क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

चाबहारः ईरान के साथ भारत की दोस्ती में क्यों आ रही है दीवार?

चाबहार रेल लिंक से भारत को हटाने की ख़बर को ईरान और भारत ग़लत बता रहे हैं. पर सही क्या है, वो भी नहीं बता रहे हैं. तो क्या दोनों के बीच सब सही नहीं है?

By अपूर्व कृष्ण
Google Oneindia News
साल 2018 की इस तस्वीर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी
Getty/Hindustan Times
साल 2018 की इस तस्वीर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी

इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चाबहार की ख़ूब चर्चा रही. कहा जा रहा है कि ईरान ने भारत को एक प्रोजेक्ट से अलग कर दिया है, और ये प्रोजेक्ट वो अब ख़ुद ही पूरा कर लेगा.

और फिर भारत के लिए 'झटका' और चीन के लिए 'मौक़ा' जैसी सुर्खियाँ दिखाई देने लगीं.

पर ये चाबहार प्रोजेक्ट है क्या, और आख़िर हुआ क्या है?

इसे जाने बिना ये समझना मुश्किल है कि ये कैसे भारत के लिए झटका है, और कैसे चीन के लिए मौक़ा?

समझ ये भी नहीं आ रहा कि भारत का दोस्त समझा जाने वाला ईरान अचानक क्यों नाराज़ हो गया? और चर्चा ये भी हो रही है कि दोनों दोस्तों को दूर करने में कहीं कोई तीसरा तो शामिल नहीं?

चाबहार समझौता

चाबहार ईरान का एक तटीय शहर है, देश के दक्षिण-पूर्व में मौजूद दूसरे सबसे बड़े प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान में, ओमान की खाड़ी से सटा. यहाँ एक बंदरगाह है, जो ईरान का इकलौता बंदरगाह है.

इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच 2003 में अहम सहमति हुई, लेकिन फिर ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रमों को लेकर अंतराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से रूकावटें आने लगीं.

फिर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बात आगे बढ़ी, 2016 में समझौते को मंज़ूरी मिली. इसी साल प्रधानमंत्री मोदी तेहरान गए, जहाँ उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर दस्तख़त किए.

इसके तहत भारत को बंदरगाह के कुछ हिस्सों के विकास के लिए 10 साल की लीज़ मिली. साथ ही, उसे ज़ाहेदान तक रेलमार्ग बनाने के लिए भी बुलाया गया जो सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी है.

23 मई 2016 को चाबहार समझौते पर प्रधानमंत्री मोदी, ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने किए थे दस्तख़त
Getty/Anadolu Agency
23 मई 2016 को चाबहार समझौते पर प्रधानमंत्री मोदी, ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने किए थे दस्तख़त

चाबहार रेल लिंक प्रोजेक्ट

ज़ाहेदान से अफ़ग़ानिस्तान की सीमा लगभग 40 किलोमीटर दूर है. और अगर ये रेल लिंक बन जाता तो मालगाड़ी से सामान को आसानी से पहुँचाया जा सकता है.

अब इस सप्ताह चाबहार समझौते को लेकर जो ख़बरें आ रही हैं, उसके केंद्र में यही लगभग 500 किलोमीटर लंबा रेल प्रोजेक्ट है. कहा जा रहा है कि भारत ने कथित तौर पर ढिलाई दिखाई जिसके बाद ईरान ने भारत को इस रेल प्रोजेक्ट से अलग कर दिया.

हालाँकि चाबहार पोर्ट के विकास में भारत ने बड़ी मुस्तैदी दिखाई और 2018 में भारत ने पोर्ट के एक टर्मिनल का संचालन भी अपने हाथ में ले लिया.

इसके बाद से भारत ने वहाँ से अफ़ग़ानिस्तान को काफ़ी कुछ सामान निर्यात भी किया है जिनमें अनाज और खाने की चीज़ें शामिल हैं.

भारत के लिए कितना अहम?

चाबहार समझौता भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समझा जाता है. इसे इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन के प्रभाव को संतुलित करने का एक ज़रिया बताया जाता है.

इसी क्षेत्र में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के ग्वादर शहर में एक बंदरगाह है जिसका संचालन चीन करता है.

चाबहार से ग्वादर की दूरी सड़क के रास्ते से 400 किलोमीटर से कम और समुद्र से लगभग 100 किलोमीटर पड़ती है.

23 मई 2016 को चाबहार समझौते पर दस्तख़त करते प्रधानमंत्री मोदी, ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी
PIB
23 मई 2016 को चाबहार समझौते पर दस्तख़त करते प्रधानमंत्री मोदी, ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी

भारत के लिए गोल्डन गेट

चाबहार भारत के लिए आर्थिक रूप से भी अहमियत रखता है. इसके ज़रिए भारत सीधे अफ़ग़ानिस्तान तक सप्लाई भेज सकता है, जबकि अभी दोनों देशों के बीच पाकिस्तान आता है जिससे रूकावट होती है.

