी सात अपहरकर्ताओं में से एक ने अचानक रिवाल्वर निकाल कर पायलट मेहता के सिर पर सटा दिया । उसने आदेश दिया कि विमान को बहरीन ले चलें। मेहता यह देख कर आवाक रहे गये कि 12 घंटे बाद अपहरकर्ताओं के पास अचानक रिवाल्वर कहां से आ गया। बाद में उन्हें विमान के एक ब्रिटिश यात्री डोमिनिक बर्कले ने बताया था कि जब वे लाहौर एयरपोर्ट पर थे तब एक अपहरणकर्ता नीचे उतरा था। उन्होंने देखा था कि एक पाकिस्तानी अधिकारी ने अपहरणकर्ता को कागज का एक बड़ा लिफाफा दिया था। इसके बाद वह फौरन विमान के अंदर आ गया और लिफाफे को बहुत सावधानी से पकड़े हुए था। बाद में उसने उसी लिफाखे से अचानक रिवाल्वर निकाली थी। यानी पाकिस्तान ने भारतीय यात्रियों की जान जोखिम में डालने की साजिश रची थी।
लगा अब जिंदगी का अंत होने वाला है
सिर पर तनी पिस्तौल देख कर पायलट मेहता डर गये। लेकिन बहरीन के लिए उड़ान भरने की स्थितियां अनुकुल नहीं थी। इसलिए उन्होंने टेकऑफ से इंकार कर दिया। फिर उन्हें दुबई के लिए उड़ान भरने का आदेश दिया गया। जब विमान दुबई एयरपोर्ट के एरिया में पहुंचा तो संयुक्त अरब अमिरात के अधिकारियों ने उसे लैंड करने से रोक दिया। रात गहरा रही थी। यूएई प्रशासन भी हाईजैक विमान के लफड़े में नहीं पड़ना चाहता था। दुबई एयरपोर्ट की सारी बत्तियां बुझा कर अंधेरा कर दिया गया। ताकि प्लेन लैंड न कर सके। विमान बहुत देर से हवा में मंडरा रहा था। इंधन फिर खत्म हो रहा था। तब एक बार फिर पायलट मेहता ने सूझबूझ का परिचय दिया। उन्होंने यूएई के अधिकारियों को संदेश भेजा कि एक सौ लोगों की जिंदगी का सवाल है, खुदा के लिए इन पर रहम खाइए। अब जहाज में सिर्फ पांच मिनट का इंधन बचा है। अगर आप लेंडिंग की इजाजत नहीं देंगे तो विमान को समुद्र में उतारने के सिवा कोई और रास्ता नहीं बचेगा। तब कौन जिंदा बचेगा और कौन नहीं, कोई नहीं जानता। सभी यात्री बेहद डरे हुए थे। उन्हें लग रहा था अब जिंदगी का अंत होने ही वाला है। यह संदेश सुनने के बाद दुबई एयरपोर्ट की बत्तियां जल उठीं। विमान को रनवे पर उतारने की मंजूरी मिल गयी। तब तक सुबह के साढ़े चार बज चुके थे।
दुबई में खौफनाक कहानी का अंत
यूएई ने भारत के साथ सहयोग किया। उस समय यूएई के तत्कालीन रक्षा मंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद यूरोप के दौरे पर थे। इस घटना की खबर मिलने के बाद वे यूरोप की यात्रा बीच में छोड़ कर अपने निजी विमान से फौरन दुबई पहुंचे। उन्होंने खुद इस मामले को अपने हाथ में ले लिया। तब तक यूएई में भारत के तत्कालीन राजदूत इशरत अजीज और तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री ए ए रहीम भी वहां पहुंच गये। रक्षा मंत्री शेख राशिद ने अपहरणकर्ताओ से बातचीत शुरू का। वक्त गुजर रहा था। खौफ के साये में 28 घंटे गुजर चुके थे। यात्री भूख और प्यास से छटपटा रहे थे। यूएई प्रशासन ने विमान तक खाने के पैकेट और पानी भेजा लेकिन अपहरकर्ताओं ने अंदर नहीं आने दिया। बातचीत के दौरान अपहरकर्ताओ ने पहली मांग रखी कि उन्हें अमेरिका में शरण देने की शर्त मानी जाय। अमेरिका ने इससे साफ इंकार कर दिया। बाद में दुबई के पुलिस प्रमुख कर्नल तमीम ने एक प्रेस कांफ्रेस में बताया कि अपहरणकर्ताओं ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया है। 25 अगस्त 1984 की शाम सात बजे सभी यात्रियों को सुरक्षित निकाल लिया गया। इस तरह एक खौफनाक कहानी का सुखद अंत हुआ।