ग्राउंड रिपोर्ट: ये है दिल्ली में तीन बच्चियों की भूख से हुई मौत का सच
पूर्वी दिल्ली के मंडावली में भूख के कारण तीन बच्चियों की मौत हो गई है। बच्चियों की पोस्टमॉटम रिपोर्ट से इसकी पुष्टि हुई है। इनमें सुक्का दो साल की थी, पारुल चार साल की और मानसी सिर्फ़ आठ साल की थी। बच्चियों के पिता मंगल सिंह अभी कहां हैं और वो कब आएंगे- ये किसी को नहीं पता। बच्चियों की मां बीना वहां मौजूद हैं, लेकिन वो कुछ नहीं बोलतीं।
नई दिल्ली। पूर्वी दिल्ली के मंडावली में भूख के कारण तीन बच्चियों की मौत हो गई है। बच्चियों की पोस्टमॉटम रिपोर्ट से इसकी पुष्टि हुई है। इनमें सुक्का दो साल की थी, पारुल चार साल की और मानसी सिर्फ़ आठ साल की थी। बच्चियों के पिता मंगल सिंह अभी कहां हैं और वो कब आएंगे- ये किसी को नहीं पता। बच्चियों की मां बीना वहां मौजूद हैं, लेकिन वो कुछ नहीं बोलतीं। लोगों ने उन्हें 'मानसिक रूप से अस्थिर' घोषित कर दिया है।
आम घरों के बाथरूम से भी छोटे एक कमरे में बीना नारायण यादव नाम के एक व्यक्ति के साथ बैठी थीं। नारायण, उनके पति मंगल के दोस्त हैं। पेशे से रसोइये नारायण अपने दोस्त मंगल और उनके परिवार को बीते शनिवार को अपने साथ मंडावली की इस खोली में लेकर आए थे। नारायण बताते हैं, "मंगल का रिक्शा चोरी हो गया था। उसके पास एक भी रुपया नहीं था। उसका मकान मालिक उसको घर से निकाल दिया था।
उस दिन बारिश भी खूब हो रही थी। कहां जाता वो तीन-तीन बच्चों को लेकर तो मैं उसे अपने साथ लेता आया। उसने कहा कि दो-चार दिन रख ले फिर जब मैं पैसा कमाकर आऊंगा तो दे दूंगा।" इससे पहले मंगल और उनका परिवार मंडावली के ही दूसरे इलाक़े में एक झोपड़ी में रहता था।
नरायण बताते हैं, "वो एक गराज के पास रहता था। रिक्शा चलाकर कोई कितना कमा सकता है। कभी मकानमालिक को पैसा देता था तो कभी नहीं दे पाता था, लेकिन इस बार मकान मालिक ने उसे घर से निकाल दिया। बीवी भी तो ऐसी नहीं जो कुछ काम करती।" नारायण बताते हैं कि मंगल उनका दोस्त "नहीं भाई था" लेकिन फ़िलहाल वो कहां है ये उन्हें नहीं पता।
बच्चियां बीमार थीं
मंडावली की जिस इमारत की एक खोली में नारायण रहते हैं वो दो फ़्लोर ऊंची है। इसमें क़रीब 30 से ज़्यादा परिवार रहते हैं। सभी का कहना है कि उनमें से किसी ने भी बच्चों को मरते हुए नहीं देखा। नारायण का कमरा इमारत के ग्राउंड फ़्लोर पर है। एक कमरा, दूसरे कमरे से महज़ पांच कदम की दूरी पर है, लेकिन किसी ने बच्चियों को मरते नहीं देखा।
दो कमरा छोड़कर रहने वाली एक महिला ने हमें बताया, "वो लोग आए थे ये तो पता चला. कमरा हमेशा बंद ही रहता था, इसलिए नहीं पता कि कब क्या हुआ।" यहां के मकान मालिक की पत्नी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, "ये लोग शनिवार को नारायण के घर पर आए थे। बच्चों को तभी से दस्त और उल्टी हो रही थी, मैंने कहा भी कि बच्चों को डॉक्टर को दिखा दें। लेकिन उसके बाद यह सब हो गया।"
