Dollar vs Rupee: अमरीकी डॉलर के सामने क्यों हार रहा है रूपया?
Dollar vs Rupee: महज एक रन का ही फर्क होता है, क्रिकेट में 99 और 100 के बीच, लेकिन सैंकड़ा ही बल्लेबाज के रिकार्ड में जुड़ता है जो बल्लेबाज को मनोवैज्ञानिक रूप से संतुष्टि देता हैं। ऐसे ही डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये की स्थिति का मनोविज्ञान है। डॉलर के मुकाबले रूपये का लगातार कमजोर होना भारतीय जनमानस को आर्थिक रूप से कम, मनोवैज्ञानिक रूप से अधिक परेशान करता है। जैसे ही रूपये के कमजोर होने की खबर आती है हमें लगता है कि हमारा रूपया नहीं, देश कमजोर हो रहा है।
मंगलवार को रूपया डॉलर के मुकाबले अपने निचले स्तर पर 82.40 पर पहुंच गया। इस साल रूपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले दस प्रतिशत लुढ़क चुका है। ऐसे में केन्द्र सरकार विपक्ष के निशाने पर है और सरकार रूपये के कमजोर होने के लिए कई ऐसे कारण बता रही है जिस पर नियंत्रण करना केन्द्र सरकार के बस का नहीं है।
देश की मुद्रा के विनिमय मूल्य को राष्ट्रीय गौरव से जोड़कर और सरकार के प्रदर्शन से भी जोड़कर देखा जाता है, लेकिन यह धारणा गलत है। जनता को समझना पड़ेगा कि कई ऐसे कारण होते हैं जिस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता है और उस कारण भी देश की मुद्रा टूटती है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने ठीक तीन माह पूर्व 18 जुलाई को लोकसभा में कहा था कि रूपये की गिरावट के लिए यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की चढ़ती कीमतें और वैश्विक वित्तीय संकट दोषी है। वित्त मंत्री ने कहा था कि ब्रिटिश पांउड, जापानी येन और यूरो जैसी बड़ी मुद्राएं रूपये से ज्यादा टूटी है और भारतीय मुद्रा तो इन मुद्राओं के मुकाबले कुछ मजबूत ही हुई है।
सीतारामन का कहना सही था। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड 31 दिसंबर 2021 और 15 जुलाई 2022 के बीच 12.27 फीसदी और इसी अवधि में यूरो 11.3 फीसदी टूटा है। जबकि इनके मुकाबले रूपया छह फीसद ही कमजोर हुआ है। पाउंड के मुकाबले तो रूपये में 10 फीसदी की मजबूती दर्ज हुई है।
अपने
आंकड़ों
से
वित्त
मंत्री
भले
ही
मोदी
सरकार
का
बचाव
कर
रही
हों,
लेकिन
इस
बार
मामला
जरा
ज्यादा
ही
टेढ़ा
हो
गया
है।
डॉलर
अब
82
रूपये
की
सीमा
लांघ
चुका
है।
इतना
कभी
नहीं
टूटा।
इसे
सरल
भाषा
में
ऐसे
भी
समझा
जा
सकता
है,
इस
समय
एक
बैरल
क्रूड
ऑयल
करीब
7500
रुपये
(91
डॉलर)
का
पड़
रहा
है।
एक
टन
आयातित
कोयला
करीब
10
हजार
से
18
हजार
रुपये
का
हो
गया
है।
जैसे
जैसे
रूपया
कमजोर
होगा
उर्जा
जरूरत
की
इन
वस्तुओं
की
कीमत
बढती
जाएगी
जिसका
असर
प्रत्यक्ष
रूप
से
सार्वजनिक
परिवहन,
माल
ढुलाई
और
अन्य
उर्जा
जरूरतों
पर
पड़ेगा।
अमेरिकी केन्द्रीय बैक ब्याज दरें बढ़ा रहा है जिसके कारण डॉलर की मांग बढ़ रही है और दुनिया भर की मुद्रा कमजोर हो रही हैं जिसमें रूपया भी शामिल है। जाहिर है गिरते रूपये को लेकर मोदी सरकार चिंतित थी। रूपये की गिरावट थामने के लिए रिजर्व बैक ने अपने विशाल विदेशी मुद्रा भंडार से रकम निकालकर रुपया खरीदा। फरवरी में रिजर्व बैक ने इसके लिए 50 अरब डॉलर जितनी बड़ी रकम खर्च की, जिससे मुद्रा भंडार 630 अरब डॉलर से घटकर 580 अरब डॉलर पर आ गया। रिजर्व बैक का कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत है और किसी को भी चिंतित होने की जरूरत नहीं है।
