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Court Decision: जल्द मृत्यु पर क्लेम देने से इंकार नहीं कर सकती बीमा कंपनी

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Court Decision जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग सागर ने बीमा कंपनी के खिलाफ फैसला दिया है। एलआईसी ने एक बच्ची की जल्द मृत्यु व निशक्तता बताकर मृत्यु क्लेम देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने बच्ची के परिजन के पक्ष में फैसला देते हुए कहा है कि जल्द मृत्यु हो जाए तो क्लेम देने से कंपनी इंकार नहीं कर सकती।

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Life Insurance Corporation of India से जीवन बीमा पॉलिसी लेने के बाद नरयावली क्षेत्र के जेरई गांव की एक बच्ची की मृत्यु हो गई थी। तब परिजन ने उसके बीमा क्लेम के लिए एलआईसी में आवेदन किया तो एलआईसी ने बच्ची की जल्द मृत्यु और उसे मानसिक रुप से निशक्त बताते हुए उसकी बीमा क्लेम देने से इंकार कर दिया था। हालांकि कंपनी के पास इसका कोई ठोस आधार नहीं था। परिजन ने अधिवक्ता पवन नन्हौरिया के माध्यम से उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग की शरण ली थी। कोर्ट ने इस मामले में मृृत बच्ची के परिजन के पक्ष में फैसला दिया है।

अधिवक्ता पवन नन्हौरिया ने बताया कि जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश अनुपम श्रीवास्तव की कोर्ट में जेरई निवासी बेनीप्रसाद अहिरवार की तरफ से मामला प्रस्तुत किया गया था। इसमें बेनीप्रसाद की 9 साल की बेटी जया का 6 नवंबर 2017 को 1.60 लाख रुपए का बीमा कराया गया था। जो साल 2029 तक के लिए वैध था। दुर्भाग्यवश बच्ची जया की एक महीने बाद ही बीमारी के चलते उसकी मृत्यु हो गई थी। बाद में बेनीप्रसाद ने एलआईसी के समक्ष बीमा क्लेम के लिए आवेदन किया था, जिसको देने से एलआईसी ने इंकार कर दिया था। एलआईसी ने इसमें बच्ची के पिता से एक पत्र पर साइन करा लिए थे, वहीं हेडमास्टर से लिखवा लिया गया था कि वह मानसिक निःशक्त थी। अधिवक्ता पवन नन्हौरिया ने कोर्ट में बच्ची के पिता की तरफ से पक्ष रखते हुए बताया कि बच्ची को मानसिक बीमार बताने वाला हेडमास्टर का पत्र मान्य नहीं है। हेडमास्टर इस तरह का सर्टिफिकेट देने के लिए तकनीकि रुप से सक्षम नहीं हैं। केवल मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ही जांचों व तकनीकि जांच के बाद सर्टिफिकेट दे सकता है।

पंचायत का पंचानामा व मार्कशीट से सिद्ध हुआ कि वह स्वस्थ्य थी
पवन नन्हौरिया ने कोर्ट में बेनीप्रसाद के पक्ष में गांव का एक पंचानामा पेश किया था, जिसमें गांव के सरपंच, जप सदस्य सहित अन्य गांव वालों ने बच्ची को मानसिक रुप से पूर्ण स्वस्थ्य होना बताया था। यह पंचनामा कोर्ट के फैसले का अहम आधार साबित हुआ। बच्ची की कोर्ट के सामने अंकसूची भी रखी गईं, जिसमें उसने अच्छे अंकों से पास हुई थी। जिससे सिद्ध किया गया कि वह मानसिक रुप से पूर्ण स्वस्थ्य थी। इसी कारण उसका एडमिशन सामान्य स्कूल में हुआ था। कोर्ट के अध्यक्ष व न्यायाधीश अनुपम श्रीवास्तव ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला दिया कि बच्ची मानसिक रुप से स्वस्थ थी। उसकी मृत्यु मानसिक बीमारी के कारण भी होना नहीं पाया गया है। बीमा कंपनी क्लेम देने से इंकार नहीं कर सकती। जल्द मृतयु होना कोई तर्क या आधार नहीं है। बीमा की पहली किश्त भरने के साथ ही बीमा क्लेम के पात्र हो जाते हैं। स्कूल के हैडमास्टर का पत्र भी अस्वीकार कर दिया गया। कोर्ट ने एलआईसी को प्रतिवादी को बीमा क्लेम 1.60 लाख रुपए, मानसिक व शारीरिक क्षतिपूर्ति के लिए 10 हजार व वाद-व्यव के रुप में 2 हजार रुपए प्रदान करने का आदेश दिया है।

English summary
Court Decision If there is an early death, the insurance company cannot refuse to pay the claim. LIC refused to give claim on the death of the girl child.
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