Chandrayaan-2 के लैंडर विक्रम से सिर्फ संपर्क ही नहीं टूटा था, जानिए और क्या हुआ
नई दिल्ली- चांद को छूने से चंद लम्हा पहले ही लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया था, जिसने करोड़ों भारतीयों समेत दुनिया भर के लोगों का उत्साह पल भर में ही फीका कर दिया था। लेकिन, धीरे-धीरे जो जानकारी सामने आ रही हैं उससे लगता है कि लैंडर विक्रम से न केवल संपर्क टूटा था, बल्कि उसपर से नियंत्रण भी छूट गया था। दरअसल, लैंडर के चांद पर उतरने से ठीक पहले पूर्ण नेविगेशन फेज और फाइन ब्रेकिंग फेज के बीच एक बहुत बड़ी समस्या भी पैदा हुई थी, जिससे चांद को फतह करने से हम महज दो कदम दूर रह गए। राहत की बात ये रही कि एक दिन बाद ही सही इसरो ने इसका पता लगा लिया।
इसरो चीफ ने खतरे को पहले ही भांप लिया था!
इसरो के चेयरमैन डॉक्टर के सिवन ने जब ये बात कही थी कि चंद्रयान-2 मिशन से जुड़े वैज्ञानिक '15 मिनट के आतंक' का अनुभव करेंगे तो शायद वह अनजाने में ही इस मिशन की भविष्यवाणी कर रहे थे। वे मिशन के जिन लम्हो का जिक्र पहले ही कर चुके थे, संयोगवश उनकी वही आशंका शनिवार को हकीकत में बदल गई। डॉक्टर शिवन को इस तरह की संभावना का इल्म शायद पहले से ही था और उन्होंने इसे टालने के लिए अपना सारा अनुभव भी झोंक दिया। शायद इसलिए वे पीएम मोदी के सामने इतने ज्यादा भावुक हो गए थे। क्योंकि, अगर इस '15 मिनट के आतंक' को मिशन झेल लेता तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाले देशों में भारत भी चौथे देश के रूप में शामिल हो जाता।
'15 मिनट का आतंक'
दरअसल, चांद की सतह पर विक्रम लैंडर के उतरने का अंतिम 15 मिनट बहुत ही महत्वपूर्ण था, जिसे बहुत ही सावधानी से संपन्न किया जाना था। उस वक्त विक्रम लैंडर चंद्रमा से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर 6,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सरपट घूम रहा था। वैज्ञानिकों ने अंतिम क्षण में स्पेसक्राफ्ट को चांद की सतह पर उतरने की प्रक्रिया को 'ऑटोनोमस पावर्ड डिसेंट' का नाम दिया। क्योंकि, इस वक्त विक्रम में मौजूद कंप्यूटर ही उसपर नियंत्रण रख रहा था, जो तब बेंगलुरु सेंटर से कंट्रोल किया जाना मुमकिन नहीं था। यानि तेजगति में रहते हुए विक्रम के चांद की ओर सौफ्ट लैंडिंग की ओर बढ़ना बहुत ही जोखिम भरी प्रक्रिया थी। क्योंकि, स्पेसक्राफ्ट के वेग को 6,000 किमी की रफ्तार से घटाकर लगभग जीरो पर लाने के साथ ही नियंत्रण में रखते हुए चंद्रमा के साउथ पोल पर पहले से निर्धारित जगह पर उतारना था।
लैंडर में सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लगाए थे 5 इंजन
सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया को तीन भागों में बांटा गया था। जिसमें उसे अत्यधिक गति से लेकर टचडाउन के वक्त लगभग जीरो-स्पीड तक की गति के लिए डिजाइन किया गया था। सिर्फ सॉफ्ट लैंडिंग प्रक्रिया पूरी करने के लिए विक्रम लैंडर में 5 इंजन लगाए गए थे। पहले फेज यानि रफ ब्रेकिंग फेज में इसने बखूबी अपनी निर्धारित प्रक्रिया पूरी की। गति कम करने के लिए लगाए गए पांच में से चार रॉकेट काम करते देखे गए और स्पेसक्राफ्ट की ऊंचाई भी आवश्यकता के अनुसार कम हो गई। 10 मिनट 20 सेकंड खत्म होने के बाद तक सबकुछ निर्धारित प्रक्रिया के मुताबिक सामान्य गति से चल रहा था। विक्रम की गति घटकर 22 किलोमीटर प्रति घंटा रह गई थी और वह चांद से सिर्फ 7 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद था।
यहां से शुरू हुई समस्या
लगता है कि असली समस्या सॉफ्ट लैंडिंग के दो महत्वपूर्ण फेज के बीच में शुरू हुई। ये फेज है पूर्ण नेविगेशन फेज और फाइन ब्रेकिंग फेज। इस दौरान लैंडर को 7 किलोमीटर से घटकर करीब 400 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचना था और उसमें सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लगे चारों पैर को चांद की सतह की ओर होना था। लेकिन, इस स्थिति तक पहुंचने से पहले ही 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर मुश्किलें शुरू हो गईं। इसी समय लैंडर विक्रम के साथ सारे संपर्क टूट गए और साफ संकेत मिला की कुछ बहुत ही बुरा हुआ है।
ऑन-बोर्ड कंप्यूटर का लैंडर पर नियंत्रण भी टूटा!
इसरो के वैज्ञानिकों ने हर तरह के डाटा का अध्ययन शुरू कर दिया है कि आखिर दिक्कत क्यों आई। लेकिन, इतना तय है कि ये मामला सिर्फ संपर्क टूटने का ही नहीं है, बल्कि टर्मिनल फेज में चांद पर उतरने के दौरान ऑन-बोर्ड कंप्यूटर का लैंडर से नियंत्रण खोने का भी है। इंडिया टुडे की खबरों के मुताबिक कुछ वैज्ञानिकों को लगता है कि डी-बूस्ट स्टेज में शामिल चार इंजनों में से एक या अधिक में कोई दिक्कत आ गई। ये सारे इंजन खास तरह के थे, जिसे विशेष रूप से सॉफ्ट लैंडिंग प्रक्रिया के लिए ही फिट किया गया था। सबसे बड़ी बात ये है कि इस तरह का इंजन इसरो ने पहली बार ही इस्तेमाल किया है। अगर एक इंजन में भी ऐसी गड़बड़ी आ गई होगी, जिसे लैंडर के ऑन-बोर्ड कंप्यूटर के लिए दुरुस्त करना मुमकिन नहीं रहा हो तो उसका विक्रम से नियंत्रण छूट सकता है। इसके अलावा जहां तक संपर्क टूटने की बात है तो यह ओवरहीटिंग और सिस्टम में खराबी आने के चलते भी हो सकता है, जिसकी पड़ताल में इसरो के वैज्ञानिक जुटे हुए हैं।
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