Sri Lanka: कैसा होता है किसी दिवालिया हो चुके देश में रहना?
अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका में जीना हर रोज़ किसी जंग लड़ने जैसा है. जानिए कि लोगों को क्या-क्या झेलना पड़ रहा है.
श्रीलंका में आर्थिक समस्या से पैदा हुआ राजनीतिक संकट फ़िलहाल और गहरा गया है.
बिजली की किल्लत के चलते हो रही कटौती से उमस भरी रातों में नींद पूरी करना मुश्किल हो गया है.
देश के दिवालिया होने और ईंधन की कमी के बाद बिजली गुल होने से लोगों की दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित हुई है.
ऐसे हालात में लोगों को अभी बहुत दिन गुज़ारने हैं. रोजमर्रा चीज़ें पिछले महीने की तुलना में दोगुनी क़ीमतों पर मिल रही हैं.
ऐसे माहौल में लोग एक सप्ताह पहले की तुलना में कहीं अधिक लाचार महसूस कर रहे हैं.
लोगों को न तो ठीक से नाश्ता नसीब है और न खाना. ऐसे ही हालत में लोग काम कर रहे हैं. घर से निकलते ही लोगों को परिवहन के साधन खोजने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है.
पेट्रोल-गैस के लिए लंबी लाइनें
श्रीलंका के शहरों में इस समय ईंधन की क़िल्लत ऐसी है कि इसके लिए लगने वाली लाइन पूरे मोहल्ले के चारों ओर फैली हुई होती है.
ये क़तारें घटने की बजाय दिनोंदिन फैलती ही जा रही है. इससे सड़कों पर जाम लग रहे हैं और कइयों का रोज़गार बर्बाद हो रहा है.
टुक-टुक यानी ऑटोरिक्शा के ड्राइवर अपने आठ-लीटर के टैंक के साथ लंबी क़तारों में कई-कई दिन बिताने को मजबूर हैं. उन्हें तेल हासिल करने में 48 घंटे भी लग सकते हैं.
इसलिए दोबारा लाइन में लगने से बचने के लिए उन्हें अपने साथ तकिया, कपड़ा और खाने-पीने का सामान भी लेकर आना पड़ रहा है.
मध्य और अमीर वर्ग के लोग कई जगहों पर अपने पड़ोस में क़तारों में खड़े लोगों के बीच खाने के पैकेट और ठंडा पानी बांटते भी दिख जाते हैं.
पिछले कुछ दिनों में श्रीलंकाई रुपये के अवमूल्यन के चलते देश में खाद्य पदार्थ, रसोई गैस, कपड़े, परिवहन, सरकार की ओर से मिलने वाली सीमित बिजली, सब इतने महंगे हो गए हैं कि पैसे की अहमियत ही घट गई है.
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दाल भी बनी विलासिता की चीज़
कामगार लोगों के मोहल्लों में लोग मिलजुल कर खाना बनाने लगे हैं, ताकि बनाने में सबसे आसान चीज़ें जैसे चावल और नारियल का सांबोल तैयार हो सके.
हालत ये है कि पूरे दक्षिण एशिया के इलाक़े में लोगों के खानपान का मुख्य आहार दाल भी एक विलासिता की चीज बन गई है.
श्रीलंका में कभी ताज़ा मछलियां भरपूर मात्रा में मिलती थीं और वे सस्ती भी होती थीं. लेकिन अब मछली पकड़ने वाली नावों का समुद्र में पहुंचना मुश्किल है, क्योंकि डीज़ल है ही नहीं. और जो मछुआरे मछली पकड़ सकते हैं, वे अपना माल महंगे दामों पर होटल और रेस्तरां में बेच रहे हैं. इसकी क़ीमत इतनी ज़्यादा हो चुकी है कि ज़्यादातर लोगों के लिए मछली खाना बूते की बात नहीं है.
श्रीलंका एक नज़र में
• श्रीलंका, भारत के दक्षिण में स्थित एक द्वीप है. इसे 1948 में अंग्रेज़ी शासन से आज़ादी मिली थी. यहां मुख्यत: तीन प्रजातियों के लोग रहते हैं- सिंहली, तमिल और मुसलमान. देश की कुल 2.2 करोड़ आबादी में इन तीनों का कुल हिस्सा क़रीब 99 फ़ीसदी है.
• श्रीलंका की सत्ता पर पिछले कुछ सालों से एक ही परिवार का दबदबा है. 2009 में तमिल अलगाववादियों का पूरी तरह सफाया करने के बाद महिंदा राजपक्षे देश के बहुसंख्यक सिंहलियों के बीच एक हीरो बन गए. उनके भाई गोटाबाया राजपक्षे ही अभी देश के राष्ट्रपति हैं.
