कुंडली में पितृऋण को कैसे पहचानें, क्या है कारण, क्यों आती है परेशानी
नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य पर चढ़ने वाले विभिन्न प्रकार के ऋण के बारे में बताया गया है। इनमें से प्रमुख है पितृऋण। पितृऋण की प्रचलित परिभाषा के अनुसार जब पूर्वजों द्वारा किए गए पापों का फल उसके वंशजों में से किसी एक या दो को भुगतना पड़ता है तो वह पितृऋण कहलाता है। यह जातक की जन्मकुंडली देखकर बताया जा सकता है कि उस पर पितृऋण है या नहीं। यदि किसी जातक पर पितृऋण होता है तो उसके जीवन में विभिन्न प्रकार की परेशानियां आती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से:

कैसे पहचानें पितृऋण?
- जन्मकुंडली के नौवें स्थान में बृहस्पति के साथ शुक्र हो।
- चौथे घर में शनि और केतु हों तथा चंद्रमा दसवें घर में हो।
- लग्न से आठवें घर में बुध तथा नौवें में गुरु हो।
- दूसरे, सातवें घर में बुध तथा नौवें घर में शुक्र हो।
- तीसरे घर में बुध और नौवें में राहु हो।
- चौथे घर में बुध और नौवें में चंद्र हो।
- पांचवें में बुध तथा नौवें में सूर्य हो।
- छठे में बुध और नौवें में केतु हो।
- दसवें या 11वें में बुध तथा नौवें में शनि हो।
- 12वें में बुध और नौवें में बृहस्पति हो।
- 2, 5, 9 या 12वें घर में बृहस्पति हो तथा बुध, शुक्र या राहू भी हो।

पितृऋण का कारण और अशुभ फल
पितृऋण मुख्यतः तब बनता है जब जातक के पूर्वजों ने किसी धार्मिक स्थल को तोड़ा हो, पीपल के वृक्ष को काटा हो, किसी भी हरे-भरे ऐसे फलदार वृक्ष को काटा हो जिस पर पक्षियों का बसेरा हो। कुल पुरोहित या किसी वेदपाठी ब्राह्मण का तिरस्कार किया हो। जिस जातक पर पितृऋण होता है उसका जीवन अस्थिर होता है। वह लाख प्रयत्नों के बाद भी किसी कार्य में सफलता हासिल नहीं कर पाता है। ऐसे स्त्री या पुरुष के बाल समय से पूर्व ही सफेद होकर गिरने लगते हैं। घर की बरकत समाप्त हो जाती है। मान-सम्मान की हानि होती है और उसके बनते कार्यों में रूकावट आती है।

पितृऋण निवारण के उपाय
शास्त्रों में पितृऋण निवारण के उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से यह दूर हो सकता है। निवारण के लिए अपने खानदान के प्रत्येक व्यक्ति से निमित्त मात्र के पैसे लेकर किसी धार्मिक स्थान में दान कर दें। खानदान के लोग घर के मुख्य दरवाजे पर बाहर की तरफ जिधर नजर जाए 16 कदम की दूरी पर बृहस्पति की वस्तु यानी पीपल का वृक्ष लगाएं तथा उसकी नियमित सेवा करें।