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Milk Price and Quality: महंगा और मिलावटी दूध पिएगा, तो इंडिया "फिट" कैसे रहेगा?

अमूल ने एक बार फिर अपने दुग्ध उत्पादों की कीमत बढ़ा दी है। उसने प्रति लीटर दूध पर तीन रुपये बढ़ोत्तरी की घोषणा की है। महंगे राशन और महंगे दूध के बावजूद इनकी शुद्धता को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं।

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पिछले साल जब अमूल ने एक लीटर दूध पर दो रुपए की वृद्धि की थी, तो प्रबंधन ने इसकी वजह एक साल में पशुओं के चारे की लागत में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि बताई थी। एक बार फिर अमूल दूध के दाम में तीन रुपये प्रति लीटर तक की बढ़ोतरी की घोषणा हुई है। ये नए दाम तत्काल प्रभाव से लागू कर दिए गए हैं। अब अमूल ताजा दूध का एक लीटर का पैक 54 रुपए का होगा। अमूल गोल्ड का एक लीटर का पैक 66 रुपए का हो गया है।

सवाल है कि अगर शुद्ध दूध इतना महंगा हो गया है तब देशी घी का क्या दाम होगा? बाजार में पांच से छ: सौ रुपये किलो के हिसाब से देशी घी मिल जाता है। क्या ये घी शुद्ध कहा जा सकता है? कुश्ती विवाद में पड़ने से पहले भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने दो महीने पहले यह सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि आज न तो शुद्ध दूध मिल रहा है और न ही शुद्ध घी। ऐसे में उन्होंने ग्रामीण जनता से अपील भी किया था कि शुद्ध दूध घी खाना है तो गाय भैंस पालना बंद न करें।

वर्तमान दूध के रेट पर अगर घी का रेट देखें तो गांव का किसान तीस किलो दूध में एक किलो घी निकालता है। यदि वह छह -सात सौ रूपए किलो घी बेचेगा तो उसका लाभ तो छोड़िए, उसके लिए अपनी लागत निकालना भी मुश्किल हो जाएगा। तो क्या ऐसी स्थिति में दूध और घी दोनों मिलावटी मिल रहे हैं?

भारत में दूध और दूध से जुड़े उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर बार बार सवाल उठते रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में दूध के उत्पादन से दूध की खपत तीन गुना अधिक है। वैसे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। जहां वैश्विक दुग्ध उत्पादन में 23 प्रतिशत की भागीदारी हमारी है। उसके बावजूद हमें दूध आयात करना पड़ता है। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन कॉरपोरेट स्टेटिकल डाटाबेस (FAOSTAT) के अनुसार 2020-21 में भारत में दूध का उत्पादन 209.96 मिलियन टन था, जिसे 2019-20 के 198.44 मिलियन टन उत्पादन की तुलना में बेहतर कहा जा सकता है लेकिन यह बेहतर प्रदर्शन भी संतोषजनक नहीं है।

आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में दूध का सालाना उत्पादन लगभग 21 कारोड़ टन है। जबकि दूध की खपत 64 करोड़ टन। यहां सवाल उठता है कि इस देश में इस तीन गुने अंतर को कैसे पाटा जा रहा है? क्या यह आयात के भरोसे पूरा किया जा रहा है या यह आपूर्ति हमारी सेहत से समझौते की कीमत पर हो रही है?

एक आम भारतीय उपभोक्ता दूध में पानी की मिलावट को स्वीकार कर बैठा है। उसके घर आने वाले दूध में पानी की मिलावट है, इस बात को वह मानता है। दूध के मामले में बात अब पानी की मिलावट से काफी आगे निकल चुकी है। दूध के नाम पर डिटर्जेंट और सफेद पेंट जैसी जहरीली चीजों को भी मिलाकर घरों तक दूध पहुंचाया जा रहा है। एक तरफ दूध की बढ़ती कीमत और बढ़ी हुई कीमत पर भी घरों में आने वाला दूध स्वस्थ बनाने की जगह सेहत खराब करने की वजह बन रहा है। बताया जाता है कि देश के अंदर सबसे अधिक सिंथेटिक दूध उत्तर प्रदेश में तैयार होता है। यह आम आदमी के जीवन से खिलवाड़ करने वाला है। एक कड़वा सच यह है कि दूध में मिलावट से देश का कोई भी कोना बचा नहीं है। पंजाब में दूध की हो रही खपत में 50 फीसदी से अधिक नकली दूध की हिस्सेदारी है।

