Exclusive: कैराना में चार विपक्षी पार्टियों के रचे चक्रव्यूह में ऐसे फंसी भाजपा, ये हैं 5 फंदे
लोकसभा के आम चुनावों से ठीक पहले गोरखपुर-फूलपुर सीटों पर हार और कर्नाटक में सरकार बनाने से चूकी भाजपा के लिए अब पश्चिम यूपी की कैराना सीट पर होने वाले उपचुनाव में जो समीकरण बन रहे हैं, वो भगवा खेमे के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द हैं।
नई दिल्ली। 2019 में केंद्र की सियासत में वापसी का सपना संजोए भाजपा के लिए गोरखपुर-फूलपर से शुरू हुआ 'विपक्षी झटके' का दौर कर्नाटक तक जा पहुंचा। लोकसभा के आम चुनावों से ठीक पहले गोरखपुर-फूलपुर सीटों पर हार और कर्नाटक में सरकार बनाने से चूकी भाजपा के लिए अब पश्चिम यूपी की कैराना सीट पर होने वाले उपचुनाव में जो समीकरण बन रहे हैं, वो भगवा खेमे के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द हैं। हर हाल में कैराना की सीट बचाने की कोशिश में जुटी भाजपा ने मंत्रियों से लेकर विधायकों की फौज चुनाव प्रचार में उतार दी है। कैराना में पांच ऐसे समीकरण बन रहे हैं जो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक की नींद उड़ाए हुए हैं।
1:- रालोद के टिकट पर सपा कैंडिडेट यानी जाट-मुस्लिम समीकण
फूलपुर और गोरखपुर में भाजपा को पटखनी दे चुके सपा-बसपा के गठजोड़ में अब कांग्रेस और आरएलडी (राष्ट्रीय लोकदल) भी शामिल हैं। अखिलेश यादव ने पश्चिम यूपी की इस सीट के लिए विशेष योजना बनाते हुए अपनी पार्टी की पूर्व सांसद तबस्सुम हसन को आरएलडी के टिकट पर उतारा है। इसके संकेत साफ हैं कि अखिलेश यादव कैराना सीट पर जाट+मुस्लिम समीकरण बनाकर जीत का परचम लहराना चाहते हैं। कैराना सीट पर 17 लाख वोटर हैं, जिनमें करीब 5.5 लाख मुसलमान और 1.7 लाख जाट वोट हैं। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसी समीकरण की है। इस समीकरण को साधने के लिए ही आरएलडी के नेता जयंत चौधरी लगातार जाट बाहुल्य इलाकों में जनसभा कर रहे हैं।
2:- उठ गया गन्ना, दब गया जिन्ना
कैराना जिले में 6 बड़ी सुगर मिल हैं, जिनमें से 4 निजी और दो कॉ-ऑपरेटिव हैं। साल 2017-18 में 18 मई तक सुगर मिल मालिकों ने कुल 1778.49 करोड़ रुपए के गन्ने की खरीद की। यूपी सरकार के स्टेट एडवाइज्ड प्राइस 315-325 रुपए प्रति कुंटल की दर से खरीदे गए गन्ने के लिए किसानों को कुल 1695.25 करोड़ रुपए का भुगतान होना था, लेकिन अभी तक किसानों को केवल 888.03 रुपए का ही भुगतान किया गया है। गन्ना किसानों की समस्या को देखते हुए आरएलडी जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाते हुए 'उठ गया गन्ना, दब गया जिन्ना' का नारा दे रही है। राष्ट्रीय लोकदल के प्रवक्ता अजयवीर चौधरी का कहना है कि गन्ने का भुगतान ना होने से नाराज किसानों का कहना है कि भाजपा के घोषणा पत्र में यह कहा गया था कि हम 14 दिन के भीतर गन्ने की कीमत का भुगतान कराएंगे। एएमयू में जिन्ना की फोटो है या नहीं, इससे हमें क्या लेना, हमारा एक ही मुद्दा है कि गन्ने का भुगतान हो। भाजपा भी इस बात से चिंतित है कि अगर इस चुनाव में गन्ना मुद्दा बना तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।