• देश में मौजूदा आर्थिक संकट ने कोहराम मचा रखा है. बढ़ती महंगाई के चलते देश में खाद्य पदार्थ, दवा, ईंधन की घोर क़िल्लत हो रखी है. देश में देर तक बिजली कटौती हो रही है. ग़ुस्साए लोग सड़कों पर महीनों से आंदोलन कर रहे हैं. कई लोग ऐसे हालात के लिए राजपक्षे परिवार और उनकी सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं.
बच्चों की पूरी पीढ़ी को प्रोटीन वाला खाना नसीब नहीं
हालत यह है कि श्रीलंका के ज्यादातर बच्चे लगभग बिना प्रोटीन वाले भोजन पर जीने को मजबूर हैं. यह संकट इतना गहरा है कि इससे देश की 'मैक्रोइकोनॉमी' से लेकर 'मॉलिक्यूल' तक सभी चीज़ें प्रभावित हुई हैं.
बच्चों के दिलोदिमाग, उनकी मांसपेशियों और हड्डियों को वह नहीं मिल रहा है जिसकी उन्हें सख़्त ज़रूरत है? देश में मिल्क पाउडर की अधिकांश ज़रूरत आयात से पूरी होती हैं. इसलिए बाज़ारों में बड़ी मुश्किल मिल्क पाउडर दिखता है.
संयुक्त राष्ट्र संघ अब श्रीलंका में कुपोषण और मानवीय संकट की चेतावनी दे रहा है. यहां के कई लोगों के लिए यह संकट महीनों से बना हुआ है.
परिवहन व्यवस्था बुरी तरह चरमराई
जो लोग कहीं आवाजाही कर भी रहे हैं, उनका मुख्य सहारा बस और ट्रेन हैं. और इन बसों और ट्रेनों की हालत ऐसी है कि भीड़ से कहीं ये बैठ न जाएं.
जवान लोग तो बाहर किसी तरह से लटककर थोड़ी हवा खा लेते हैं, लेकिन भीड़ में दबे भीतर के लोग हवा के लिए हांफते रहते हैं.
श्रीलंका दशकों से अपने सार्वजनिक परिवहन के साधनों पर पर्याप्त निवेश करने में नाकाम रहा है. वहीं कई लोग बसों और रिक्शा चालकों की मनमानी को लेकर शिक़ायत कर रहे हैं.
ज़रूरी दवा न मिलने से कइयों की मौत
लोगों के बीच यह बात तेज़ी से फैली है कि देश के राजनीतिक और आर्थिक जगत के संभ्रांत लोगों के चलते श्रीलंका की ऐसी हालत हुई है. लेकिन इसका सबसे बुरा असर निम्न मध्य और कामकाज़ी वर्गों पर पड़ रहा है.
प्राइवेट अस्पताल तो किसी तरह अपना काम कर रहे हैं, लेकिन सरकारी अस्पतालों की हालत बुरी है. हाल ही में अनुराधापुरा में 16 साल के एक किशोर की सांप कांटने के बाद इलाज न मिलने के चलते मौत हो गई.
उनके पिता सरकारी अस्पताल में 'एंटी वेनम' इंजेक्शन न मिलने पर कई दवा दुकानों में उसकी खोज करते रहे, पर उन्हें यह नहीं मिल सका.
देश का हेल्थकेयर सेक्टर अब कई जीवन रक्षक दवाओं को खरीदने में सक्षम नहीं है.
मई में पीलिया से ग्रस्त एक दो दिन की बच्ची की मौत हो गई.
इसकी वजह यह रही कि उनके माता-पिता बच्ची को अस्पताल ले जाने के लिए रिक्शा खोजते रहे, पर वो मिला नहीं.
अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि 2019 में श्रीलंका सरकार की ओर से टैक्स छूट देने के चलते देश का खज़ाना खाली हो गया और देश इस हालत में पहुंच गया. हालांकि उस छूट की वकालत कई कॉरपोरेट और पेशेवर संस्थाओं ने की थी.
ब्लैक मार्केट में ईंधन अभी भी बहुत महंगे दामों पर ख़रीदा जा सकता है. इस ईंधन से कई बड़ी प्राइवेट गाड़ियों और जेनरेटर को चलाया जा रहा है.
कमज़ोर आर्थिक में मौजूद लोग काम पर जाने के लिए साइकिल ख़रीदने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मुद्रा के अवमूल्यन का यह असर हुआ है कि अब साइकिल भी लोगों की पहुंच से बाहर हो गई है.
बिजली की कटौती और लोगों का गुस्सा
मार्च के अंत में होने वाली बिजली कटौती अब तक का सबसे बुरा दौर था. इसके चलते कोलंबों में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे. साल के सबसे गर्म दिनों के दौरान रोज़ाना होने वाली 13 घंटों की बिजली कटौती ने पूरे देश को थका सा दिया था.