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रिजर्व बैक की कोशिश रूपये को नहीं विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने की है। लेकिन केन्द्र सरकार और रिजर्व बैक इससे भलीभांति परिचित हैं कि रुपये की गिरावट उद्योग जगत में खौफ और नागरिकों में डर पैदा करती है। कमजोर रुपया आयात की लागत बढ़ाकर उद्योगपतियों की कमर तोड़ता है और इसके कारण देश के नागरिकों पर महंगाई की मार पड़ती है। भारत की थोक महंगाई में 60 फीसदी हिस्सा आयात का है। अगर रिजर्व बैंक बाजार में डॉलर छोड़ता रहे तो रुपये की गिरावट रुक जाएगी लेकिन फिलहाल रिजर्व बैंक इससे बच रहा है क्योंकि रिजर्व बैक जानता है कि यह स्थायी इलाज नहीं है।
रिजर्व बैंक इस बात को समझ रहा है कि 2018 तक भारतीय बाजारों से औसत एक अरब डॉलर हर माह निकल कर बाहर जा रहे थे, लेकिन इस साल जनवरी के बाद यह निकासी पांच अरब डॉलर हर माह हो गई है। कारण यह है कि विदेशी निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था में फिलहाल तेज बढ़त की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। रिजर्व बैक जानता है कि बाजार में डॉलर झोंककर भी इस निकासी को नहीें रोका जा सकता।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अभी जीडीपी का करीब 20 फीसदी है। अगर यह गिरकर 15 फीसदी यानी 450 अरब डॉलर तक चला गया तो बाजार में घबराहट का फैलना तय है। रिजर्व बैक के लिए राहत की बात यह भी है कि 2008 के वित्तीय संकट और 2013 में अमेरिकी ब्याज दरें बढ़ने के दौर में रूपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 20 फीसद तक टूटा था।
भारत सरकार ने फिलहाल डॉलर के सामने हाथ खड़े कर दिए है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन का अमेरिका में दिया गया यह बयान कि रूपया कमजोर नहीं हुआ है, डॉलर मजबूत हुआ है इसी हताशा को दिखाता है। रूस युक्रेन युद्ध के बाद बढ़ी महंगाई के बाद ग्लोबल मुद्रा बाजार में अमेरिकी डॉलर अब अद्वितीय है। अन्य करेंसी के मुकाबले डॉलर की ताकत बताने वाला डॉलर इंडेक्स 20 साल के सर्वाेच्च स्तर पर है।
अमेरिकी
डॉलर
की
ताकत
का
अंदाजा
इस
बात
से
लगाया
जा
सकता
है
कि
ग्लोबल
जीडीपी
में
अमेरिका
का
हिस्सा
20
फीसदी
है।
अगर
मुद्रा
की
ताकत
के
रूप
में
देखें
तो
दुनिया
में
विदेशी
मुद्रा
भंडारों
में
अमेरिकी
डॉलर
का
हिस्सा
2021
में
करीब
60
फीसदी
था।
अमेरिकी
डॉलर
की
बादशाहत
कायम
है।
इस
कारण
कहा
जाता
है
कि
डॉलर
अमेरिका
का
सबसे
मजबूत
सैनिक
है।
वह
कभी
नहीं
हारता।
उलटे
यह
दूसरी
करेंसी
को
बंधक
बनाकर
वापस
अमेरिका
के
पास
लौट
आता
है।
भारत
सरकार
भले
ही
डॉलर
की
आड़
में
छिपने
की
कोशिश
कर
रही
हो
लेकिन
सरकार
को
इस
बात
का
यकीन
भी
है
कि
मजबूत
होता
डॉलर
और
कमजोर
होता
रूपया
आखिर
में
बेतहाशा
मंहगाई
लायेगा।
इसलिए
सरकार
मंहगाई
रोकने
के
लिए
हरसंभव
कदम
उठा
रही
है।
इसी
के
तहत
खाद्य
सामग्री
पर
जहां
निर्यात
पर
दिसंबर
तक
रोक
लगा
दी
है
और
खाद्यान्न
के
आयात
पर
आयात
शुल्क
में
भी
कमी
कर
दी
है।
ऐसे
में
इस
बात
की
उम्मीद
करनी
चाहिए
कि
सरकार
के
प्रयासों
के
बाद
रूपये
का
गिरना
और
मंहगाई
का
बढ़ना
दोनों
रुक
जाए।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)