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इस मामले में बच्चियों की पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आ चुकी है जिसमें मौत की वजह भूख और कुपोषण बताई गई है। नारायण भी इस बात को सही बताते हैं. वो कहते हैं, "वो सब बीमार तो थे। कभी खाना मिलता था, कभी नहीं मिलता था।" पूछने पर उन्होंने बताया, "मुझे याद है कि हम लोगों ने सोमवार शाम को साथ मिल कर चावल-दाल खाया था। पर शायद भूख बच्चों की जान में लग गई थी। मंगलवार को मैं काम पर नहीं गया था। मैं दोपहर को मंगल के कमरे में गया तो देखा कि तीनों बच्चियां गिरी हुई हैं। उनकी आंखें बंद हैं।"
मकान मालिक के बेटे प्रदीप ने बताया कि मंगलवार दोपहर को नारायण भागा-भागा उनके पास आया था। वो बताते हैं "नारायण अपने दोस्त के परिवार के साथ आया ये तो हमें पता था, लेकिन हमने कुछ कहा नहीं। फिर मंगलवार को दोपहर में नारायण हमारे पास आया और उसने हमसे कहा कि बच्चियां बेहोश हो गई हैं। हम लोग बच्चियों को लेकर लालबहादुर शास्त्री अस्पताल पहुंचे, जहां बताया गया कि बच्चियों में जान नहीं रही।"
मंडावली थाने के एसएचओ सुभाष चंद्र मीणा के मुताबिक़, उनके पास क़रीब डेढ़ बजे अस्पताल से फ़ोन आया कि तीन बच्चियां लाई गई हैं जिनकी मौत हो गई है।
बच्चियों की मां कुछ बोलती नहीं
नारायण के उस छोटे से कमरे के बाहर कई लोग मौजूद थे. ज़्यादातर लोगों ने हमें बताया कि बीना "पागल" हैं. वो कुछ बोल नहीं सकतीं। इस बीच कुछ लोगों ने कटाक्ष किया "अरे, जो औरत अपनी बच्चियों की मौत का सुनकर भी चुप रही वो क्या बात करेगी." लेकिन हमें लगा कि वहां मौजूद हर व्यक्ति उस "पागल" से कुछ सुनना चाहता था.
कमरे में 12 बाई 12 इंच का एक रोशनदान था, लेकिन जब हम वहां पहुंचे तो वहां पर मीडिया के कैमरे लगे हुए थे. कमरा बंद था और अंदर जाने की किसी को इजाज़त नहीं थी, लिहाजा कमरे में झांकने का एकमात्र रास्ता रोशनदान ही था. इतना ही नहीं कमरे में हवा आने-जाने का जो एकमात्र रास्ता बचा था, यानी दरवाज़ा, उसे भी वो लोग घेरे हुए थे जो बीना को विक्षिप्त बता रहे थे.
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कमरे में नारायण और बीना के अलावा एक महिला पुलिसकर्मी भी थीं और बाहर बैठे पुलिसवालों के साथ कम से कम पचास लोगों की भीड़ थी. अंदर मौजूद लोग दम घुटने से मर न जाएं, इसलिए पुलिस घड़ी-घड़ी ज़रा-सा दरवाज़ा खोलती और फिर बंद कर देती.
बीना वाकई कुछ नहीं बोलती हैं. कई बार पूछने पर उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा "आज सुबह से बस चाय पी." नारायण बताते हैं कि मंगल का कुछ पता नहीं. "पता नहीं वो आएगा कि नहीं. बच्चियां चली गईं और इसको तो आप देख ही रही हैं... जब तक कोई नहीं आता मैं ही इसे रखूंगा. इसका कोई जानने वाला नहीं है. मैं भी छोड़ दूंगा तो कहां जाएगी." मूलरूप से पश्चिम बंगाल का रहने वाला ये परिवार कई साल पहले दिल्ली आकर बस गया था.
राशन कार्ड नहीं था...
नारायण बताते हैं कि मंगल सिंह के पास राशन कार्ड नहीं था. वो कहते हैं, "राशनकार्ड बनवाने में भी तो पैसे लगते हैं. जिसके पास खाना खाने के लिए पैसे नहीं हों वो कार्ड कैसे बनवाएगा." लेकिन ये समस्या सिर्फ़ मंगल या नारायण की नहीं है. मंडावली की इस इमारत में रहने वाले क़रीब 30 परिवारों में से ज़्यादातर लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं.
