राहुल गांधी की जवानी बरकरार, बूढ़ा हो रहा बुंदेलखंड
विस्तार से बात करने के लिये हम आपको मार्च 2004 में ले चलते हैं, जब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा। उस समय कांग्रेस ने जोर-शोर से कहा कि यह नेता पार्टी का युवा चेहरा है। राहुल आज पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, लेकिन यूथ विंग यानी यूथ कांग्रेस के चेयरमैन। राहुल आज भी जब किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश करते हैं, तो तमाम लड़कियां उनपर फिदा हो जाती हैं। उनके क्रीमी चेहरे पर तो कई नेता उन्हें चॉक्लेटी ब्वॉय तक कहते हैं। तमाम मैगजीन जब इंडियाज़ मोस्ट बेचलर्स की बात करते हैं, तो राहुल का नाम शीर्ष पर होता है। यानी कुल मिलाकर देखें, तो युवराज की जवानी आज भी बरकरार है।
चलिये अब आपको रू-ब-रू कराते हैं बुंदेलखंड के गरीब युवाओं से। इलाका पिछड़ा होने की वजह से यहां बच्चों की शादी 14 से 15 साल की उम्र में कर दी जाती है। शिक्षा के अभाव के कारण परिवार नियोजन तक की अक्ल इन बच्चों में नहीं होती, लिहाजा 19-20 साल की उम्र में ये बाप बन जाते हैं और जब परिवार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, तब नौकरी के बारे में सोचते हैं। बुंदेलखंड में नौकरियों की भारी कमी होने के कारण यहां के युवाओं के पास सिर्फ एक चारा बचता है- पत्थर तोड़ना।
मध्य प्रदेश के अंदर आने वाले बुंदेलखंड के अधिकांश जिलों में ऊंचे-ऊंचे पथरीले पहाड़ हैं। देश में ग्रेनाइट पत्थरों की सप्लाई सबसे ज्यादा यहीं से होती है। पत्थर तोड़ते वक्त उसके चूरे में तमाम धातुओं के कर्ण सांस के जरिये और खाने में इन युवाओं के शरीर में जाते हैं, जिस वजह से 25 साल की उम्र में ही ये बूढ़े नजर आने लगते हैं। एमपी के बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 40 साल के युवा 60 साल के दिखने लगते हैं। यह हाल किसी एक का नहीं, बल्कि यहां के अधिकांश परिवार पत्थर पर जीवन बसर कर रहे हैं।
राहुल क्यों जिम्मेदार
आप सोच रहे होंगे कि बुंदेलखंड के इस बुढ़ापे के लिये राहुल गांधी क्यों जिम्मेदार हैं। तो उसका सीधा जवाब केंद्र से आने वाला पैकेज और राहुल की अब तक की रैलियां और बुंदेलखंड यात्राएं हैं। राहुल पिछले 10 साल से बुंदेलखंड आ रहे हैं, हर बार कहते हैं कि केंद्र ने पैसा भेजा, लेकिन राज्य खा गया। अब सवाल यह उठता है कि अब तक आपने उस पैसे का ऑडिट क्यों नहीं करवाया। कम से कम पता तो चले कि आखिर आपके द्वारा भेजा गया विकास का पैसा कहां गया, किसने खाया। अगर वाकई में केंद्र द्वारा भेजा गया पैसा राज्य की भाजपा सरकार खा गई है, तो आपकी ऑडिट रिपोर्ट देखने के बाद कम से कम आम जनता फिर से भाजपा को वोट नहीं दें।
बुंदेलखंड कबसे हुआ बुढ़ापे का शिकार
पिछले छह सालों यानी 2006 के बाद से इस साल तक बुंदेलखंड में औसत से कम बारिश हुई है। मौसम विभाग के अनुसार पिछले छह साल से यहां मात्र 400 से 450 मिलीमीटर बारिश हुई। हर साल कम बारिश के चलते यहां की प्रमुख नदियां- सिंध, बेतवा, शहजाद नदी, केन, बाघिन, टोन, पहुज, ढासन और चंबल, सभी सूखने की कगार पर पहुंच गई हैं। यानी यहां कि किसान अब नहर बनाकर नदियों का पानी भी नहीं ले सकते। आपको यह जानकर भी अफसोस होगा कि वर्ष 2000 में जो बुंदेलखंड देश के कुल अनाज में 15 प्रतिशत का योगदान देता था, वह योगदान आज महज 6.5 प्रतिशत रह गया है।
बुंदेलखंड को एक तरफ मौसम ने मारा तो दूसरी तरफ से नेताओं ने। यहां अधिकांश सांसद और विधायक, या फिर उनके रिश्तेदार खनन की ठेकेदारी करते हैं और जब पत्थर टूटता है, तो उसमें से निकलने वाला पैसा नेताओं की जेब भरता है, ताकि वो अय्याशी के लिये हमेशा जवान बने रहें और उन्हीं पत्थरों से निकलने वाले धातुओं के कण किसानों का शरीर भरते हैं, ताकि वो भविष्य में जवान रहने के बारे में सोच भी न सकें।