चाबहार प्रोजेक्ट से भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच आर्थिक संबंध और मज़बूत हो सकते हैं.

और भारत एक बार ईरान तक पहुँच गया, तो वहाँ से उसके लिए रूस, यूरोप और मध्य एशिया तक का रास्ता खुल सकता है, सामानों के आयात-निर्यात की एक नई राह तैयार हो सकती है. साथ ही भारत दूसरे देशों से आयात पर होने वाले ख़र्च को कम कर सकता है.

ईरान में भारत के राजदूत अली चेगेनी ने पिछले साल पत्रिका फ़्रंटलाइन को एक इंटरव्यू में इस परियोजना की अहमियत के बारे में ये कहा था, "ईरान भारत के लिए गोल्डन गेट है. एक बार काम पूरा हो गया तो चाबहार से यूरोप तक सामान पहुँचाने में केवल दो दिन लगेंगे".

रेल प्रोजेक्ट पर 'संकट'

इस सप्ताह भारतीय मीडिया में ख़बर छपी कि ईरान ने भारत को चाबहार रेल प्रोजेक्ट से अलग कर दिया है और अब उसने इसे ख़ुद पूरा करने के लिए काम शुरू भी कर दिया है - यही वो ख़बर थी जिसे भारत के लिए 'झटका' बताया जा रहा है.

लेकिन ईरान ने इस रिपोर्ट का खंडन कर दिया है. हालाँकि, ये भी नहीं कहा है कि भारत ये रेल लिंक बनाएगा ही.

ईरान के पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन के एक अधिकारी फ़रहद मुंतसिर ने ये कहते हुए इस रिपोर्ट का खंडन किया है कि "ईरान ने भारत के साथ चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे के लिए कोई क़रार ही नहीं किया था".

ईरान की आधिकारिक समाचार एजेंसी इरना के मुताबिक़ फ़रहद मुंतसिर ने कहा, "चाबहार के लिए कई भारतीय निवेश आए थे, इनमें एक निवेश चाबहार रेलवे के बारे में भी था, पर ये समझौते का हिस्सा नहीं था".

अधिकारी के अनुसार समझौता केवल दो चीज़ों पर हुआ था - "पोर्ट के विकास का और 15 करोड़ डॉलर के भारत के निवेश का".

भारत का क्या कहना है?

भारत सरकार ने भी चाबहार रेल प्रोजेक्ट पर मीडिया में आई ख़बरों को अटकलबाज़ी बताया है और कहा है कि ईरान को कुछ तकनीकी और वित्तीय मुद्दों को अंतिम रूप देने के लिए किसी आधिकारिक नियुक्ति का इंतज़ार था, और उसका अभी भी इंतज़ार हो रहा है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने गुरूवार को कहा कि 2016 के बाद से कठिनाइयों के बावजूद चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट में काफ़ी प्रगति हुई है.

प्रवक्ता ने कहा कि "2018 के बाद से एक भारतीय कंपनी इस पोर्ट का संचालन कर रही है और वहाँ से यातायात काफ़ी बढ़ा है."

अनुराग श्रीवास्तव ने चाबहार रेल परियोजना के बारे में कहा, "ईरानी पक्ष को एक आधिकारिक पक्ष को मनोनीत करना था जो बचे हुए तकनीकी और वित्तीय मुद्दों को अंतिम रूप देता. उसकी अभी भी प्रतीक्षा की जा रही है".

प्रवक्ता ने एक गैस क्षेत्र परियोजना की ख़बरों पर भी स्पष्टीकरण दिया जिसके बारे में ख़बर दी जा रही है कि ईरान ने उससे भी भारत को अलग कर दिया है.

फ़रज़ाद-बी गैस फ़ील्ड से भारतीय कंपनी ओएनजीसी के अलग होने की ख़बरों पर टिप्पणी करते हुए अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, "इस साल जनवरी में हमें सूचित किया गया कि आगे से ईरान ही इस गैस क्षेत्र को विकसित करेगा और भारत को आगे चलकर शामिल किया जाएगा. इस पर चर्चा चल रही है".

सवाल बरक़रार

चाबहार रेल प्रोजेक्ट के बारे में मीडिया में आई रिपोर्टों को ईरान सरकार ने भी ख़ारिज कर दिया और भारत सरकार ने भी.

