कानपुर: इन अंदरूनी वजहों से कमजोर हो रहा है सपा-कांग्रेस गठबंधन
एक-दूसरे पर दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की रणनीति सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए गले की हड्डी बनती जा रही है।
कानपुर। एक-दूसरे पर दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की रणनीति सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए गले की हड्डी बनती जा रही है। दोनों पार्टियों के हाईकमान के आदेश के बाद भी कानपुर नगर व देहात की चार सीटों पर दोनों पार्टियों के प्रत्याशी चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। जिससे यह माना जा रहा है कि दबाव की रणनीति गठबंधन को भारी पड़ सकता है। ये भी पढे़ं: झांसी: सपा-कांग्रेस गठबंधन की वजह से मजबूरन देना पड़ रहा है विरोधी कांग्रेसी प्रत्याशी का साथ
तीसरे चरण के विधानसभा चुनाव की नामांकन वापसी की तारीख बीतने के बाद अब यह तय हो गया कि कानपुर नगर की तीन सीटों व कानपुर नगर की एक सीट पर गठबंधन के बावजूद दोनों पार्टियों के प्रत्याशी दमदारी से चुनाव लड़ेगें। हालांकि दोनों पार्टियों के नेता अब इस बात की कोशिश कर रहें कि गठबंधन के तहत यह सभी प्रत्याशी किसी तरह से चुनाव को सरेंडर करें। लेकिन, बागी होने की स्थिति से अब यह नहीं लगता कि पार्टियां को कामयाबी नहीं मिल पाएगी।
ऐसे में इन सीटों पर विरोधियों को जबरदस्त फायदा हो सकता है। वह भी खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी को। बताते चलें कि आर्य नगर से भाजपा के मौजूदा विधायक भाजपा के सलिल विश्नोई, महाराजपुर से सतीश महाना व कैंट से रघुनंदन भदौरिया हैं। इन्ही तीनों सीटों पर दोनों पार्टियों के प्रत्याशी मैदान में डटे हुए हैं। आर्य नगर से कांग्रेस के प्रमोद जायसवाल, सपा के अमिताभ बाजपेयी, महाराजपुर से कांग्रेस के राजाराम पाल, सपा की अरूणा तोमर, कैंट से कांग्र्रेस के सुहैल अंसारी, सपा से हसन रूमी दमदारी से चुनाव लड़ रहें है।
इसी तरह कानपुर देहात की भोगनीपुर से कांग्रेस के नीतम सचान व सपा के मौजूदा विधायक योगेन्द्र पाल सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस नगर अध्यक्ष हरप्रकाश अग्निहोत्री का कहना है कि गठबंधन की बात न मानने वालों पर पार्टी अनुशासनात्मक कार्रवाई करने जा रही है और कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दे दिया गया है कि इनसे दूरी बनाये रखें। इसी तरह सपा के नगर अध्यक्ष हाजी फजल महमूद का कहना है कि गठबंधन के प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया जाएगा और हाईकमान की बात न मानने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। दोनों पार्टियां अब कुछ भी कहें पर इन सीटों पर चुनावी माहौल गठबंधन का कमजोर होता दिख रहा है।