3:- दलितों की नाराजगी भाजपा की बड़ी टेंशन
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी और 2017 के यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में दलित वोटों का एक बड़ा योगदान रहा। लेकिन...वर्तमान में हालात बदल चुके हैं। दलितों के खिलाफ सहारनपुर और गुजरात और यूपी में हिंसा की खबरों से लेकर एससी-एसटी एक्ट में संसोधन के मुद्दे ने मोदी सरकार के खिलाफ दलितों में एक असंतोष को जन्म दिया है। हाल ही में महाराणा प्रताप जयंती पर सहारनपुर में भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष के भाई की हत्या ने इस असंतोष को और भड़का दिया है। दलितों में भाजपा के प्रति बढ़ते असंतोष से खुद पीएम मोदी और अमित शाह भी परेशान हैं। कैराना सीट पर दलितों के करीब 2 लाख वोटर हैं, जिनमें से 1.5 लाख जाटव हैं।
4:- आरएलडी का दूसरा सबसे मजबूत गढ़ कैराना
बागपत के बाद अगर राष्ट्रीय लोकदल का सबसे मजबूत गढ़ अगर कोई है तो वो कैराना लोकसभा सीट है। 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते इस सीट पर भाजपा के बाबू हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की और इससे पहले 2009 में बसपा के टिकट पर तबस्सुम हसन कैराना की सांसद बनी। लेकिन...इन दो चुनावों से पहले कैराना पर लगातार दस साल आरएलडी का ही कब्जा रहा। 2004 के लोकसभा चुनाव में हैडपंप के निशान पर अनुराधा चौधरी कैराना सीट से सांसद बनीं। उससे पहले 1999 के चुनाव में आरएलडी के ही अमीर आलम यहां से सांसद बने। कैराना सीट इसलिए भी लोकदल के लिए खास है क्योंकि यहां से चौधरी चरण की पत्नी गायत्री देवी सांसद रह चुकी हैं। इस बार भी अजीत चौधरी के बेटे जयंत चौधरी इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन जब बात नहीं बन पाई तो सपा नेत्री तबस्सुम हसन को आरएलडी की सदस्यता दिलाकर उम्मीदवार बनाया गया।
5:- मुस्लिम वोटों का धुव्रीकरण पलट सकता है पासा
पश्चिम यूपी की कैराना सीट यूपी की मुस्लिम बाहुल्य सीटों में गिनी जाती है। करीब 5 लाख की मुस्लिम आबादी वाली इस सीट पर महागठबंधन की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के बाद भाजपा के लिए चुनौती बेहद कठिन हो गई है। अमूमन यह माना जाता रहा है कि किसी भी चुनाव में मुस्लिम समुदाय हमेशा अंतिम वक्त पर फैसला करता है और भाजपा को हराने में सक्षम उम्मीदवार को वोट देता है। इस गफलत में अक्सर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो जाता है। इस बार कांग्रेस, सपा, बसपा और आरएलडी ने मिलकर एक ही प्रत्याशी उतारा है, जिससे मुस्लिम वोटों के बंटने के आसार ना के बराबर हैं। कैराना की विधानसभा सीट भी इस समय सपा के कब्जे में है, जहां से नाहिद हसन विधायक हैं। तबस्सुम हसन के बेटे नाहिद ने 2014 में कैराना विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव और 2017 के यूपी चुनाव में यहां से जीत हासिल की है। मुस्लिम वोटों की मजबूती को देखते हुए ही हाल में भाजपा नेता मनोज कश्यप ने बयान दिया था कि अगर कैराना में भाजपा हारी तो पाकिस्तान और कश्मीर में दिवाली जैसा जश्न मनाया जाएगा।
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