पर दोनों के ही बयानों के बाद भी वास्तविकता यही है कि चाबहार रेल प्रोजेक्ट से भारत आज की तारीख़ में जुड़ा है या नहीं - इसे लेकर दोनों ही पक्ष ठोस कुछ भी नहीं कह रहे.

और फ़रज़ाद-बी गैस फ़ील्ड के बारे में तो भारत सरकार ने एक तरह से स्वीकार ही कर लिया कि ओएनजीसी इससे अलग हो चुका है.

जानकार बताते हैं कि ये सारी बातें बस शुरूआत हैं, भारत और ईरान के संबंध अब वैसे नहीं रहे जैसे पहले थे, बदलते समय में भारत ने जो नए दोस्त बनाए उसने ईरान के साथ उसकी दोस्ती में दीवार डाल दी है.

तीसरा कौन

दिल्ली स्थित जेएनयू विश्वविद्यालय में पश्चिम एशिया विभाग में प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं कि कोई तीसरा पक्ष आकर इनके रिश्तों में आकर दखल दे रहा है.

प्रोफ़ेसर पाशा ने बीबीसी से कहा, "भारत और ईरान ऊपरी तौर पर दोस्त अभी भी हैं, मगर इनके बीच जो कड़वाहट फैल रही है ये मुझे दूसरों की साज़िश लग रही है."

दरअसल भारत और ईरान की दोस्ती की बुनियाद रही है दोनों की तटस्थता. शीतयुद्ध के दौर में, भारत ने हमेशा अमरीका की अगुवाई वाली पश्चिमी ताक़तों और तत्कालीन सोवियत संघ की अगवाई वाली कम्युनिस्ट शक्तियों से बराबर की दूरी बनाए रखी. जानकार बताते हैं कि भारत की अमरीका से नज़दीकी ईरान को रास नहीं आ रही.

ईरान में भारत के राजदूत रह चुके केसी सिंह ने बीबीसी संवाददाता गुरप्रीत सैनी से हाल ही में कहा, "ईरान सोच रहा है कि जब वो फंसा हुआ है, उसकी अर्थव्यवस्था को अमरीका ने पूरी तरह जकड़ा हुआ है, तब आप उसकी मदद नहीं कर रहे. फिर वो कैसे आपको चाबहार का सेफ़ खोलकर दे दे."

प्रोफ़ेसर पाशा भी कहते हैं, "ईरान उम्मीद रखता था कि प्रतिबंधों के दौरान भारत उसकी कुछ ना कुछ मदद करेगा लेकिन अमरीका का दबाव भारत पर इतना ज़्यादा हो गया है कि अब उन्हें समझ आ गया है कि भारत के साथ दोस्ती बनाए रखना उनके लिए फ़ायदेमंद नहीं है."

चाबहार पोर्ट
AFP
चाबहार पोर्ट

क्या है चाबहार प्रोजेक्ट का भविष्य?

भारत के विदेश मंत्रालय की मानी जाए तो सब कुछ ठीक है, और प्रोजेक्ट में प्रगति हो रही है.

मगर जानकारों की राय में भारत-ईरान के रिश्ते अब ऐसे मोड़ पर पहुँचते जा रहे हैं जहाँ एक दोस्त ने अमरीका को दोस्त बना लिया, तो दूसरा दोस्त नाराज़ होकर चीन के पास चला गया है.

पूर्व राजदूत केसी सिंह ने कहा, "ऐसे प्रोजेक्ट तभी बनते हैं जब दोनों के बीच रिश्ते सही हों. अगर ईरान महसूस करता है कि आप अमरीका से डरकर उससे बात नहीं कर रहे तो वो आपके साथ प्रोजेक्ट क्यों करेंगे? अगर उनको चीन का पैसा मिल गया है, तो चीन के पैसे से प्रोजेक्ट पूरा कर लेंगे."

प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि अगर ये मामला ऐसे ही लता गया, तो पोर्ट की लीज़ का एक्सटेंशन भी ख़तरे में है.

भारत-ईरान के रिश्तों के भविष्य के बारे में वो कहते हैं, "छोटे-छोटे झटों से ही बड़े झटकों की शुरूआत होती है. ये सब झटके होते आ रहे हैं - रेल का प्रोजेक्ट, गैस फ़ील्ड का प्रोजेक्ट, और भी कई प्रोजेक्ट नहीं हो पाए हैं, व्यापार भी कम हो गया है, तो आप समझ जाइए कि ईरान क्यों नहीं नाराज़ होगा."

प्रोफ़ेसर पाशा के शब्दों में, "ईरान के हुक्मरान अब तय कर रहे हैं कि भारत की ओर जो दोस्ती का था, वो अब ठंडा होता जा रहा है."

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Chabahar: Why is the friction coming to India's friendship with Iran?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X