पीएफआई का गजवा ए हिन्द कनेक्शन
पाकिस्तान में एक मशहूर मौलाना हुए जिनका नाम था डॉ इसरार अहमद। डॉ अहमद मौलाना मौदूदी के शागिर्द थे जो कि बाद में उनकी जमात ए इस्लामी से अलग हो गये और अपना अलग मजमा लगाया। डॉ इसरार अहमद मूल रूप से भारत में हरियाणा से थे इसलिए जब मौका मिलता वो भारत भी आते और यहां लोगों से इस्लाम को लेकर चर्चा भी करते। इंटरनेट के इस युग में आप मान सकते हैं कि डॉ इसरार अहमद भारत और पाकिस्तान दोनों जगहों पर मुस्लिमों के बीच बहुत सम्मान से देखे जाते थे।
इन्हीं डॉ इसरार अहमद ने कोई दस बारह साल पहले पाकिस्तान में एक तकरीर किया था। यह तकरीर गजवा ए हिन्द के बारे में थी। हदीसों में ऐसा उल्लेख आता है कि खुरासान (वर्तमान अफगानिस्तान) से एक लश्कर (इस्लामिक सैनिकों का जत्था) चलेगा और महदी के नेतृत्व में पूरी दुनिया में इस्लामिक शासन की स्थापना होगी। यही सच्ची खिलाफत होगी। डॉ इसरार अहमद उस समय जब भी गजवा ए हिन्द पर बात करते थे तो उसका रोडमैप भी समझाते थे। ध्यान रखिए डॉ इसरार अहमद जब ये बात बोल रहे थे तो अफगान वार खत्म हो चुका था और अब खुरासान वाली इस्लामिक थ्योरी में फेरबदल करने की जरुरत थी।
इसलिए इसरार अहमद ने इसे भारत से जोड़ दिया। उनका कहना था कि वह जो लश्कर है वह खुरासान से नहीं मालाबर से निकलेगा जो भारत में इस्लामिक शासन कायम करते हुए चीन तक जाएगा और चीन में इस्लामिक शासन कायम करेगा। मुसलमानों में गजवा ए हिन्द को लेकर जो बातें गढी जाती हैं उसके मुताबिक आखिरत (संसार का खात्मा) तब तक नहीं आयेगी जब तक सारी दुनिया में इस्लामिक निजाम कायम नहीं हो जाता। डॉ अहमद इस आखिरत के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा भारत के शिर्क करनेवाले हिन्दुओं और चीन के मुल्हिद (नास्तिक) को ही मानते थे। उनका मानना था कि ईसाई तो मुसलमानों के अपने हैं। इसलिए उनके मुताबिक यहां इस्लामिक निजाम कायम करना हर मुसलमान की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
गजवा ए हिन्द और दक्षिण भारत
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ऐसे में यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं कि पीएफआई का जन्म उसी मालाबार रीजन के केरल राज्य में हुआ जिसका उल्लेख हदीसों के हवाले से डॉ इसरार अहमद पाकिस्तान में बैठकर कर रहे थे। ये बात बताने का उद्देश्य यह साबित करना नहीं है कि डॉ इसरार अहमद और पीएफआई में कोई कनेक्शन था। इससे यह समझ में आता है कि मुस्लिम समुदाय में गजवा ए हिन्द को लेकर एक जैसी थ्योरी पाकिस्तान और भारत दोनों जगह चल रही है। पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) की स्थापना दक्षिण भारत के तीन इस्लामिक संगठनों को मिलाकर 2006 में हुई थी। इसका मुख्य संस्थापक ई अबू बकर था जो सिमी का केरल कोआर्डिनेटर रह चुका था। उसने एक दशक पहले पहली बार केरल से ट्रेन्ड इस्लामिक मिलिशिया बनाना शुरु किया था तो कोई न कोई सपना तो उसके मन में भी पल रहा था जिसकी भनक भारत में किसी को नहीं थी।
गजवा ए हिन्द का यही वह इस्लामिक तर्क है जो पीएफआई के प्रभाव को भारत के बाहर भी ले गया और उसको पूरी दुनिया से जकात का चंदा मिलना शुरु हो गया। बीते एक दशक में पीएफआई का जनबल बढा तो उसके पीछे चंदे का बल सबसे अधिक है। यूपी, बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, केरल जहां कहीं भी पीएफआई सक्रिय है वहां उसे पैसे की कोई कमी नहीं है। हर पीएफआई वर्कर को 7 से 40 हजार रूपये के बीच पेमेन्ट किया जाता है।
इसलिए नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद कुछ सालों से इस्लाम के नाम पर भारत में होनेवाली हर प्रकार की भड़काऊ और हिंसक गतिविधि के पीछे पीएफआई का नाम सामने आता है। कानपुर में हजारों मुसलमानों की भीड़ जुटानी हो, या फिर शाहीन बाग जैसा लंबा धरना चलाना हो, पीएफआई नेपथ्य में नजर आ ही जाता है।
संघ के हिन्दू राष्ट्र जैसा नहीं है पीएफआई का गजवा ए हिन्द
