क्यों मची है सऊदी अरब में सियासी उथल पुथल?
सऊदी अरब में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ शुरू किए गए अभियान का मकसद क्या सिर्फ़ सत्ता संघर्ष में एकाधिकार पाना है.
तारीख : 4 नवंबर 2017
दिन : शनिवार
जगह : रियाद, सऊदी अरब
अरब जगत के सबसे अहम देश और दुनिया की कुल तेल संपदा के एक चौथाई हिस्से पर अधिकार रखने वाले सऊदी अरब का रुढिवादी समाज औचक बदलाव का ना तो हामी है और ना ही आदी.
ऐसे में इस दिन जो कुछ हुआ, उसने एकबारगी इस देश और यहां के लोगों को हिला सा दिया.
हालांकि, असामान्य सी हलचल को लेकर कुछ लोग अंदेशा लगा चुके थे कि राजधानी रियाद में कुछ खास होने वाला है.
सऊदी अरब में दो बार भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद उस दिन के घटनाक्रम के बारे में कहते हैं, " जब उन्होंने (शाही प्रशासन ने) होटल रिट्स कार्टन खाली करा लिया. तब कुछ लोगों को शुबहा होने लगा था कि आज कुछ होगा. इसके पहले कि आगे कोई कुछ और सोच पाता उन्होंने लोगों को हिरासत में ले लिया. "
हिरासत में लिए गए लोगों में से ज्यादातर हाई प्रोफाइल थे. इनमें 11 शहजादे, चार मंत्री और कई पूर्व मंत्री थे.
ये कार्रवाई भ्रष्टाचार रोधी कमेटी के कहने पर हुई. बेशुमार अधिकार रखने वाली इस कमेटी का गठन सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्दुल अज़ीज ने शनिवार यानी 4 नवंबर को ही किया और इसका चेयरमैन क्राउनप्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को बनाया गया.
सऊदी अरब में 11 राजकुमार और कई मंत्री हिरासत में
सऊदी अरब: 'भ्रष्टाचार में हुई गिरफ़्तारियां तो बस शुरुआत है'
डेढ़ सौ लोग गिरफ़्तार
करीब तीन करोड़ की आबादी वाले मुल्क में आम लोगों के बीच भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है लेकिन शाही परिवार के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों के क्या मायने हैं, इस सवाल पर तलमीज़ अहमद कहते हैं 'सऊदी अरब की सियासत में पैसे का लेन देन बुनियादी है'.
वो कहते हैं, "हमें मालूम है हरेक ठेके में रिश्वत खोरी हुई है. इसके बारे में किताबें भी लिखी गई हैं. तो अगर कोई प्रिंस कहे कि मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान शुरू कर रहा हूं और मैंने चालीस लोगों को गिरफ्तार किया है तो लोग हंसेंगे."
इस मामले में जिस तेज़ी के साथ कार्रवाई की गई उसे लेकर भी अंदेशे और अटकलें शुरू हो गईं. हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या को लेकर भी अलग-अलग दावे सामने आ रहे हैं.
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और मध्य पूर्व मामलों के विशेषज्ञ एके पाशा कहते हैं, "हमें बताया गया है कि सिर्फ 20 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है लेकिन मुझे दूसरे स्रोत्रों से जानकारी मिली है कि डेढ सौ से ज्यादा लोगों को पकड़ा गया है."
अगर भ्रष्टाचार का मुद्दा सिर्फ बहाना है तो फिर बड़े लोगों की गिरफ़्तारी की असल वजह क्या हो सकती है?
सऊदी अरब की राजनीति पर नज़र रखने वालों की नज़र में ये क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान का सत्ता पर पूरा अधिकार हासिल करने का सोचा समझा और साहसिक तरीका है.
दो साल पहले किंग अब्दुल्लाह की मौत के बाद उनके सौतेले भाई सलमान बिन अब्दुल अज़ीज अल साउद ने सत्ता संभाली. उस वक्त तक अरब जगत के बाहर मोहम्मद बिन सलमान का नाम कम ही लोग जानते थे.
तलमीज़ अहमद कहते हैं, "पिछले दो सालों से जब से किंग सलमान गद्दी पर आए. तब से अपने छोटे लड़के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को बहुत आगे लाए हैं. शाही परिवार के दो वरिष्ठ सदस्यों को हटाकर उन्हें क्राउन प्रिंस बनाया गया. शुरू से ही उनको डिफेंस मिनिस्टर की जिम्मेदारी दी गई. "
अपने रास्ते की रुकावटें हटा रहे हैं सऊदी क्राउन प्रिंस?
यमन सीमा पर हेलिकॉप्टर क्रैश में सऊदी प्रिंस की मौत
अमरीका की भूमिका
लगातार उठते सवाल और गहराते रहस्य के बीच तेज़ी से बदलता राजनीतिक घटनाक्रम किसी मध्ययुगीन शासन की साजिशों पर आधारित ड्रामे का हिस्सा लगता है. अब इसकी पटकथा के सिरे अमरीका तक तलाशे जा रहे हैं.
