जानिए संतों को मंत्री का दर्जा देने के बाद सीएम शिवराज ने क्या कहा
राज्यमंत्री का दर्जा दिए जाने के खिलाफ राज्य की हाईकोर्ट के इंदौर बेंच में एक याचिका दायर की गई है।
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देने पर सूबे की राजनीति में हंगामा मच गया है। कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी ने चुनावी साल में साधु संतों को लुभाने की कोशिश की है। विवाद के बाद प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान सफाई पेश की है। शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि समाज का हर वर्ग विकास को और जनकल्याण के काम में जुड़े इसलिए समाज के हर वर्ग को जोड़ने का प्रयास किया गया है। बीजेपी की दिग्गज नेता उमा भारती ने भी पांच साधूओं को मंत्री का दर्जा दिए जाने का स्वागत किया है और शिवराज सरकार के फैसले की तारीफ की है।
शिवराज सरकार के फैसले पर विपक्ष जमकर हमला कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि चुनावी साल में साधु संतों को लुभाने की कोशिश है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने कहा कि चुनावी साल में संतो को शिवराज सरकार ने झुनझुना पकड़ाया है। वहीं मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा है- 'ऐसा कर मुख्यमंत्री शिवराज अपने पापों को धोने की कोशिश कर रहे हैं। यह चुनावी साल में साधु-संतों को लुभाने की सरकार की कोशिश है।' खबरों के मुताबिक जिन संतों को शिवराज सिंह चौहान ने मंत्री पद का दर्जा दिया है वे सरकार के खिलाफ नर्मदा घोटाला रथ यात्रा निकालने वाले थे। सरकार को जब इसकी जानकारी मिली तो संतों को मनाने के लिए उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देने का एलान कर दिया। जिन पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है उनमें नर्मदानंद, हरिहरानंद, कंप्यूटर बाबा, भय्यू महाराज और महंत योगेंद्र का नाम शामिल हैं।
राज्यमंत्री का दर्जा दिए जाने के खिलाफ राज्य की हाईकोर्ट के इंदौर बेंच में एक याचिका दायर की गई है। राम बहादुर शर्मा ने इन पांच बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर की है। बता दें कि 31 मार्च को मध्यप्रदेश सरकार ने समिति बनाई थी, जिसमें ये फैसला लिया गया। सरकार द्वारा लिया गया ये आदेश तुंरत प्रभाव से लागू होगा। सरकार की ओर से कहा गया है कि सरकार ने उन्हें यह तोहफा दिया है। ये संत लोगों को नर्मदा के संरक्षण को लेकर जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें स्वच्छता का संकल्प भी दिलाएंगे।