BJP प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के बयान से बवाल, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने किया विरोध
भू धंसाव के बाद से ही धरना दे रहे जोशीमठ के लोगों को महेंद्र भट्ट ने माओवादी कहते हुए आंदोलन को माओवादियों का आंदोलन बताया। महेंद्र भट्ट के इस बयान के बाद से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने पुरजोर विरोध किया है।
जोशीमठ प्रकरण को लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के एक बयान से बवाल मचा हुआ है। भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक के बाद प्रेसवार्ता कर रहे प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने बयान देकर सियासत गरमा दी। भू धंसाव के बाद से ही धरना दे रहे जोशीमठ के लोगों को महेंद्र भट्ट ने माओवादी कहते हुए आंदोलन को माओवादियों का आंदोलन बताया। महेंद्र भट्ट के इस बयान के बाद से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने पुरजोर विरोध किया है।
परियोजनाओं के खिलाफ बरगला रहे हैं
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भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जोशीमठ प्रकरण छाया रहा। इस दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट समेत पदाधिकारियों ने इस मुद्दे पर अपने विचार और सुझाव रखे। महेंद्र भट्ट ने कहा, कार्यसमिति में चिंता जताई गई कि कुछ वामपंथी विचारधारा वाले लोग जिनकी राज्य में कोई भूमिका व जनाधार भी नही है वे स्थानीय लोगों में राष्ट्रीय विकास व सामरिक दृष्टि से जरूरी परियोजनाओं के खिलाफ बरगला रहे हैं। भट्ट के इस बयान से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति में भारी गुस्सा है। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने कहा कि भट्ट ने इस बयान के जरिए जोशीमठ के लिए संघर्ष कर रही जनता का अपमान किया है। सती ने कहा कि जब महेंद्र भट्ट ने 1 जनवरी को मुझे अपने घर पर बुलाकर प्रभावितों के उचित पुनर्वास और व्यवस्था के लिए सलाह दी थी तो तब क्या महेंद्र भट्ट एक माओवादी विचारधारा के व्यक्ति से सलाह ले रहे थे। अतुल सती ने महेंद्र भट्ट से सवाल किया है कि 14 महीने क्यों सोये रहे। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने इस बयान की निंदा की है। सती ने सोशल मीडिया के जरिए भी महेंद्र भट्ट पर पलटवार कर कहा है कि
चीन के साथ पींगे तुम बढ़ाओ। व्यापार तुम बढ़ाओ। चीन से बड़ी बड़ी मूर्तियां तुम बनवाओ। चीन को बड़े बड़े ठेके पुल तुम बनवाओ। अपने गांव से रिश्ते तुम निकलवाओ। सबसे ज्यादा चीन के चक्कर तुम लगाओ।
अतुल सती ने कहा कि हमने तो 1962 के युद्ध के बाद उधर देखा भी नहीं। हमारा तो पीढ़ियों के व्यापार तिब्बत के साथ था। वह बन्द हो गया। यहां जनता ने उसका नुकसान उठाया। बद्रीनाथ का और थौलिंग मठ का सांस्कृतिक सम्बन्ध था। वहां से बद्रीनाथ के लिये हर साल कम्बल आता था। वह टूट गए। हमने देश की खातिर परवाह न की। आज भी अगर चीन इधर देखे तो हम ही सबसे पहले उससे सामना करेंगे। इसलिये यहां हैं और सारी दुश्वारियों के बावजूद डटे हैं। हमे कुछ साबित करने की जरूरत नहीं है।