तलमीज़ अहमद कहते हैं, "ये ड्रामा है. एक हफ्ते पहले ट्रंप के दामाद जेरेड कुशनर रियाद आए थे और चार दिन यहां रहे. मुझे लगता है कि कदम दर कदम इंतजाम उनके समर्थन से हुआ है. मुझे लगता है कि अमरीकी खुफिया विभाग ने भी कुछ जानकारी दी होगी. मगर मैं ये सिर्फ अटकल ही लगा रहा हूं."
हालांकि, इन अटकलों को डोनल्ड ट्रंप के ट्वीट्स से बल मिला जिसमें उन्होंने किंग और क्राउन प्रिंस सलमान के कदमों का समर्थन किया.
शनिवार को ही किंग सलमान ने नेशनल गार्ड्स के मंत्री प्रिंस मितब बिन अब्दुल्ला और नेवी के कमांडर एडमिरल अब्दुल्ला बिन सुल्तान को भी हटा दिया. मितब पूर्व किंग अब्दुल्लाह के बेटे हैं और इस परिवार के ऐसे इकलौते सदस्य हैं, जो किसी बड़े पद पर थे.
उन्हें हटाए जाने के बाद क्राउन प्रिंस का शासन की रक्षा, सुरक्षा और अर्थनीति पर एकछत्र वर्चस्व कायम हो गया लगता है.
तलमीज़ अहमद कहते हैं, "अब तक प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नियंत्रण में पूरी सिक्योरिटी और डिफेंस का मामला था. लेकिन नेशनल गार्ड उनके नियंत्रण में नहीं थे. ये बेहद शक्तिशाली सुरक्षा बल है जो अब्दुल्ला फैमिली के साथ जुड़ा रहा है. किंग अब्दुल्ला प्रिंस रहते हुए 1962 से इस पर नियंत्रण रखते थे. इन्होंने दो साल तक मितब बिन अब्दुल्ला को हटाने का इंतज़ार किया. अब पूरी राजशाही पर इनका नियंत्रण है."
वर्चस्व की लड़ाई
शाही ख़ानदान में कथित और अघोषित वर्चस्व की लड़ाई पर चढ़ती रहस्य की परत उस वक़्त गहरा गई जब रविवार देर शाम यमन से लगती सीमा पर एक हेलीकॉप्टर हादसा हुआ जिसमें आसिर प्रांत के डिप्टी गवर्नर प्रिंस मंसूर बिन मुक़रिन की मौत हो गई.
मंसूर पूर्व इंटेलिजेंस प्रमुख मुक़रिन बिन अब्दुल अज़ीज़ के बेटे थे, जो जनवरी और अप्रैल 2015 के बीच क्राउन प्रिंस थे. लेकिन उन्हें प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के पिता किंग सलमान ने हटा दिया था.
एके पाशा के मुताबिक 'मारे गए डिप्टी गवर्नर क्राउन प्रिंस के बड़े आलोचक थे'.
उधर, भ्रष्टाचार रोधी कमेटी के आदेश पर हिरासत में लिए गए शहजादों में हाई प्रोफाइल प्रिंस अलवलीद बिन तलाल भी शामिल हैं.
फोर्ब्स पत्रिका की ओर से तैयार दुनिया के अमीरों की लिस्ट में 45वें पायदान पर मौजूद अलवलीद 17 अरब डॉलर यानी करीब 10 खरब रुपये की संपत्ति के मालिक हैं
लंदन में एक होटल का मालिक होने के साथ उन्होंने न्यूजकॉर्प, सिटी ग्रुप और ट्विटर और एप्पल में निवेश किया है.
अलवलीद ने घरेलू राजनीति पर कभी कोई विवादित बयान नहीं दिया लेकिन साल 2015 में वो एक बार डोनल्ड ट्रंप से ट्विटर पर उलझ चुके हैं.
ट्रंप के साथ विवाद
तलमीज़ अहमद उनकी गिरफ़्तारी को लेकर कहते हैं, "मुझे लगता है कि वो खरबपति हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहुंच है. वो ताकत का स्वतंत्र केंद्र बन सकते हैं. इनकी अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ कुछ तू-तू मैं-मैं भी हुई थी. "
तलमीज़ अहमद ये भी कहते हैं कि साल 1932 में किंग अब्दुल अज़ीज़ के सऊदी अरब की स्थापना करने के बाद से मुल्क में सत्ता का हस्तांतरण बहुत ही सहज रहा है. ख़ानदान की कहानी में साजिशों के सिरे पहली बार तलाशे जा रहे हैं.
वो कहते हैं, "19 वीं शताब्दी में इस परिवार के अंदर बहुत मारकाट हुई थी. ये लोग रियाद से भगाए गए थे. अब्दुल अज़ीज 1903 में वापस आए. वो 1932 से 1953 तक किंग रहे. उन्होंने अपने बेटों से कहा कि आपस में कभी नहीं लड़ना. उसके बाद से ये परिवार बिल्कुल एकजुट रहा है. मैं पहली बार देख रहा हूं कि इस परिवार में अपनी महात्वाकांक्षा के लिए इतने वरिष्ठ लोगों के साथ इतनी बदसलूकी की गई है."
प्रिंस अलवलीद बिन तलाल कौन हैं?