उस डरावने अनुभव ने पूरे श्रीलंका में भयंकर ग़ुस्सा भड़का दिया, जिससे राष्ट्रपति आवास वाले पूर्वी कोलंबो के मिरिहाना इलाक़े में हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए.
पिछले एक साल के भीतर श्रीलंका में जितने भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं, उनमें से यह शायद सबसे भीषण प्रदर्शन था.
मोटरसाइकिल का हेलमेट पहने एक शख़्स ने राजनीतिक संगठनों, पादरियों और मीडिया के एक जमावड़े के दौरान सरकार पर ज़बरदस्त निशाना साधा. उसने सरकार को कई पीढ़ियों की सबसे स्वार्थी और अयोग्य सरकार बताया.
बाद में, सुदारा नदीश नाम के उस व्यक्ति को पुलिस ने बेरहमी से मारा. कुछ अन्य लोगों के साथ उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया.
श्रीलंका 26 सालों तक गृहयुद्ध में उलझा रहा. फिर भी गोटाबाया राजपक्षे जितना कोई और राष्ट्रपति सेना के इतने क़रीब कभी नहीं रहे.
दक्षिणी श्रीलंका के लोगों को पिछले कुछ महीनों के दौरान पता चल पाया कि उत्तरी श्रीलंका के लोगों का नज़रिया क्यों अलग था.
पिछले कुछ महीनों के दौरान श्रीलंका हुए कई शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में पुलिस ने गोलियां चलाईं, बच्चों की मौजूदगी वाली भीड़ पर भी अंधाधुंध आंसू गैस के गोले छोड़े गए.
ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए क़तार में लगे लोगों को हल्की सी भी नाराज़गी ज़ाहिर करने पर बेरहमी से पीटा गया.
पुलिस के अनुसार, प्रदर्शन करने वालों की ओर से फेंके गए पत्थरों से कई अधिकारी घायल हो गए थे. हालांकि पुलिस के जवाबी कार्रवाई से कई प्रदर्शन करने वालों की जान चली गई या वो घायल हो गए. माना गया कि पुलिस का क़दम ज़रूरत से ज़्यादा सख़्त था.
नेताओं के रुख़ ने भी लोगों को इस हद तक उग्र होने में मदद की है. कई नेताओं ने विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालकर लोगों को और उकसाया.
जनता ने जब पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करके राष्ट्रपति और उनकी पार्टी को सत्ता से हटने की मांग की, तब भी ज़िद करके वे सरकार में बने रहे.
जनता की घोर नाराज़गी के बावजूद पर्दे के पीछे से समझौते की कोशिशें हुईं. कई लोग इसे देश की राजनीति में ज़हर घोलने वाला काम मानते हैं.
श्रीलंका को ऐसे गड्ढे में गिराने वाले इन्हीं नेताओं ने दावा किया कि वे ही देश को फिर से उठा सकते हैं. और फिर उन्होंने जो नीतियां बनाई उसकी तीखी आलोचना होती रही.
उदाहरण के लिए, घरेलू नौकरों, ड्राइवरों और मैकेनिक का काम करने के लिए लोगों को पश्चिम एशिया में भेजने के प्रयास किए जा रहे हैं. ऐसा इसलिए कि वो वहां से कमाकर पैसे श्रीलंका भेज सकें.
लेकिन देश के कमज़ोर लोगों के लिए यह जख़्म पर नमक रगड़ने जैसा है, क्योंकि कम पढ़े लिखे और ग़रीब लोगों को तो देश में रोज़गार की कोई उम्मीद ही नहीं है और उन्हें अपने परिजनों को बाहर भेजने को मजबूर होना पड़ रहा है.
एंथ्रोपोलोजी के एक जानकार ने इस नज़रिए को देखकर श्रीलंका को 'वैम्पायर स्टेट' क़रार दिया है.
इस तरह श्रीलंका में सुबह से शाम तक की ज़िंदगी किसी जंग से कम नहीं है. लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि उनकी मुश्किलें कब ख़त्म होंगी.
पढ़ाई, कमाई, दवाई की मूलभूत ज़रूरतें भी आज के श्रीलंका में पूरी हो पाना दूभर है.
देश में स्कूल फ़िलहाल बंद हैं, क्योंकि बच्चों को बसों में स्कूल लाने के लिए ईंधन नहीं है. लगातार तीसरे साल क्लास ऑनलाइन चलाए जा रहे हैं.
सरकार ने जो भी कुछ वादा किया, उसे पूरा करने में वह नाकाम होती रही है. जनता में निराशा का ये आलम है कि पिछले हफ़्ते एक मां अपने दो बच्चों के साथ नदी में कूद गई. इस तरह श्रीलंका में रोज़ किसी न किसी का दिल टूटता है.
(श्रीलंका में रहने वाले एंड्रयू फिदेल फर्नांडो पुरस्कार विजेता लेखक और पत्रकार हैं.)
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