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क्या LAC पर दगाबाजी चीन को पड़ेगी भारी, RSS से जुड़ा संगठन कर रहा है ये मांग

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नई दिल्ली- लद्दाख में गलवान घाटी में चीन ने जो हरकत की है, उसके बाद कोरोना वायरस की वजह से उसके खिलाफ नाराजगी कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है। भारत में चीनी सामानों के बहिष्कार की मांगें तभी से ज्यादा जोर से उठ रही हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने कम से कम 50 से ज्यादा चीनी मोबाइल ऐप बंद करने की सरकार को सलाह दी है। सुरक्षा के मद्देनजर कई चाइनीज मोबाइल कंपनियों पर पहले से ही नजर रखी जा रही है। देश के नागरिकों में चीन के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम प्रोजेक्ट से चाइनीज कंपनी के साथ हुए करार को रद्द कर देगा। क्योंकि, इसकी मांग विपक्षी कांग्रेस ही नहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ी एक प्रभावी संस्था भी कर रही है। जाहिर है कि सोमवार की रात गलवान घाटी में जिस तरह से हमारे जवान शहीद हुए हैं, उसके बाद मोदी सरकार पर इस प्रोजक्ट को चाइनीज कंपनी से छीनने का दबाव बढ़ सकता है।

चीन से यह बड़ा प्रोजेक्ट वापस लेने की हो रही है मांग

चीन से यह बड़ा प्रोजेक्ट वापस लेने की हो रही है मांग

देश में चीन के खिलाफ पिछले कुछ समय माहौल बना हुआ है। पहले कोरोना वायरस को फैलाने के मामले में उसकी संदिग्ध भूमिका पर, फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसकी ओर से हो रही उकसावे वाली कार्रवाई को लेकर। ऐसे में गलवान घाटी की घटना से पहले ही आरएसएस से जुड़ी संस्था स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा कोरोना संकट के दौरान देश को मजबूत बनाने के इरादे से घोषित 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' का हवाला देकर दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस प्रोजेक्ट से चाइनीज कंपनी को हटाने की मांग की थी। मंच के सह-संयजोक अश्वनी महाजन ने द प्रिंट से कहा था कि उन्होंने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से चीनी कंपनी को दिए ठेके को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने कहा, 'पहला तो जब हम घरेलू कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा दे रहे हैं, तब सरकार चाइनीज कंपनी को ठेका कैसे दे सकती है? दूसरा सुरक्षा और गुणवत्ता का मामला है। हमने सुरक्षा के मुद्दे पर Huawei के 5जी ट्रायल में हिस्सा लेने का भी पहले विरोध किया था और अब हम घरेलू उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। ' उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने खुद वोकल फॉर लोकल की बात कही है। इसलिए, चीन की कंपनी को ठेका देना आत्मनिर्भर भारत के विचार के खिलाफ है। ऐसे गलवान में हुई वारदात के बाद संघ की यह संस्था चीन के खिलाफ और ज्यादा मुखर हो सकती है।

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चीनी कंपनी को मिला है 1,126 करोड़ रुपये के अंडरग्राउंड सेक्शन का ठेका

चीनी कंपनी को मिला है 1,126 करोड़ रुपये के अंडरग्राउंड सेक्शन का ठेका

बता दें कि दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस प्रोजेक्ट के अंडरग्राउंड सेक्शन का 1,126 करोड़ रुपये का ठेका चाइनीज मल्टीनेशनल कंपनी शंघाई टनेल इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (STEC) को मिला है। उसने न्यू अशोक नगर से गाजियाबाद के साहिबाबाद के बीच 5.6 किलोमीटर के अंडरग्राउंड सेक्शन के लिए सबसे निचली बोली लगाई है। इसके लिए टाटा प्रोजेक्ट लिमिटेड ने भी कोरियाई कंपनी SKEC JV के साथ मिलकर बोली लगाई थी। इनके अलावा तीन कंपनियां और बोली में शामिल थीं। चाइनीज कंपनी को यह ठेका पिछले 12 जून को ही मिला है। नेशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के मुताबिक, इसके लिए एल एंड टी ने 1,170 करोड़, Gulermak ने 1,326 करोड़, टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने 1,346 करोड़ और अफ्कॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने 1,400 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। चाइनीज कंपनी को यह काम तीन साल में पूरा करके देना है।

कांग्रेस ने भी किया है विरोध

कांग्रेस ने भी किया है विरोध

उधर कांग्रेस ने भी चाइनीज कंपनी को ठेका देने पर सवाल उठाया है। कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार के आत्मनिर्भर अभियान को लेकर हमला किया है। हालांकि, जब स्वदेशी जागरण मंच ने इस ठेके को रद्द करने की मांग की थी, जब गडकरी के मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस संभावना से इनकार कर दिया था। उस अधिकारी ने नाम नहीं बताए जाने की शर्त पर कहा था कि 'इस प्रोजेक्ट को एशियन डेवलपमेंट बैंक की फंडिंग मिल रही है। 39 फीसदी फंड वो दे भी चुका है। अगर कंपनी ने बोली की प्रक्रिया में कोई गलती नहीं की है तब टेंडर प्रॉसेस को नकारने का कोई सवाल ही नहीं उठता।'

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English summary
Will Delhi-Meerut RRTS project be cancel with Chinese firm after action on LAC
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