लोगों से पूछा तो उनमे से कइयों ने हमें बताया कि राशन कार्ड बनवाना उतना आसान नहीं है जितना दूर से लगता है. कभी मकान मालिक अपनी आईडी और फ़ोटो नहीं देता तो कभी अधिकारी पैसे मांगते हैं. बिल्डिंग के मकान मालिक के बेटे प्रदीप की अपनी अलग परेशानी है. वो कहते हैं, "यहां जो लोग रहते हैं वो सरकारी नौकरी करने वाले तो हैं नहीं. कोई मज़दूर है, कोई ठेला खींचता है तो कोई कुछ और..."
"कोई दो महीने के लिए रहने आता है कोई चार महीने के लिए. कई बार तो कुछ लोग एक या दो हफ़्ते के लिए ही रहने आते हैं. यहां का किराया भी 1000 - 1500 है. अब मैं इतने से किराए के लिए रेंट अग्रीमेंट तो नहीं बनवाऊंगा ना...और अपना आईडी भी देने में डर है."
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चिड़ियाघर जैसी स्थिति थी...
जिस तरह किसी नए जानवर को चिड़ियाघर में लाया जाता है और लोग उसे बारी-बारी से देखने जाते हैं, कुछ ऐसा ही नज़ारा इमारत के इस कमरे का था. बीना और नारायण कमरे में बंद थे. मीडिया को उनसे मिलने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन बड़े अधिकारी और नेताओं के आते ही दरवाज़ा खोल दिया जाता. दरवाज़ा खुलता, नेता अंदर जाते और दोबारा दरवाज़ा बंद हो जाता. वो बाहर आते, बाइट देते और कुछ देर के लिए सब शांत हो जाता.
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने बीना और नारायण से मुलाक़ात के बाद कहा कि इस मामले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन ये सिस्टम की अनदेखी ज़रूर है. उन्होंने दिल्ली की आम आदमी पार्टी पर राशन कर्ड बांटने में कोताही का आरोप लगाया और कहा कि "मैं अरविंद केजरीवाल को बोलूंगा कि वो ख़ुद आ कर स्थिति देखें. उन्हें अब तक आ जाना चाहिए था."
वहीं आम आदमी पार्टी के नेता और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने भी नारायण और बीना से मुलाक़ात के बाद उन्हें मुआवज़ा देने की बात कही और मामले की जांच के भी आदेश दिए. उन्होंने माना कि "यह लापरवाही का मामला है और इसकी जांच में कोई कमी नहीं रखी जाएगी." मनीष सिसोदिया ने बीना का बेहतर इलाज कराने का भी आश्वासन दिया.
मंडावली में इन तीन बच्चियों की मौत भले ही भूख के चलते हुई हो, उस पर राजनीति भी जम कर शुरू हो गई है. लेकिन जिस इलाके का यह मामला है वहां एक स्वस्थ ज़िदगी जी पाना संभव नहीं दिखता. मुख्य सड़क से इस घर तक पहुंचने के लिए जिन गलियों से हो कर गुज़रना पड़ता है वो मात्र तीन-चार फ़ुट चौड़ी हैं. सीवर का पानी ओवरफ़्लो कर रहा है और इन गलियों में जमा हो रहा है. यहां की नाक बंद कर देने वाली बदबू के बीच गलियों के दोनों तरफ़ परिवार कैसे गुज़र-बसर करते हैं ये सोचना भी मुश्किल है.
गलियों में लगे कूड़े के ढेर और गड्ढ़ों को पार कर कर आप मंगल के घर तक पहुंचते हैं. कमरों की बात करें तो यहां की अधिकांश इमारतों में छोटे-छोटे कमरे ही घर हैं और एक कमरे में तीन-चार लोगों का परिवार रहता है और कमरों में हवा के आने-जाने के लिए व्यवस्था की स्थिति ऐसी है जहां सांस भी लेनी हो तो दरवाज़ा खोलना पड़ता है.
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