सच यह भी है कि दूध के नाम पर समय समय पर कुछ अफवाहें भी फैलाई जाती हैं, जिनसे सावधान रहने की जरूरत है। इसलिए वाट्सएप या किसी अन्य माध्यम से मिलने वाली जानकारी का फैक्ट चेक करना आवश्यक है। जैसे डब्ल्यूएचओ के नाम पर यह अफवाह खूब फैलाई गई थी कि मिलावटी दूध की वजह से 2025 तक 87 प्रतिशत नागरिक कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होंगे। जबकि बाद में यह सूचना झूठी पाई गई। डब्ल्यूएचओ की तरफ से भी इसका खंडन आया था।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने 2017 के अपने एक सर्वेक्षण में पाया था कि दक्षिण भारत की तुलना में उत्तर भारत में दूध में मिलावट के मामले अधिक आते हैं। इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले उन्होंने देश भर में एक सर्वेक्षण किया, जिसके लिए 2500 लोगों से बातचीत की।

दूध की गुणवत्ता में मिल रही शिकायतों को लेकर एफएसएसएआई गंभीर दिखाई दे रहा है। 2019 में उसकी तरफ से देश भर में सर्वेक्षण किया गया था। जिसमें 41% सैंपल स्टेंडर्ड और क्वालिटी के मानकों पर खरे नहीं उतरे थे। साथ ही इसमें एफ्लोटॉक्सिन एम वन भी बड़ी मात्रा में पाया गया था। यह दूध में पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे के माध्यम से आता है।

बहरहाल दूध के उत्पादकों के सामने भी एक व्यावहारिक समस्या आ रही है, जिसके समाधान पर अभी काम किया जाना शेष है। जैसा कि हम जानते हैं, पैकेट वाले दूध में 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है। जबकि खुले दूध में कोई जीएसटी नहीं है। इस वजह से कई विक्रेताओं ने खुला दूध बेचना शुरू कर दिया है। डेयरी पर पॉलिथीन का इससे उपयोग कम हुआ है। जिसे पर्यावरण के लिए एक हितकारी कदम माना जाएगा। लेकिन खुले दूध में हाइजीन से लेकर क्वालिटी बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।

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एफएसएसएआई दूध में मिलावट की मिल रही शिकायतों को लेकर गंभीर दिखाई पड़ता है। वह राज्य सरकारों के साथ मिलकर तीन स्तर पर काम कर रहा है। जिसके अन्तर्गत वह दूध की जांच, मिलावट में रोकथाम और जागरूकता पर काम शामिल है। इसके साथ सभी राज्यों को एफएसएसएआई तीन मशीनें उपलब्ध करा रहा है। इसकी मदद से राज्य अपने यहां दूध की गुणवत्ता की सही सही जांच कर पाएंगे। मशीनों में एक रैपिड टेस्टिंग मशीन होगी, जिसकी मदद से दूध में पाए जाने वाला एंटीबायोटिक, पेस्टिसाइड, फैट, प्रोटीन, एफ्लोटॉक्सिन, पानी की मात्रा, यूरिया, डिटर्जेंट, एसएनएफ, लैक्टोस, सुक्रोज, हाईड्रोजन पेरोक्साइड की जांच की जा सकेगी। इसके अलावा दो हाई-एंड टेस्टिंग के लिए एलसी-एमएसएमएस और जीसी- एमएसएमएस मशीने दी जाएंगी। इसकी मदद से दूध में मौजूद एफ्लोटॉक्सिन एमवन, एंटीबायोटिक, पेस्टिसाइड की मात्रा का पता लगाया जा सकेगा। इन मशीनों को उपलब्ध कराए जाने का सारा खर्च केन्द्र सरकार उठाएगी।

लेकिन सवाल तो अब भी वही बना हुआ है कि मंहगा दूध खरीदकर भी अगर उसमें शुद्धता की गारंटी न मिले तो आम ग्राहक क्या करे?

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
How to avoid expensive and adulterated milk
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