पीएफआई ने गजवा ए हिन्द के स्वप्न को साकार करने के लिए वही रास्ता चुना है जो संघ ने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए चुना था। संघ सीधे तौर पर किसी कार्य मे शामिल नहीं होता लेकिन उसके स्वयंसेवक नये नये कार्य करते हैं जो संघ के अनुसांगिक संगठन बन जाते हैं। पीएफआई ने इसमें थोड़ा सा फेरबदल करके वही ढांचा अपना लिया। मसलन, राजनीतिक कार्य के लिए उसके पास एसडीपीआई है। उसका बाकायदा राजनीतिक पार्टी के रूप में चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन है। उसके नाम में सोशल और डेमोक्रेटिक शब्द जुड़ा हुआ है लेकिन उसका संचालन पीएफआई के हाथों में है। पर्दे के पीछे से उसकी नीति, कार्यक्रम सबकुछ पीएफआई तय करता है जो होकर भी कहीं दिखता नहीं है।
लेकिन संघ के हिन्दू राष्ट्र और पीएफआई के गजवा ए हिन्द में जो एक बुनियादी अंतर है वह इन दोनों को एक दूसरे के विपरीत खड़ा कर देता है। पीएफआई बनानेवालों ने संघ के कार्य करने का तरीका तो उधार ले लिया लेकिन भारत के प्रति उसकी निष्ठा नहीं ले पाये। संघ वाले अगर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं तो उसकी जड़ें भारत में ही हैं। पीएफआई जिस गजवा ए हिन्द के लिए काम कर रहा है उसकी जड़ और जमीन दोनों भारत की भूमि नहीं है। वो एक आयातित इस्लामिक निजाम की बात कर रहे हैं जिसकी जड़ भारत से दूर सऊदी अरब में है। संघ का हिन्दू राष्ट्र भारतीय समाज व्यवस्था और परंपरा को खत्म करने की बात नहीं करता जबकि पीएफआई के गजवा ए हिन्द में सैद्धांतिक रूप से भारतीय समाज और परंपरा के लिए कोई जगह ही नहीं है। इसलिए पीएफआई का कार्य राष्ट्रीय एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बन गया।
मुस्लिम संगठनों से मेलजोल नहीं
पीएफआई ने एक डेढ दशक में भारतभर में अपने नेटवर्क का जो विस्तार किया उससे जितना खतरा गैर मुस्लिमों को था उतना ही खतरा इस्लामिक संगठनों को भी था। भारत के प्रमुख इस्लामिक मशलक देओबंदी और बरेलवी दोनों से उसने दूरी बना रखी थी। पीएफआई इनको जिहाद के रास्ते में रोड़ा मानता था। पीएफआई मानता था कि मुसलमान गजवा ए हिन्द के उद्देश्य को भूलकर आपसी राजनीति में फंस गये हैं। इसलिए वह इनके लोगों को तोड़कर अपने साथ तो मिला लेता था, लेकिन इनको कोई महत्व नहीं देता था।
इसलिए भारत के बरेलवी, देओबंदी या फिर शिया मशलक के मुसलमान पीएफआई के पक्ष में कभी खड़े दिखाई नहीं दिये। इसका कारण ये नहीं कि वो उसके काम को गलत मानते हैं बल्कि कारण ये है कि पीएफआई के असीमित विस्तार से उनकी इस्लामिक राजनीति को खतरा महसूस हो रहा था। इसलिए पीएफआई पर की गयी ईडी और एनआईए की कार्रवाई पर सभी बड़े मुस्लिम संगठन चुप हैं। पसमांदा मुस्लिम महाज जैसे संगठनों ने तो इस कार्रवाई को देशहित में बताकर स्वागत किया है।
पीएफआई की फंडिंग पर रोक जरुरी
ईडी और एनआईए ने बुधवार रात देशभर में पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई करके इनके सभी प्रमुख लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। इसमें पीएफआई का संस्थापक ई अबू बकर भी शामिल है। ईडी और एनआईए की यह संयुक्त कार्रवाई लंबी तैयारी के बाद हुई है। स्वाभाविक है उन्होंने पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों के खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाए होंगे।
इसके बावजूद पीएफआई की गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगाना या उसे प्रतिबंधित करना आसान नहीं होगा। पीएफआई का एक कानूनी विंग है जिसका काम ही है जिला स्तर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उसके मामलों में पीएफआई की गतिविधियों का बचाव करना। अब वह विंग अदालतों में लड़ाई लड़ेगा और कानूनी रूप से पीएफआई को बचाने का प्रयास करेगा।
लेकिन पीएफआई पर कार्रवाई करने के लिए ईडी को शामिल करके सरकार ने भी ठीक वैसी ही योजना बनायी है जैसी कश्मीर में अलगाववादियों को खत्म करने के लिए बनायी थी। इनको मिलनेवाले पैसे की जांच पड़ताल होगी तो अपने आप इनका नेटवर्क कमजोर पड़ जाएगा। पीएफआई को अधिकतर पैसा खाड़ी देशों से आता है। कौन हैं वो लोग और पीएफआई को इतना पैसा क्यों दे रहे हैं इसे भी जांचना पड़ेगा।
तब शायद ऐसी कार्रवाई का असर हो और अबूबकर जैसे जिहादी सोच वाले लोगों को समझ में आयेगा कि भारत में न तो सिमी चल सकता है और न पीएफआई। भले ही वो स्वांग चाहे जो कर लें, नाम चाहे जो रख लें लेकिन मानवता के खिलाफ जिहाद भारत में संभव नहीं है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)