क्या सऊदी अरब में मौलवियों का असर होगा कम?
जानकारों का दावा है कि करीब आठ लाख 64 हज़ार वर्ग मील दायरे में फैले सऊदी अरब की सत्ता पर काबिज होने की मौजूदा कहानी बड़े जतन से लिखी गई है.
क्राउन प्रिंस बनने के बाद सलमान ने एक रुढिवादी देश में खुद को उदारवादी सुधारक के तौर पर पेश किया. उन्होंने कई साहसिक कदम उठाए जिसमें महिलाओं को ड्राइविंग की अनुमति देना शामिल है.
क्राउन प्रिंस के समर्थक सऊदी अरब को आधुनिक बनाने के उनके प्रयासों की सराहना करते हैं. लेकिन उमरदराज और रुढिवादी सोच रखने वाले लोग क्राउनप्रिंस के आलोचक हैं. उन्हें लगता है कि वो बहुत तेज़ी से बहुत आगे जा रहे हैं.
'ड्राइविंग से 262 दिन दूर सऊदी अरब की महिलाएं'
वर्जिनिटी ख़त्म न हो जाए, इसलिए थी सऊदी अरब में ड्राइविंग पर पाबंदी?
क्राउन प्रिंस की चुनौतियां
विश्लेषकों की राय है कि क्राउन प्रिंस सलमान ने तजुर्बे की कमी की वजह से कई गलतियां की हैं और फिलहाल वो कई चुनौतियों से घिरे हैं
एके पाशा कहते हैं, " तेल की कीमत गिरने से सऊदी अरब की दो तिहाई आय कम हो गई है. जो नुकसान हुआ है, उसका असर पूरे समाज पर नज़र आ रहा है. टैक्स में इजाफा हुआ जो आम लोगों को पसंद नहीं था. दूसरी बात ये है कि क्राउन प्रिंस के प्रोजेक्ट यमन, कतर, ईरान, इराक और सीरिया में असफल रहे हैं. वहां लाखों डॉलर निवेश किया था. अगर यमन की जंग का उदाहरण लें तो हर दिन 2000 लाख डॉलर का खर्चा हो रहा है. सीरिया में भी लाखों डॉलर खर्च किए हैं. मोहम्मद बिन सलमान के ऊपर यूएई के क्राउन प्रिंस का भी बहुत दबाव है . अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपने दौरे के दौरान सऊदी अरब को करीब 500 अरब डॉलर के हथियार खरीदने पर मजबूर कर दिया."
एके पाशा ये भी कहते हैं कि क्राउन प्रिंस के तमाम मनमाने फ़ैसलों का शाही परिवार में काफी विरोध है और उसे दबाने के लिए किंग सलमान बेटे के कहे मुताबिक फ़ैसले ले रहे हैं.
वो कहते हैं, "भ्रष्टाचार के आरोप सिर्फ मुखौटा है. ये सत्ता का संघर्ष है. क्राउन प्रिंस से पूरे उलेमा नाराज हैं. जिन्हें जेल में डाला गया है, वो सब बहुत मशहूर लोग हैं. उन्हें बहुत समर्थन हासिल है. मेरे ख्याल वो अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. जज, पत्रकार, आम लोगों, शियाओं और यमनी लोगों को जेल में डाल दिया गया है."
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पूरा अरब जगत संकट में
तलमीज़ अहमद भी कहते हैं कि ट्रंप की शह पर क्राउन प्रिंस सलमान पूरे अरब जगत को पटरी से उतारने में जुट गए हैं.
उनकी राय में, "आलोचक कहते हैं कि क्राउन प्रिंस आवेश में फैसले लेते हैं. उनको ट्रंप का पूरा समर्थन है. दोनों का मिजाज एक सा है और दोनों पूरे इलाके को तहस नहस कर रहे हैं."
सऊदी अरब सियासत की ये नाटकीय कहानी आगे क्या मोड़ ले सकती है, इस सवाल पर तलमीज़ अहमद कहते हैं, "शाही खानदान के कई लोग इससे काफी परेशान होंगे. लेकिन उस देश में कोई ऐसा इंतजाम नहीं है कि संगठित विरोध हो सके. किंग और क्राउनप्रिंस काफी शक्तिशाली होते हैं. उन्हें हटाना आसान नहीं होगा तो मैं ये नहीं बता सकता है कि आगे क्या होगा."
लेकिन, एके पाशा मानते हैं कि ये कहानी डेड एंड पर नहीं पहुंची है. आगे कुछ अप्रत्याशित घटनाएं भी हो सकती हैं.
वो कहते हैं, "विरोधी थोड़ी देर के लिए चुपचाप बैठेंगे लेकिन मौका मिलते ही बगावत उभरकर आएगी. या तो शिया बगावत करेंगे या फिर रॉयल फैमिली. क्राउन प्रिंस सलमान पर पहले भी एक हमला हो चुका है."
यानी पिचासी साल से सऊदी अरब की सियासत पर काबिज खानदान में लिखी जा रही संघर्ष और साजिश की इस कहानी में कई अनदेखे और अनजाने मोड़ आ सकते हैं.